
अहमदाबाद। परम मंगलकारी परमात्मा के शासन को पाकर कितने संसारी वैराग्य को पाकर संयम के मार्ग पर अग्रेसर होते हैं। कितने तो छोटी उम्र में दीक्षित हो जाते हैं, तो कितने यौवन में गुरु के संसर्ग में आकर दीक्षित होते हैं तो कितने संसारी सुखों को भोगकर वृद्ध अवस्था में भी दीक्षित होते हैं। कहते हैं 18 वर्ष के ऊपर की उम्र वाला यदि कोई दीक्षित होता है तो वह व्यक्ति सोच समझकर ही संयम के मार्ग को अपनाता है किन्तु छोटी उम्र में यदि कोई दीक्षित होता है उसके पीछे कुछ कारण जरूर है।
प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य, गच्छाधिपति प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए छोटी उम्र में यदि कोई दीक्षित होता है उसका कारण पूर्व के भव में किसी साधु को देखकर वह गद्गादित हुआ हो अथवा तो बार-बार साधु के दर्शन से स्मृति दिमाग में बैठे गई हो तो भी छोटी उम्र में दीक्षा के भाव आते है अथवा तो फलाणा व्यक्ति ने पूर्व के भव में दीक्षा ली है उसी के फलस्वरूप उसे छोटी उम्र में प्रव्रज्या लेने को मन होता है, छोटी उम्र में यदि कोई दीक्षित होता हो तो समझ लेना उसमें पूर्व के संस्कार है तथा यदि कोई माता भी उसे बचपन से संस्कार दे तो परिणाम उसके भाव चरित्र लेने के लिए अधीर बनता है।
कहते है अच्छे से अच्छा बीज हो. मिट्टी में बोया हो यदि उसे पानी मिले तो वह बीच फलीभूत होकर वृक्ष का रूप लेता है इसी तरह यदि कोई बालक पूर्व भव के संस्कार लेकर आता है एवं मां उसमें पानी रूपी संयम के संस्कार डालती है तो वह बालक छोटी सी उम्र में परमात्मा के बताये मार्ग पर अग्रेसर होता है।
आज मुुमुक्षु तीर्थेश गच्छाधिपति के आशीष हेतु सोला रोड आया जिसकी उम्र सिर्फ 22 वर्ष की है। पूज्यश्री फरमाते है मुमुक्षु तीर्थेश का इतना छोटी उम्र में दीक्षित होना बड़े गर्व की बात है। पूर्व के संस्कार तो उसमें होंगे ही किन्तु उसके पिता विपुल भाई एवं माता शिल्पा ने भी मुमुक्षु तीर्थेश में बचपन से संयम में संस्कार दिए इसी का परिणाम मुमुक्षु तीर्थेश पूज्यश्री गच्छाधिपति बने उसके तुरंत ही रजोहरण पूज्यश्री के कर कमलों द्वारा प्राप्त किया।पूज्यश्री मुमुक्षु तीर्थेश को उद्बोधन करते हुए संयम के आशीष देते हुए फरमाया लब्धि समुदाय की तीन त्रिपदी है जिन भक्ति, गुरूभक्ति तथा, गुणानुराग पूज्यश्री जिनभक्ति पर प्रकाश डालते हुए फरमाया जिनभक्ति याने बीतराग की भक्ति में मस्त बन जाना। दादा गुरूदेव लब्धि सूरि महाराजा ने खूब ही सुंदर सुंदर स्तवनों की रचना के है कि लोग स्तवन गाए हुए भक्ति में तल्लीन बन जाते है।
विक्रय सूरि महाराजा की जिन भक्ति देखकर चिंतक एवं साधक ने बताया जो व्यक्ति विक्रम सूरि महाराजा की जिन भक्ति एवं चैत्यवंदन को करते हुए देखता है उस दृष्टा को सम्यक्त्व की प्राप्ति अवश्य हो जाती है। प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए गुरू भक्ति पर प्रकाश डालते हुए फरमाया एक बार लब्धि महाराजा के गुरू कमलसूरि महाराजा में लब्धिसूरि को बुलाकर आज्ञा की। आज फलाणा स्थान पर जाकर व्याख्यान जाना है। लब्धिसूरि महाराजा ने अनुबंध गुरू आज्ञा है तुरंत तैयार हुए। कितने तो बहाना ढूंढ लेते है तबीयत ठीक नहीं है, काम अधूरा है, भक्त वर्ग बैठे है कैसे जाऊं। लब्धि सूरि महाराजा गुरू आज्ञा तहत्ति करके गए। जब वे व्याख्यान करके गुरू के चरमों में वंदन हेतु आए गुरू ने देखा, अरे इसका शरीर तो गरम है बुखार है फिर भी इसने मुझे कुछ नहीं कहां गुरू भक् ित हो तो ऐसी हो। दूसरी भी घटना है, विक्रम सूरि महाराजा के पट्टधर पू.स्थूलभद्र सूरि महाराजा रोज के क्रम के मुताबिक गुरूदेव के पैर दवाते थे। गुरू की आज्ञा नहो तब तक वे वहां से उठते नहीं है। एक रात स्थूलभद्र सूरि गुरूदेव के पैर दवा रह थे कि गुरूदेव को नींद लग गयी। स्थूलभद्र सूरि वहां से उठे नहीं वे तो पैर दबाते ही रहे। अचानक 12.00 बजे गुरूदेव की आंख खुली। उन्होंने देखा तो शिष्य इसी तह पैर दबा रहे थे। गुरूदेव ने गिच्छामि दुक्कडं देकर आज्ञा की कि अब आप अपने जयान पर जाकर आराम फरमा सकते हो से उठ सेवा करो तो ऐसी करो गुरू आज्ञा तहत्ति।तीसरी त्रिपदी है गुणानुराग। कभी भी किसी भी व्यक्ति में रहे सद्गुणों को देखो उसके गुणों को देखकर खुश रहो, अन्य के आगे उनके गुणों की प्रशंसा एवं अनुमोदन करो। कभी किसी की निंदा न करो बस, इन तीन त्रिपदी को अपने जीवन में अमल करके शीघ्र आत्मा से महात्मा बनकर परमात्मा पद को प्राप्त करो यही शुभाशिष।