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अहमदाबाद। मानव भव हमें मिला है सिर्फ भोग एवं विषयों में रमणता करने के लिए नहीं, अपितु हमारा लक्ष्य जो मोक्ष है। उसकी प्राप्ति के लिए हमें अध्यात्म की ओर आगे बढऩा होगा। अध्यात्म की ओर बढऩे के लिए हमें आत्मा की ओर, सद्गुणों की ओर तथा प्राणी मात्र के हित की ओर बढऩा होगा। पर पीड़ा को दूर करना-परोपकार करना ये गुण मानवी को अध्यात्म की ओर बढ़ाएगा ही किंतु विषय प्रवृत्ति का त्याग भी मानव में अध्यात्म को प्रगटाएगा।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते हैं कितने लोग अपने पेट के लिए तो कितने अपनी जीभ के लिए तो कितने भोग सुख के लिए भी जीवन जीते हं तो कितने ऐसे भी जीव है जो अपनी आत्मा के लिए भी जीवन जीने का पसंद करते है। अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं इन्द्रियों के आकर्षण इतने बढ़ गए है कि लोग अपना संपूर्ण जीवन इन भोग सुख के पीछे पूरा कर देते हंै। भोग सुख वह आत्मा का सुख नहीं है। मानलो, धंधे में एक रूपियो का नुकसान हुआ तो आपको तुरंत दु:ख होता है कि आपको एक रूपिये का नुकसान हुआ इसी तरह इन्द्रिय के सुख गंवाया तो एक रूपिये का नुकसान और आत्मा का सुख गंवाया तो अरबो रूपियो का नुकसान हुआ उसका आपको अफसोस नहीं होता है। आप आत्मा के सुखे के पीछे नहीं अपितु इन्द्रियों के सुख के पीछे पागल बनकर दौड़ रहे हो। इन्द्रियों के सुख के पीछे दौड़ते-दौड़ते मानवी अपनी सुध-बुध खो बैठता है कि वह क्या कर रहा है उसका उसे होश नहीं रहता।
समाचार पत्र में कैसा कैसे समाचार आते है कि चार महीने की लड़की पर उसके सगे बाप बलात्कार करता है इन्द्रियों के सुख के पीछे पागल मानवी सुध-बुध तो खोता ही है साथ ही उसे दुनिया की भी शरम-लाज नहीं रहती है।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है आत्मा वह अमृत का झरना है अध्यात्म जीवन जीने के लिए विषयों की वृत्ति एवं विषयों की प्रवृत्ति इन दोनों से पीछे हटना होगा। मानलो, आपको विषयों की प्रवृत्ति करनी भी पड़ तो वृत्ति से तो दूर ही रहना हितकर है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है पुण्योदय बढ़े ऐसी प्रवृत्ति करते रहो। अब तक भोग सुख एवं इन्द्रियों के सुख के पीछे ही पड़ रहे। संगम ने खीर का दान देकर ऐसा पुण्योदय प्राप्त किया कि शालिभद्र के भव में उसे रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति हुई। आज जो वस्त्र-दागी ने पहने है उसे दूसरे दिन उतारकर फेंक देता था। 32-32 रानीओं का सुख भी मिला। कहते है विषयों की प्राप्ति होना वह पुण्योदय है तो विषयों में लिफ्ट जाना वह पापोदय है।
शालिभद्र को अपार संपत्ति-सुख एवं 32 रानीओं का सुख मिला परंतु वे किसी में भी लिपटे नहीं जो व्यक्ति भोग सुख एवं विषयों की प्रवृत्ति से दूर रहता है उसमें अध्यात्म का का प्रगटीकरण होता है।
किसी राजा ने अपनी पुत्री की शादी के लिए श्रेष्ठ वर की खोज में दौड़ की स्पर्धा रखी। तीन पुरूष इस स्पर्धा में भाग लिया। दौड़ जैसे ही चालु हुई तीनों पुरूष दौड़े। दो पुरूष आगे बढ़ गए। एक पुरूष पीछे रह गया उसने अपने आगे दौडऩे वाले स्पधार्थीओं को हसने के लिए उससे आगे दौडऩे वाले स्पधार्थीओं को हसने के लिए, उससे आगे दौडऩे वाला स्पधार्थी के आगे सोने की बॉल फेंकी। स्पधार्थी सोने की बॉल को देखकर ललचा गया और उसे लेने पीछे रह गया। तब तक जो तीसरा स्पधार्थी थावह उस स्पधार्थी से आगे बढ़ गया। लेकिन लालची स्पधार्थी कुछ उतावला चलने वाला था। अब इस तीसरे स्पधार्थी ने उसे हराने के लिए दूसरी सोने की गेंद फिर से उस लोभी स्पधार्थी के आगे फेंकी। वह लालची स्पधार्थी सोने की गेंद देखकर ललचा गया। उस गेंद की लालच में जैसे ही वह पीछे रहा कि तीसरे स्पधार्थी ने तेज से दौडऩा शुरू किया। सिर्फ 5-6 कदम ही बाकी थे कि तीसरे स्पधार्थी अपने लक्ष्य तक पहुंच गया लोभी स्पधार्थी सोनी की गेंद की लालच में सिर्फ 5-6 कदम के लिए हार गया। राजा ने तीसरे स्पधार्थी को सोने का हार पहनाया एवं अपनी राजपुत्री की शादी भी उसके साथ कर दी।
पूज्यश्री फरमाते है जो व्यक्ति विषयों सुखों के पीछे पागल बनता है वह मूल्यवान चीज को खो बैठता है। विषय सुख क्षणिक सुख है आत्मा के सुख के लिए प्रयत्नशील बनना है। जीवन में अध्यात्म की प्रतिष्टा करो-विषय प्रवृत्ति का त्याग करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनो।