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अहमदाबाद। जीवन के मंगलमय प्रवाहों में जिस प्रकार के वातावरण में हम रहते हैं उस प्रकार के संस्कार हमारी इंद्रियों में, हमारे मन में एवं हमारी आत्मा में आते हंै। अध्यात्म ध्यान के लिए शास्त्रकार महर्षि फरमाते है आपको अच्छे वातावरण में रहना चाहिए। वातावरण इस प्रकार का होना चाहिए कि वह आपको इन्द्रियों का सुख दे सके कि नहीं, मानसिक सुख दे सके के नहीं किंतु अंतर आत्मा में झलझलाहट जरूर दे सके। तथा अंतर आत्मा को कुछ अनुभूति हो ऐसा वातावरण होना चाहिए। वातावरण अच्छा होगा तो ध्यान करने के लिए बैठने की जरूरत नहीं पड़ेगी ध्यान सहजता से आ जाएगा।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, शक्तिनाथ मंदिर प्रतिष्ठाचार्य प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी म.सा. श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है महापुरूषों के दृष्टांत से ऐसा लगता है कि वे ध्यान करने नहीं गए परंतु ध्यान सामने से उनके पास चला आया। शास्त्रकार महर्षि बार-बार अच्छे वातावरण को महत्व देते है। जिससे अच्छे वातावरण में अध्यात्म ध्यान अच्छी तरह से हो सके।
गुजराती भाषा का एक उपनिषध है, संग जेवो रंग। जिस प्रकार का संग होगा उस प्रकार का रंग अपने आप लगे बिना नहीं रहेगा। अध्यात्म ध्यान के लिए गुणानुरागी बनना पड़ेगा। कोई हम पर कितना भी क्रोध करे, क्रोध नहीं करना, कोई आत्मा हमें मान दे तो अभियान नहीं करना चाहिए तथा कोई कितना भी हमारे दोष कहे हमारे मन पर उसका असर नहीं लाना चाहिए। जो आत्मा निष्कपटी है-निर्मायी है उन आत्माओं को धन्य है उनके चरण छूने योग्य है। उन आत्माओं के दर्शन से हमारी आत्मा गद्गदित जरूर हो जाती है।
सरलता सत्य मार्ग है तो निर्लोभिता भी सुंदर मार्ग है। हमारे पास पैसे आएगें और चले भी जाएगें लोभ नहीं करना चाहिए। शास्त्रकार महर्षि हमें मम्मण सेठ का दृष्टांत बताते है। मम्मण ने पूरी जिंदगी मेहनत करके पैसे इकट्ठे किए कहते है श्रेणिक राजा से भी अधिक संपत्ति मम्मण सेठ के पास थी इसके बावजूद वे दु:खी थे। लोभी होने से संपत्ति इकट्ठी तो कर ली मगर उसका भोग किए बगैर मृत्यु को पाए।
पूज्यश्री फरमाते है यदि यही मानव इस संपत्ति का उपयोग किसी महान कार्यों में किया होता तो? इसी संपत्ति का उपयोग दान देने में किया होता तो? इसी संपत्ति से सुंदर तीर्थों का निर्माण किया होता तो? आज दुनिया में उस व्यक्ति की वाह-वाह हो गई होती।
कहते है जिन लोगों को किसी भी व्यक्ति पर गुस्सा नहीं आता और यदि गुस्सा आ भी गया तो ज्यादा समय तक टिकता नहीं वह व्यक्ति हिन्दु संस्कृति के मुताबिक भगवान तुल्य है। ऐसे महान व्यक्ति के पास हम जाकर यदि प्रश्न करते है कि कोई आप पर गुस्सा करे तो आपको उन पर गुस्सा नहीं आता है? तब वे कहते है मानलो, उन पर गुस्सा आ भी गया तो उससे उनको कोई फायदा नहीं हुआ है। इसलिए गुस्सा करने के कोई अर्थ नहीं है। ऐसे महापुरूषों का सहवास, सेवा सचमुच करने लायक है। उनकी क्रिया-हलन चलन तथा सहवास से व्यक्ति बहुत कुछ पा सकता है।
पूज्यश्री फरमाते है महापुरूषों को ध्यान करने के लिए वातावरण की शोध नहीं करनी पड़ती बल्कि वे यहां बैठे है वहीं ध्यानस्थ बन जाता हे। गुणानुरागी बनने के लिए हमारी दृष्टि को बदलनी पड़ेगी। अनादिकाल से हमें खराब ही दिखता है कहते है मोक्ष जिनका नजदीक में होने वाला है उनको कभी भी किसी में भी दोष दिखते नहीं है तथा मोक्ष जिनका नजदीक है उस व्यक्ति को हरेक में गुण एवं अच्छाईयां ही दिखती है।
समस्त विश्व एवं समाज जानता है कि गुणानुरागीता के लिए लब्धि सूरी महाराजा प्रख्यात थे। उनके पास जो भी व्यक्ति आते थे लब्धिसूरी महाराजा उनके गुणों को देखकर खुश होते थे तथा जब तक पांच-पच्चास व्यक्ति के आगे उस व्यक्ति के गुण नहीं गाते उन्हें चेन नहीं पड़ता था। उनका तो यही मानता था कि परमात्मा की कृपा से हमें जुबान मिली है तो क्यां न हम किसी  के गुण पाए। जीभ अच्छी मिली है तो गुणान करना ही चाहिए।
पूज्यश्री फरमाते है हमें प्रत्यन करके दूसरों के गुणों का अनुरागी बनना है। गुणानुरागी बनते बनते भरत की पाट पर आए हुए अनेक राजाओं के मन में विचार आया भरत को आरीसा भवन में केवलज्ञान हुआ तो हम सभी भी यदि उसी स्थान में बैठे तो, उन्होंने ये तरीका अपनाया तो सभी को केवलज्ञान हो गया। गुणानुरागी में ताकात है हम ऐसे गुणीजनों की शारीरिक-मानसिक धन से भी हो सके तो सेवा करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।