
जीवन को पवित्रतम बनाने के लिए ध्यान, भजन व कीर्तन में लग जाना है
मुंबई। मानव का जीवन आराधना-साधना-स्वाध्याय वगैरह में लगाने जैसा है। एक बात निश्चित है कि पेट परिवार स्वजनों जैसी आवश्यकता में समय देना जरूरी है, क्योंकि आप संसार को लेकर बैठे हो। पेट परिवार एवं स्वजनों के लिए कितने व्यक्ति को अपने जीवन में संघर्ष करना पड़ता है तो कितने संतोष मानकर पैसा कमाने के साथ-साथ आराधना भी करते हंै। जो व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए हंै। उन लोगों को अपने जीवन को मात्र पवित्र ही नहीं बल्कि पवित्रतम बनाने का है। जीवन को पवित्रतम बनाने के लिए ध्यान, भजन व कीर्तन में लग जाना है। परम तत्वों के साथ जुड़ जाना है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धारक प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है एक प्रश्न उठता है, एक तरफ रात का भयंकर अंधकार है उस अंधकार में एक किरण का प्रकाश यदि आ जाए तो उस थोड़े से प्रकाश, आनंद को देता है। मान लो, ब्लैक आउट है लोग उलझन में है क्या करे? अचानक प्रकाश होता है बच्चे जोरशोर से आवाज करने लगते लाईट आ गई। सूक्ष्म दृष्टि से यदि देखा जाए तो जीवन प्रकाश पुंज की खोज है।
कहते है पूर्व जन्म में कुछ आराधना की होगी कि नहीं, कषाय त्याग की बात हमारे दिल को स्पर्शी होगी के नहीं परंतु जब परमात्म कृषा का प्रकाश जीवन में होता है तब अज्ञान रूपी अंधकार का नाश हो जाता है। एक छोटी सी किरण भी घोर अंधकार को नष्ट कर देती है। कविराज रविन्द्रनाथ टगौर ने एक अच्छी कविता बनाई है सूर्य पूर्व से पश्चिम की ओर जा रहाा था तभी सूर्य के मन में विचार आया तब तक पृथ्वी पर प्रकाश मैं फैला रहा था अब पृथ्वी का क्या होगा? तभी एक वृद्ध स्त्री हाथ में दीपक लेकर खड़ी है। सूर्य ने दीपक की ओर देखा और कहा, मुझे क्या देख रहा है, मैं तो अब जा रहा हूं। तभी दीपक कहता है भैया, मुझमे इतनी शक्ति नहीं कि सारी पृथ्वी पर प्रकाश फैला शकुं परंतु मुझसे जितना होगा उतना प्रकाश जरूर दे सकुंगा।
पूज्यश्री फरमाते है एक छोटा सा दीपक अंधकार का नाश करके प्रकाश दे सकता है तो हमारे जीवन में देव-गुरू की कृपा मिले, अच्छे मित्र का संग हो जाए तो हमारे जीवन से भी अज्ञान रूपी अंधकार का नाश हो सकता है कहते है अंधकार वह एक प्रकार का अज्ञान है विपरीत ज्ञान है।
जो व्यक्ति रोज का नया ज्ञान, अभिनव ज्ञान मिलाता है ऐसी आत्मा का, तीर्थंकर बनने की संभावना मेहनत करते थे तथा क्लबों में न जाकर वे भजन मंडली अथवा साधु संत का समागम करके अपने जीवन को सार्थक करते थे जो व्यक्ति धर्म को समझा है, संस्कारों को समझा है ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में कुछ मिलाये बिना नहीं रहते है। दक्षिण भारत के हिन्दु पेपर तथा टाईम्स ऑफ इंडिया तथा छत्तीसगढ़ का समवेत शिखर पेपर वालों को हमारा धन्यवाद है कि वे अपने पेपर में रोज सद्बोध तथा बोध कथा का उल्लेख करते है। हमें जो ज्ञान जहां से मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।
प्रकृति सूर्य से भरी है। विज्ञान ने प्रकृति को डिस्टर्ब किया है इसी कारण इस कोरोना महामारी का तांडव ऐसा फैला है कि लोग दु:खी बन गए है। इस महामारी के कारण हरेक के जीवन में जो अंधकार छाया है उस अंधकार को दूर करना है वह तभी शक्य है जब मानवी प्रकृति की रक्षा करेगी, मांसाहार का त्याग करेगी। शाकाहारी जीवन जीकर अपने जीवन में प्रकाश को प्रगटाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनेगी।