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डॉ. रामकिशोर उपाध्याया
नई शिक्षा नीति को लेकर चारों ओर उत्साह का वातारण है। इन दिनों देशभर में नई शिक्षा नीति को लेकर संगोष्ठियाँ, परिचर्चाएँ, सेमिनार एवं कार्यशालाएँ आयोजित की जा रही हैं। अभी हाल ही में जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर में एक क्षेत्रीय सेमीनार का आयोजन किया गया। इसमें विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के अखिल भारतीय सह-संगठन मंत्री के.एन. रघुनन्दन जी ने नई शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में शिक्षक-शिक्षा: चुनौतियाँ एवं समाधान विषय पर जो उद्बोधन दिया उसे सार रूप में यों समझा जा सकता है।
नई शिक्षा नीति 2020, भारत केन्द्रित शिक्षा नीति है। भारतीय संस्कृति, इतिहास और नैतिकता इसकी पृष्ठभूमि में है। यह नए युग की शिक्षा का नवसूत्र है। यह लचीली, संवेदनशील एवं न्याय सम्मत है। यह वंचित और संपन्न, शासकीय और प्राइवेट सभी के लिए एक समान है। इसमे गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा को महत्व दिया गया है। करीकुलर, को-करीकुलर एवं एक्स्ट्रा करिकुलर गतिविधियों को समायोजित कर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाने की बात कही गई है। मल्टीडिसिप्लिनरी पाठ्यक्रम बनाये जाने पर ध्यान दिया गया है। साइंस वाला विद्यार्थी कॉमर्स भी पढ़ सकता है और चाहे तो अन्य कला संगीत भी अपनी रुचि के अनुसार ले सकता है। इसके लिए शिक्षकों का योग्य होना भी आवश्यक है। इस शिक्षा से शिक्षित विद्यार्थी मल्टीडिसिप्लिनरी व्यक्तित्व का धनी होगा।
बंगलुरु के सुभाष गोपीनाथन ने सोलह वर्ष की आयु में अमेरिका में सॉफ्टवेयर कंपनी बनाई और सफल उद्यमी बन गए। हमारे देश में तो कम उम्र के बच्चों द्वारा कारोबार आरंभ करना भी मुश्किल है। एकबार गोपीनाथन भारत आए तो उनसे भारत के बारे में प्रश्न पूछे गए, तब उन्होंने कहा कि अपने देश में जिस से भी मिलो वह पहले यही पूछता है कि आपकी शिक्षा क्या है? कोई यह नहीं पूछता कि आपकी उपलब्धि क्या है। अपने देश में स्किल से अधिक महत्व डिग्री का है इसीलिये अनपढ़ों में बेरोजगारी का प्रतिशत कम है जबकि डिग्रीधारियों में बेरोजगरी अधिक है। डिग्रीधारियों में योग्यता की कमी है। अधिकांश ऐसे हैं जो प्रतियोगी परीक्षा पास नहीं कर पाते। हमारे कॉलेजों में शिक्षित विद्यार्थियों में अधिकांश टीईटी परीक्षा भी पास नहीं कर पाते क्यों? यह देखना होगा कि हमारे महाविद्यालयों की शिक्षा की गुणवत्ता इतनी खऱाब क्यों हुई कि विद्यार्थी शिक्षक बनने की पात्रता परीक्षा भी पास नहीं कर पाते।योग्य शिक्षक जबतक नहीं आएँगे तबतक योग्य विद्यार्थी कैसे निकलेंगे। नेशनल काउन्सिल ऑफ टीचर्स एड्युकेशन, लघु (हृष्टञ्जश्व) का काम है, आदर्श शिक्षक का निर्माण। जब विद्यालय चलाने में शिक्षक की भागीदारी होगी, जब पढ़ाने वाला शिक्षक यह सोचेगा कि मुझे भी अपने विद्यालय का विकास करना चाहिए तथा विद्यार्थी यह सोचें कि विद्यालय के विकास में उनकी क्या भूमिका होनी चाहिए तब शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगा। वर्मा कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि लगभग दस हजार शैक्षणिक संस्थान बंद करने लायक हैं। शैक्षणिक संस्थान का उद्देश्य केवल डिग्री बाँटना नहीं है। ज्ञान केवल डिग्रियों में नहीं है इसीलिये कई पद्मश्री और पद्म विभूषण ऐसे लोगों को मिले जिनके पास कोई विशेष डिग्री नहीं थी किन्तु वे अपने-अपने क्षेत्र में श्रेष्ठ हैं। हमारे विश्वविद्यालयों ने कितने महान कलाकार, महान खिलाड़ी या महान संगीतज्ञ पैदा किये इस बात के मूल्यांकन की आवश्यकता है।
प्रत्येक विश्वविद्यालय अपने आसपास की समस्याओं को चिन्हित करे फिर उनके समाधान के लिए शोध करे। समस्या के समाधान के लिए शोध हो तभी उसका महत्व है। आप जितना शोध और नवाचार को महत्व देंगे उतना ही विकास होगा। चाहे किसी भी विषय का छात्र हो उसका विचार भारत केन्द्रित होना चाहिए। हमारे देश में गरीबी के कारण घर बनाना एक समस्या है तो हमारे आर्किटेक्ट का उद्देश्य होना चाहए कि कम मूल्य में घर कैसे बनाया जाए।
जब हम भारत केन्द्रित शिक्षा की बात करते हैं तो पहले हमें भारत को समझना होगा। भारत को समझने के लिए भारतीय दर्शन को समझना होगा। अँगरेजों के आने से पूर्व भारतीय व्यवस्था को अंगरेजों के बाद की व्यवस्था को समझना होगा। अँगरेजों के आने से पूर्व हमारे यहाँ स्त्रियाँ भी पढ़ाती थीं अब इन बातों के प्रमाण भी हमारे पास हैं। इतिहासकार धर्मपाल जी ने इस दिशा में बड़ा महत्वपूर्ण कार्य किया है। भारत को समझने के लिए उनकी पुस्तकों का अध्ययन करना पड़ेगा।
भारतीय शिक्षा में व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास कैसे हो इसपर जोर दिया जाता है। यदि किसी को भारतीय शिक्षा पद्धति कैसे कार्य करती है यह देखना हो तो उसे एकबार विद्या भारती की शिशु वाटिका का भ्रमण अवश्य करना चाहिए। विद्या भारती की दस हजार शिशु वाटिकाएँ एक मॉडल के रूप में कार्य कर रही हैं। इनमें तीन लाख विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। पहले कहा जाता था कि अधिक पढ़ा (ज्ञानी) लिखा घर छोड़ देता था अर्थात विरक्त हो जाता था किन्तु अब अधिक पढ़े-लिखे अधिक भ्रष्ट हो रहे हैं। शिक्षा में भारतीय लोकाचार या मान्य लोक परम्पराओं (इथोस) की अवहेलना के कारण ऐसी स्थिति निर्मित हुई। अब कई वर्षों बाद पहली बार वैसी शिक्षा नीति बनी है जैसी भारत के लिए बननी चाहिए थी। आज अन्य देशों के लोग भी हमारी शिक्षा नीति का अध्ययन कर रहे हैं।