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अहमदाबाद। जीवन में कुछ ऐसे भी पल आते हैं जो मानवी की दशा एवं दिशा दोनों को बदल देते हैं। इसीलिए से चातुर्मास का पर्व आता है। वर्ष के आठ महीने तक पाप प्रवृत्ति एवं भौतिक साधनों के पीछे खूब दौड़धाम करते है। जब ये चातुर्मास आता है तब गुरु के सत्संग से, गुरू के उपदेश से जन-जन के जीवन की दिसा बदल जाती है। देश-विदेश से महानुभावों आराधना करके धन्य बने है। शुभ भावनाओं के साथ आराधना की है, वह व्यक्ति अवश्य जीवन में आगे बढ़ेगा।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है दोस्तों को संगति में आकर शराब पीकर रात भर भटकता फिरता है। सुशील पत्नी अपने पति को कितना कह सके। जिनको व्यसन की लत लग चुकी है। उनको छुड़ाना खूब मुश्किल काम है। सिर्फ शराब-जुआ बिगेरे ही व्यसन नहीं बल्कि किसी की निंदा करना वह भी एक व्यसन है। पत्नीयां विचारी पति रात को भटककर आता है तो वह न तो किसी को कह सकती है उसे तो अपने पति का सहन करना ही पड़ता है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है सन्नारीयां पति के द्वारा दिए गए हर कष्टों को सहन करना जानती है। पहले के जमाने में स्त्रीयां पति घर न आए तब तक देर रात तक जागरण करती ती। आजकल की नारियां पति आने के पूर्व खा-पीकर सो जाती है नौकर के भरोसे रखकर। आज सब कुछ बदल गया है। सहनशक्ति भी घटती जा रही है। पति जरा कुछ कहे सीधा पीयर चली जाती है।
एक दिन शराब के नशे में रात को बारह बजे कोई द्वार को खटखटाता है। मां बहु को पूछती है, बेटा! तुं अब तक क्यों जाग रही है। मां! तुम्हारा बेटा अब तक घर नहीं लौटा। ठीक है बहु। तुं एक काम कर। तुं आराम कर ले। मैं जागरण करूंगी। जब तुम्हारा पति आएगा मैं खुद, दरवाजा खोलूंगी। दरवाजे की आवाज सुनकर मां द्वार के पास जाती है। गुस्से से ऊंची आवाज में पूछती है कौन है? इतनी रात को दरवाजा क्यों खटखटा रहा है। मां! मैं तुम्हारा बेटा हूं। किसका बेटा? निर्लज्ज इतनी रात को आते हुए तुझे शरम नहीं आती? मां दरवाजा खोलो। चला जा यहां से। कहां जाऊंगा मां? मां कहती है जहां दरवाजा खुल्ला हो वहां।
कुछ पल के लिए विचार में पड़ जाता है। इतनी रात को कहां जाऊंगा? मां ने दरवाजा खोलने से इंकार किया है तो जाना ही पड़ेगा। बच्चों को यदि गलत रास्ते में जाने से सुधारना हो तो कड़क होना जरूरी है। जितनी छूट, जितना लाड करोंगे उतना ही तुम्हारा बेटा बिगडेगा। भटकता भटकता चलता गया। एक स्थान पर देखा दरवाजा खुल्ला। सभी सो रहे थे सिर्फ एक बुजुर्ग साधु जग रहे थे। भाई! तुम कौन हो? कहां से आए हो? उसने ्पनी सारी कथनी कह सुनाई।
जो अच्छा डॉक्टर है वह रोगी से कभी नफरत नहीं करता है इसी प्रकार अच्छे साधु भी पापी से कभी नफरत नहीं करते है। सिर पर हाथ रखा। अरे यह तो घर नहीं, उपाश्रय है। यदि किसी के जीवन में साधु के वचन फले तो दशा एवं दिशा दोनों बदल जाती है। साहेब! मैं दुर्गुणी हूं पापी हूं। क्या आप मुझे अपनी शरण में लेगे। देखो भाई। साधु जीवन कष्टदायी है। सिर मुंडन करवाना पडेगा-पैदल चलना पडेगा घर घर से भिक्षा ग्रहण करनी पड़ेगी कहते है जिसने एक बार अपने मन को मजबूत कर दिया हो वह व्यक्ति कैसा भी संकट क्यों न आए उस काम को करके ही व्यसनी को दीक्षा देकर उसकी दशा एवं दिशा दोनों बदल ली। बस, हमें भी गुरू के सत्यंग में रहकर पूरी संगतो को छोड़कर सीघ्र आत्मा से परमात्मा बनता है।