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मुंबई। जीवन वह उत्सव है यदि कोई मानव उस मृत्यु से डरे नहीं तो उनकी मृत्यु भी महोत्सव बन जाती है। हरेक मानवी को कभी न कभी इस दुनिया को छोड़कर जाना ही है, इसीलिए जीवन को पॉजिटिव बनाकर जिया करो।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धारक प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है जिन्हें परमात्मा पर प्रीति है उन्हें प्रतीती हुए बगैर नहीं रहती है। कोई भी कार्य करो श्रद्धा पूर्वक करो उसका फल मिले बगैर नहीं रहेगा। मान लो, आपने किसी कार्य को हाथ में लिया है वह कार्य पूरा करने में किसी प्रकार की कठिनाईयां आपको महसूस हो रही हो तो उस कार्य को आप परमात्मा पर छोड़ दो, पूरी श्रद्धा से आप परमात्मा में लीन बन जाओ, सफलता जरूर मिलेगी। कभी भी आपको हाथ में लिया हुआ कार्य अटक जाए तो चिंतित मत बनों, श्रद्धा एवं आस्था से परमात्मा पर विश्वास रखो कार्य पूरा होगा ही।
एक बार पू. गुरूदेव विक्रयसूरि महाराजा की निश्रा में सिकंद्राबाद से पालिताणा का छरी पालित संघ था। संघ यात्रा खूब भव्य तरीके से चल रही थी मगर एक दिन यकायक रात को 9.00 बजे छरी पालित संघ के कार्यकर्ता गुरूदेव के पास आए। उनका मुख चिंतित तथा गुरूदेव से कहां, गुरूदेव! कल जहां मुकाम करना है उसकी व्यवस्था नहीं हो पाई। कल कहां ठहरेंगे? गुरूदेव ने कहां, चिंता मत करो। कल देखा जाएगा। पूज्यश्री गुरूदेव के पास विराजित थे। गुरूदेव तो चिंता किए बगैर सो गए। पूज्यश्री तो सोचते रह गए। संघ के व्यवस्थापक अपनी जगह चले गए। कहते है, परमात्मा पर श्रद्धा, महापुरूषों के वचनों पर श्रद्धा रखने से कार्य की सफलता मिलती ही है पूज्यश्री फरमाते है जीवन के बादमृत्यु है ही, चिंता छोड़ दो अपने तरीके से जीवन जीओ जीवन उत्सव है तो मृत्यु महोत्सव बन जाएगा।
परमात्मा पर श्रद्धा रखने वाले के कार्य रुलीभूत होते है इसी तरह महापुरूषों के मन में जो स्फूर्णा प्रकट होती है उसी के मुताबिक प्रकृति भी उसका साथ देती है। महापुरूषों का वचन कभी व्यर्थ नहीं जाता उनके वचनों में तो जादू छूपा है जो अनुभव करता है वह आश्चर्य चकित बन जाता है।
एक बार हेमचंद्राचार्यजी को किसी श्रावक ने पूछा, साहेब! आज क्या है. हेमचंद्राचार्यजी के मुख से निकल गया पूनम। वास्तव में अमावस थी। बजु में कोई श्रावक बैठा था उसने कहां, आज तो अमावस है साहेब पूनम कैसे बोल रहे है? तभी हेमचंद्राचार्यजी को हुआ आज तो वास्तविक में अमावस है लेकिन मेरे मुख से पूनम निकल है तो मेरे वचन व्यर्थ नहीं जान ेचाहिए। हेमचंद्राचार्यजी ने तुरंत अपनी मंत्र शक्ति से राशिया में रहे हुए सूर्य की किरण का प्रकाश खींच लाए और आकाश में पूनम का चंद ले आए। इसे देखकर श्रावक ताजुब हो गए ये होती है। महापुरूषों की वचनशक्ति। आप अपने सोने-चांदी जेवरात को सेफ डिपॉजिट में रख दो। आपको किसी बात की चिंता रहती है? नहीं साहेब। बस इसी तरह मैंने भी अपनी चिंता को परमात्मा के चरणों में रख दिया था फिर चिंता किस बात की थी।
पूज्यश्री फरमाते है महापुरूषों की महानता है कि जब भी चिंता आती है तो वे परमात्मा के चरणों में अपनी चिंता रख देते हैं। चिंता को चिता समान कहां है। कारण चिंता मृतक शरीर को जलाती है, जबकि चिंता जीवंत व्यक्ति की शक्ति को जला देती है, इसीलिए किसी ने कहा है- 
चिंता से चतुराई घटे, घटे गुण और ज्ञान
चिंता बड़ी अभागिनी, चिंता चिता समान
आज शांतिनगर सहजीवन में श्रीमती अनीलाबेन किरीटभाई की विनंति से पूज्यश्री उनके गृहांगण में पधारे। श्री विक्रय तीर्थ संस्कृति भवन की 12 वीं ध्यजा के प्रसंग पर महाप्रभाविक श्री भक्तामव पूजन का आयोजन इन परिवार वालों ने किया। पूज्य गुरूदेव विक्रयसूरि महाराजा को भक्तामर स्त्रोत पर अटूट श्रद्धा थी। केशरबाड़ी तीर्थ में इस स्त्रोत का प्रारंभ किया था और अंतिम श्वास तक इसे पकड़कर रखा। नादुरस्त तबीयत के बावजूद भी उन्होंने भक्तामर स्त्रोत का पाठ निरंतर रखा बल, आप सभी को भी ऐसे महाप्रभाविक भक्तामर स्त्रोत का पाठ करके जैन जयति शासनम् का नाद गुंजाना है।