अहमदाबाद।दुनिया में कैसे कैसे लोग रहते हैं। पैसा-गाड़ी बंगला है परंतु उनमें सज्जनता नहीं है जिसके पास कुछ नहीं ऐसे लोग धनवान के आगे सज्जन बनकर रहते है एक सामान्य रिक्शा चालक था। रोजी रोटी के लिए रिक्शा चलाता था। उनके भाव कैसे है देखो? अपनी रिक्शा में पानी की बोटल रखता था ताकि कोई प्यासा हो तो वह पानी पी सके। इसी तरह अपनी रिक्शा में अच्छी-अच्छी मेगजीन भी रखता था ताकि जो पढऩे में दिलचस्पी रखते है वे इस मेगजीन को पढ़ सके। एक बार वह रिक्शा चालक अपनी रिक्शा लेकर जा रहा ता सामने से एक सेठ की गाड़ी आई। सेठ जानबूझकर अपनी गाड़ी रिक्शा के सामने चला रहा था। रिक्शा चालक सावधानी पूर्वक दूसरी तरफ अपनी रिक्शा ले रहा था। ताकि आमने सामने ऐक्सीडंट न हो।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है कोई सज्जन उसी रिक्शा में बैठा हुआ इस दृश्य को निहाल रहा था अचानक सेठ की गाड़ी सामने आई रिक्शा चालक ने अपनी रिक्शा ध्यानसे एक ओर ले ली। सेठ अपनी गाड़ी से उतरकर नीचे आए उस रिक्शा चालक से सघडऩे लगा। सेठ की खुद की गलती थी फिर भी वह रिक्शा चालक मौन था। सज्जन ने रिक्शा चालक को कहा, गलती सेठ की थी फिर भी आप मौन क्यों थे। उसने जवाब दिया साहेब! यदि में प्रत्युत्तर देता तो वह मुझे ओर सी सुनाता तथा हो सकता है मारामारी पर भी उतर जाता।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है रिक्शा चालक ने सुंदर जवाब दिया, सेठ के पास समय है मेरे पास फालतु चीजों के लिए समय नहीं है। जो लोग फालतु चीजों में अपना समय बिगाड़ते है वे मूर्ख है। उन्हें समय की किमत पता नहीं है।हमारा स्वभाव अच्छा रखना है कोई कितना भी कहे हमें वॉटर फ्रुफ छत्री की तरह बनना है।
एक संत रस्ते पर चल रहे थे किसी ने आकर संत को पूछा, बताओ मोक्ष कहां है? संत बिना कुछ बोले हंसते हुए आगे चले। वह व्यक्ति भी संत के साथ साथ चला। कुछ ही दूर चले कि एक दूसरा व्यक्ति जोरजोर से संत के आगे बोलने लगा कैसे संत है ये देश की हालत बिगाड़ दी है। खाना पकाना नहीं बस बैठे बैठे लोगों का दिया हुआ खाते है। इस तरह उस व्यक्ति ने संत को बहुत कुछ सुनाया फिर भी संत मौन रहे। फिर प्रथम व्यक्ति अपने ऊपर कितना भी गुस्सा करे, कितना भी हमारा बूरा करे हमें उसका जवाब नहीं देना चाहिए।
पूज्यश्री फरमाते है क्रोध करे तो क्षमा करो, अभियान करे तो नम्रता बताओं मानको छोड़ो। हम जब छोट थे तब एक कहानी सुनी थी। एक नदी के ऊपर ब्रीज था। वह ब्रीज खूब ही छोटा था एक ही व्यक्ति आना जाना कर सकता था एक दिन ऐसा हुआ कि उस ब्रीज पर बकरा एवं बकरी दोनों की आमने सामने भेंट हुई। बकरी पीचे हटने को तैयार नहीं थी। यह देखकर वह बकरा गम खाकर नीचे बैठे गया बकरी उसके सिर पर से उस पार चली गई।
कहते है जिद में कभी जीत नहीं होती है। किसी एक को झुकना ही पड़ता है। अभियान करने से कोई फायदा नहीं है। फालतु निकुम्मी बातों से दूर रहो। जगह जगह पर स्त्रीयां जब इकट्ठी होती है तब एक दूसरे की निंदा-बूराई स्वयं की बड़ाई ही करती है। इन सब चीजों में हमारा समय न बिगड़े इसकी सावदानी रखनी है। चातुर्मास करने आए हो कुछ पाने के लिए, न ही कर्म को बांधने के लिए। बस इस समय की कीमत समझकर आराधना में जुड़कर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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