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पापमोचिनी एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से जाने अनजाने में हुए सभी पापों का नाश हो जाता है। साथ ही मरने के बाद विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। साल में कुल 24 एकादशी व्रत रखे जाते हैं। अधिकमास के कारण कई बार एकादशी व्रतों की संख्या 25 भी हो जाती है। जानिए पापमोचिनी एकादशी व्रत की कथा
पापमोचनी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में स्वयं भगवान कृष्ण ने पांडु पुत्र अर्जुन को बताया था। कहा जाता है राजा मांधाता ने लोमश ऋषि से जब पूछा कि अनजाने में हुए पापों से मुक्ति कैसे हासिल हो? तब लोमश ऋषि ने पापमोचनी एकादशी व्रत का जिक्र करते हुए राजा को एक पौराणिक कथा सुनाई थी। उस कथा के अनुसार, एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी वन में तपस्या कर रहे थे। उस समय मंजुघोषा नाम की अप्सरा वहां से गुजर रही थी। तभी उस अप्सरा की नजर मेधावी पर पड़ी और वह मेधावी पर मोहित हो गयीं। इसके बाद अप्सरा ने मेधावी को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ढेरों जतन किए।मंजुघोषा को ऐसा करते देख कामदेव भी उनकी मदद करने के लिए आ गए। इसके बाद मेधावी मंजुघोषा की ओर आकर्षित हो गए और वह भगवान शिव की तपस्या करना ही भूल गए। समय बीतने के बाद मेधावी को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्होंने मंजुघोषा को दोषी मानते हुए उन्हें पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। जिससे अप्सरा बेहद ही दुखी हुई।
अप्सरा ने तुरंत अपनी गलती की क्षमा मांगी। अप्सरा री क्षमा याचना सुनकर मेधावी ने मंजुघोषा को चैत्र मास की  पापमोचनी एकादशी के बारे में बताया। मंजुघोषा ने मेधावी के कहे अनुसार विधिपूर्वक पापमोचनी एकादशी का व्रत किया जिससे उसे उसके सभी पापों से मुक्ति मिल गई। इस व्रत के प्रभाव से मंजुघोषा फिर से अप्सरा बन गई और स्वर्ग में वापस चली गई। मंजुघोषा के बाद मेधावी ने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत किया और अपने पापों को दूर कर अपना खोया हुआ तेज फिर से हासिल कर लिया।