
अहमदाबाद। परम मंगलकारी अरिहंतों में परार्थ की भावना रही हुई है। चाहे तीर्थंकर किसी भी प्रकार का उपदेश न देते फिर भी उनका मोक्ष निश्चित है। परंतु जगत के जीवों को मोक्ष मार्ग की साधना मिले, परार्थ की भावना से, परार्थ की कामना से ही वे धर्मोपदेश देते हैं। तीर्थंकर परमात्मा इस जगत पर उपकार धर्मोपदेश के माध्यम से ही करते हंै। तीर्थंकर परमात्मा किसी का हाथ पकड़कर उसे मोक्ष में नहीं ले जाते है, बल्कि सभी जीवों को मोक्ष का मार्ग बताते हंै। यही सबसे बड़ा उपकार परमात्मा का है। यदि परमात्मा हमें सभी मार्ग का ज्ञान न बताते तो जीवन इस संसार चक्र में भटकते रहते।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार जैनाचार्य प.पू. राजयशसूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है, परमात्मा ने दान-शील-तप एवं भाव इन चार प्रकार से धर्म की प्ररूपणा की है। मुसीबतों के समय में यदि किसी ने हम पर उपकार किया हो तो हमें अच्छा लगता है। किसी का उपकार अच्छा लगे तो हमें भी किसी ने हम पर उपकार किया हो तो हमें अच्छा लगता है। किसी का उपकार अच्छा लगे तो हमें भी किसी न किसी का परोपकार करना ही चाहिए। भगवान के बताए हुए चार प्रकार के धर्म हमें परोपकार करने का मौका देता है चार प्रकार के धर्म हमें परोपकार करने का मौका देता है चार प्रकार के धर्म में प्रथम दान धर्म बताया है। ज्यादातर लोगों की आदत किसी को देने के बजाय लेने में ज्यादा रूचि रखते है। आज तक हमने किसी बेंक, का नाम लेना बेंक नहीं सुना लेकिन देना बेंक जरूर सुना है।प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है, हमारी वृत्ति लेने की इतनी बढ़ गई है कि जहां कुछ मिलता हो वहां धक्कामुक्की किए बिना नहीं रहते है। कोई चीज सस्ते में मिलती हो वहां भी दोड़ते हो तुम्हारी इस वृत्ति को जानकार दुकानकार सेल के नाम पर एक एक फ्री कहकर तुम्हें मूर्ख बनाते है लेकिन उस माल की पूरी कीमत उसी में ले लेता है।
बारिश का मौसम था। सामने एक छत्री की दुकान दिख रही थी। मूलाजी दुकान में छत्री खरीदने गए। भाई! इस छत्री का क्या भाव है? उ36 रूपिया। छत्तीस में कौन खरीदेगा अठारह रूपिये में देना है तो दो। सुबह सुबह बोणी का समय था। जाने दो पहला ग्राहक है जितना मिले। ये सोचकर उसने मूलाजी से कहा, ले लो अठारह में। अरे! अठारह भी ज्यादा है नव में देना है तो दो। ले लो, नव में। अरे भैया, नव भी कुछ ज्यादा ही बोल रहे हो? साढ़े चार में देना है तो लंूगा वरना जा रहा हूं। भाई! साढ़े चार क्यों? मुफ्त में ही ले जाओ। मुफ्त में ही देना है तो एक के ऊपर एक, दो दे दो ना।
हमारी भी हालत यही है, जब हम आपको कुछ कहते है, सिद्धितप करो नहीं साहेब मंहेंगा है थोड़ा सस्ता तप। शत्रुंजय तप करो साहेब! दो दो अट्ठम एवं सात छट्ठ आते है नहीं होता है। तो आयंबेल करो? लूखा सूखा कौन खाएगा? नहीं भाता है। एकासणा करो? साहेब! एक टाईम खाने से शाम को भूख लगती है। बीयासणा करूं? सस्ते में पटाना चाहता है।इसी तरह साहेब! दो टाईम व्याख्यान रखते हो एक टाईम आऊं, चलेगा? सब चीजों में हमें कन्सेशन चाहिए। मुफ्त का माल अच्छा लगता है लेना नहीं बैंक बनो। हमारे पास कोई चीज दो है दूसरे को उसकी जरूरत है परोपकार करो। मानवभव बार-बार नहीं मिलेगा किसी भी प्रकार से परोपकार करके सार्थक बनाना है कब आयुष्य पूरा हो जाएगा यमराजा कब ले जाएगा इस दुनिया से निकलने से पहले परोपकार करके आत्मा से परमात्मा बनों।