मुंबई। कविकुल किरीट प.पू. लब्धि सूरि महाराजा द्वारा रचित सज्झाय जो वैराग्य से भरी है कहते है दुनिया में जो भी व्यक्ति आता है, वह एक मुसाफिर की तरह है। इस सज्झाय से पूज्यश्री हमें समझाना चाहते है जिसे हम अपना मानकर बैठे है उसे एक दिन छोड़कर जाना है।
तुं चेत मुसाफिर चेत जरा, क्यों मानत मेरा-मेरा है
इस जग में नहीं कोई तेरा है, जो है सभी अनेरा है
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है आप किसी तीर्थ स्थान में गए वहां एक धर्मशाला में रूम लेकर ठहरे। उसी रूम में आपसे पहले भी कोई आया था वह भी उस रूम में दो दिन की स्थिरता करके चला गया। आप भी जितने दिन के लिए आए हो उतने दिन रूककर चले जाओंगे। हर हमेशा के लिए वहां नहीं ठहर पाओंगे क्योंकि हरेक धर्मशाला का नियम है सिर्फ दो-तीन दिन की ही स्थिरता करना । इसी तरह हमने भी यह मानव भव पाया है। यहां भी हम जितना आयुष्य लेकर आए है उतना ही रह पाएगें। आयुष्य पूरा होने ही हमें यहां से छोड़कर अन्य भव में जाना ही पड़ेगा।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है मानव यह भूल गया कि उसे एक दिन इस संसार को छोड़कर जाना है क्योंकि उसे जगत के पदार्थ एवं प्राणी पर राग हो गया है। इस राग के कारण यह अंधा हो गया है और वह भूल गया है कि उसे एक दिन इस दुनिया से जाना पड़ेगा।
सिकंदर जैसे भी जब इस दुनिया से विदाई लिया तब अपने साथ कुछ भी लेकर नहीं गया। खाली हाथ आए है खाली हाथ जाएगे। फिर भी लोग सुबह से शाम तक सामग्री इकट्टी करने के लिए दौड़ रहे है। तुमने जितनी भी सामग्री इकट्ठी की है वह सभी सामग्री का उपभोग आपने किया होगा की नहीं अथवा बिना उपभोग के वह सामग्री ऐसी ही पड़ी है, तो भी उस सामग्री को साथ में नहीं ले जा पाएगें।
चीफ मैनेजर की पोस्ट पर रहा हुआ किशनलाल के परिवार में कोई नहीं है। कुछ वर्षों पहले, कार की टक्कर से उनकी पत्नी एवं इकलौते पुत्र की मौत हो गई। अब घर में वे सिर्फ अकेले रह गए। काफी धन उन्होंने अपनी युवानी में कमाया था वे सभी बैंक में जमा थे। अकेले हो जाने पर उनका खर्चा भी ज्यादा नहीं था। एक दिन सुबह हाथ में अखबार लेकर बैटे थे कि अचानक हार्टपेल हुआ इस दुनिया से विदाई ले ली। बैंक में काफी धन जमा था उसे भी साथ नहीं ले गए और न ही उन्होंने, उनका धन, किसी रिश्तेदारों के नाम किया। धन यहां ही पड़ा रह गया। पूज्यश्री फरमाते है युवानी के जोश में किशनलाल धन कमाने में लग गए तो कभी उन्होंने धर्म कार्य नहीं किए और न ही कभी अपनी समझ से उस धन का सत्कार्य में व्यय किया। किशनलाल ने अपने बेटे एवं पत्नी के लिए यह सभी धन रात दिन पसीना एक करके कमाया था लेकिन पत्नी और लड़का तो चल बसे, धन यहां रह गया। युवानों आप भी सतर्क रहो। आप इस जगत में मुसाफिर की तरह आए है मुसाफिर की तरह जाएगें। पुत्र-पत्नी-मित्र-परिवार-धन-सामग्री विगेरे सब यहीं छोड़ जाएगें। कुछ भी साथ नहीं आएगा इसलिए इन पदार्थ एवं प्राणी से राग नहीं करना।
संसार का परिभ्रमण कराने वाले में यदि कोई मुख्य कारण हो तो वह, राग एवं द्वेष है जो व्यक्ति राग द्वेष करेगा उनको संसार में भटकना ही पड़ेगा, उनका मोक्ष कभी नहीं होगा। यदि आप मोक्ष को चाहते हो तो आपको राग द्वेष दूर करने पड़ेंगे। आचार्य हरिभद्र सूरि महाराजा की रचित पुस्तक समरादित्य कथा सचमुच एक बार तो पढऩे जैसी है कहते है, समरादित्य कथा के अन्त में लिखा है इस कथा को पढऩे के बाद भी यदि आपमें वैराग्य भाव नहीं जगे तो समझ लेना कि आपको संसार में भटकना ही है। जो व्यक्ति संसार में परिभ्रमण करेगा उनका कभी मोक्ष नहीं होगा। कहते है, जितने भी पदार्थ आपको संसार में परिभ्रमण का कारण लगता है उन सभी को आपसे दूर करना होगा तभी आपको मोक्ष मिल सकता है। बस, वैराग्य जगाने वाली पुस्तकों का सद्वांचन करो, प्रवचन श्रवण करो शीघ्र आत्मा से महात्मा बनकर परमात्मा बनों।