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व्यक्ति वाणी से नहीं आचरण से महान बनता है, वाणी के शुद्धिकरण का अपना एक अलग महत्व है, किंतु उस पर अमल करके चलना वास्तविक उपदेश वास्तविक शिक्षा है, संत कबीरदास जी कहते हैं कि- ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए। औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।। कबीर दास जी के दोहे में कबीर दास जी अपनी वाणी को शीतल और मधुर बोलने  की सीख देते हैं देते हैं, जिसे हमें अपने आचरण में उतार कर यथार्थ में उसका प्रयोग करना है। 
कबीरदास जी आगे कहते हैं- कि दुख में सुमिरन सब करें। सुख में करे न कोई, और जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय।। अर्थात हमें ईश्वर का ध्यान ईश्वर के प्रति श्रद्धा को अपने आचरण में उतारना होगी हमें सदैव यह याद रखना होगा कि मृत्यु सत्य और अटल है... जितने अच्छे से अच्छे कर्म कर सकते हैं उतने अच्छे से अच्छे कर्म करना चाहिये, हमारी सकारात्मक कथनी और करनी में फर्क नहीं होना चाहिए, हमें मन कर्म और वचन से सदैव अच्छाई की ओर और सच्चाई की ओर, ईमानदारी की ओर और कठोर श्रम करने की अवधारणा रखकर अपने जीवन में सकारात्मक पूर्वक कर्मों को करना चाहिए। तभी हमें इनके प्रतिफल अच्छे प्राप्त होंगे, हमारे आचरण को देखकर लोगों को लगना चाहिए कि वास्तव में जीवन के सच्चे सिद्धांत और कर्म क्या होते हैं, अधिकांशत: लोग आजकल केवल और केवल दिखावे के लिए ऊंची और बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, वायदे करते हैं लेकिन वास्तव में वैसा कुछ भी यथार्थ रूप में परिणित नहीं करते उसे कार्य रूप में परिणित नहीं करते। जैसे फिल्मी दुनिया में एक कहानी के ऊपर नकली रोल किया जाता है, उसी तरह आज के इस युग में अधिकांश लोग मीठी मीठी और अच्छी-अच्छी बातें तो करते हैं, लेकिन यथार्थ में उसको कार्य रूप में परिणित नहीं करते। यदि घर में एक व्यक्ति का  आचरण सुधर जाता है, तो सारे परिवार के आचरण में सुधार आने लगता है।   जब किसी परिवार के आचरण में सुधार आता है, तो समाज में भी समाज के आचरण में भी सुधार आने लगता है, और जब समाज के आचरण में सुधार आने लगता है तो इसका फैलाव सारे देश में होना सुनिश्चित है, किसी एक विशेष बहुल जाति समुदाय के गांव में तथाकथित जाति बहुल समाज का सरपंच रहता है, उसी गांव में अन्य तथाकथित अन्य जाति का एक व्यक्ति जो गांव में केवल एक ही अलग तथाकथित जाति का परिवार था, उस परिवार के साथ तथाकथित जाति बहुल के कुछ लोगों के द्वारा उसकी जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया जाता है। 
बेचारा तथाकथित अन्य जाति का उस गांव में केवल एक ही व्यक्ति था, अत: वह चुपचाप रह जाता है, और एक दिन जाति बहुल समाज के सरपंच के पास शिकायत लेकर जाता है कि अमुक- अमुक व्यक्तियों ने मेरी जमीन पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। सरपंच चौपाल लगाने की दिनांक तय करता है, वा नियत तिथि को चौपाल लगती है, गांव के वे लोग जिन्होंने उस इकलौते तथाकथित जाति के व्यक्ति की जमीन पर कब्जा किया था निश्चिंत थे की सरपंच तो हमारी ही जाति का है, और फैसला हमारे ही पक्ष में होगा। किंतु जिस दिन चौपाल लगी सरपंच ने दोनों पक्षों की बातों को सुना जांचा परखा और फैसला उस इकलौते जाति वाले व्यक्ति जिसकी वह वास्तव में जमीन थी के पक्ष में दिया। सरपंच की जाति वाले वे व्यक्ति जिन्होंने उस इकलौती जाति वाले व्यक्ति के जमीन पर कब्जा किया था वह सरपंच से नाराज हो गए,और कहने लगे की एक जाति वाला ही अपनी जाति वाले के विरोध में फैसला कर रहा है। 
यह अन्याय है तब उस सरपंच ने कहा कि मैं इस गांव का सरपंच हूं, और मेरा काम न्याय करना है, जातिवाद करना नहीं, जो सच्चाई है मैंने उसके पक्ष में मैंने न्याय दिया है- आज मानवता की जीत हुई है हमें जातिगत भेदभाव को छोड़कर  सभी के साथ न्याय संगत व न्याय पूर्ण कार्यवाही करना चाहिए।मैं सदैव जातिगत भेदभाव को छोड़कर मानवता के साथ सदा सत्य का साथ दूंगा। सत्य के साथ चलूंगा, यह होता है- व्यक्ति का आचरण जो किसी भेदभाव से ग्रसित नहीं होता, सच्चाई के पक्ष में होता है। व्यक्ति के आचरण में मानवता की झलक होनी चाहिए सभी व्यक्तियों को मानव के रूप में देखें, व उनके दुख दर्द और के साथ न्याय करें, जहां तक हो सके पूरी कोशिश के साथ, समस्त प्राणियों को न्याय की दृष्टि से देखें और उनका संरक्षण करें, सन्हार नहीं। यही कहलाता है। शुद्ध आचरण सदाचरण, व्यक्ति को अपने आचरण में समानता, दया ईमानदारी, परोपकार,अहिंसा जैसे सद्गुणों को विकसित करना चाहिए। उसकी सकारात्मक कथनी और करनी में समानता होनी चाहिए।