
अहमदाबाद। एक भक्त अपने ग्राहक से दो लाख की उधारी लेकर अपने घर की ओर जा रहा था, अचानक उसका हाथ अपनी लेब में गया। जेब में जैसे ही हाथ गया हाथ बाहर आ गया, भक्त के मुख से निकला, जिनके भाग्य में था उसके हाथ गया है। भक्त के मुख से निकला यह पैसा जिनके हाथ लगा है उनका भी कल्याण हो।
पूज्यश्री फरमाते है जो परमात्मा का भक्त है उसे तो पैसे मिले से उसमें भी आनंद था, औरों के हाथ गया उसमें भी आनंद ही है। भक्त को पैसे गए उसका दु:ख नहीं है क्योंकि वह परमात्मा की भक्ति में मस्त है परमात्मा मय बन गया है।अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य, नूतन गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए पूज्यश्री ने अपने काव्य में लिखा है।
प्रभु तारी जात मां, अमे जात बोली
प्रभु ना आ भक्तों ने, रोज से दिवाली
हमारी जात किस प्रकार की होनी चाहिए? हमारी जात परमात्मा रूप हमारी जात क्षमा रूप हमारी जात नम्रता रूप तथा हमारी जात सरलता रूप होनी चाहिए। ये गुण जिस भक्त में आ जाए उसके लिए तो रोज ही दिवाली है। जो व्यक्ति परमात्मामय बन गया उस पर जहर तो क्या, किसी का क्रोध भी असर नहीं करता है।
कृष्ण मिले तो मीरा कृष्ण दिवानी बन गई। हर वक्त कृष्ण के नाम की ही माला फिराया करती थी। एक सर लोगों ने राणाजी से पूछा इस मारी ने भगवान में ऐसा क्या देखा है कि तुम्हें छोड़कर कृष्णा को याद करारी है। राणाजी ने मीरा को कहा तुझे मेरे परमात्मा पर इतनी ही हाथ है तो ले इस जहर को पी। मीरा ने बिना किसी झिझक के जहर को पी लिया। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है जो परमात्मामय बन जाता है उसका कोई बालबांका नहीं कर सकता इतिहास साक्षी है कि राणीजी ने मीराबाई को जो जहर पिया वह अमृत रूप बन गया।
पूज्यश्री फरमाते है आप सभी नसीब वाले हो कि आपको परमात्मा का शासन मिला, वीतराग की सेवा का मौका मिला सर्वज्ञ के वचन मिले तो मीरा को कृष्ण मिले।एक बार राजा का फरमान आया। सोक्रेटीश को जहर का प्याला दिया जाया। सोक्रेटीश के मित्रों को जैसे ही समाचार मिले उन्होंने सोक्रेटीश सेकहा, हम तुम्हें किसी कभी प्रकार से उपया करके भगा देंगे। लेकिन सोक्रेटीश ने मित्रों की बात न मानी क्योंकि उन्हें अपने ईश्वर पर पूर्ण श्रद्धा थी। हंसते हंसते जहर का प्याला घट घटा लिया।
परमात्मा के चरण में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दो, परमात्मा में तल्लीन बन जाओ आपका जीवन बन जाएगा। जिन शासन के प्रति समर्पित भी कितने लोग देखे है।
साऊथ में कितने जैनों को लाईन में खड़ा रखकर कहा, आपका धर्म छोड़कर नमो जिणाण के बदले नमो शिवाय बोलना पड़ेगा। वहां बैठे 10,000 जैनों खड़े हो गए। उन्होंने शिव धर्मी को कहा, हम अपनी जान दे देंगे लेकिन हम हमारे धर्म को तो नहीं छोड़ेगे। जैनं जयति शासनम् का नाद गुंजाने वाले लोग आज भी है। जिन शासन के लिए अपनी जीवन कुर्बान करना पड़े तो भी तैयार रहेंगे। शासन का कहीं खराब लगने नहीं देंगे। जहां जाएगें वहां परमात्मा के शासन का नारा जरूर लगाएगें।
एक बार किसी व्यापारी की भूल से जैन श्रावक के हाथ में दस लाख रूपिये आ गए। वे हमारे पास आए साहेब! इन पैसों का क्या करूं? क्या इन पैसों से उपथान तप करवा लूं। हमने कहा, भैया जिसके पैसे है उन्हीं को आप लौट दो। वे भाई उन पैसों को वापिस देने गए व्यापारी ने कहा, मुझे तो याद नहीं कब मैंने आपको दस लाख दिए। जैन श्रावक की ईमानदारी को देखकर व्यापारी अपना माल कुछ ज्यादे पैसों में बेचने वाला था उस माल को ज्यादा पैसे लिए बगैर ही श्रावक को वह माल बेच दिया। पूज्यश्री फरमाते है श्रावक ने ईमानदारी से पैसे वापिस लौटाए तो तीस लाख रूपियों का फायदा हुआ। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है जो व्यक्ति किसी का भला नहीं करता है उसका हमेशा अच्छा ही होता है जैन कुल में जन्म लिया है जैन बनकर जीएगें और हमेशा परमात्मा को समर्पित बनकर रहेंगे। बस, आज गच्छाधिपति का वधामणा खूब ही उल्लास एवं उत्साह से देश-विदेश से पधारे हुए भक्तजनों ने किया। संगीतकार शनि ने भी संगीत की धून लगाकर गुरू वधामणा किया।