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औरैया। उत्तर प्रदेश के औरैया जिले का एक गांव महाभारत कालीन सभ्यता का द्योतक आज भी माना जाता है। मान्यता है कि पांडव वंश के अंतिम राजा जनमजेय द्वारा यहां किये गये सर्प मेधयज्ञ के कारण यहां आज तक सर्पदंश से कोई मौत नहीं हुयी है।

जिल के सेहुद गांव में धौरानांग का मंदिर है,इसके अलावा कस्बा जाना में भी महाभारत कालीन हवनकुण्ड है जहाँ सर्पों को मार डालने के लिये यज्ञ हुआ था। दशकों से नागपंचमी के मौके पर यहां विशाल मेला लगा करता है लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते आज ये स्थान सूने पड़े हुये है।

जाना कस्बे की पहचान पांडवकालीन जनमेजय नगरी के तौर पर भी है। यहां पंच पोखर आश्रम भी स्थिति है, इस स्थान पर ही सर्प जाति को समाप्त करने के लिए सर्प मेध यज्ञ किया गया था। ये स्थान अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित की सर्प दंश से हुई मौत के बाद में चर्चा में आया। परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प मेघ यज्ञ कराया था। लोगों का कहना कि इस क्षेत्र में आज भी सांप काटने से किसी की मौत नहीं होती है।

किवदंतियों के अनुसार जंगल में राजा परीक्षित शिकार करने के लिये वन्य पशुओं का पीछा कर रहे थे। इस बीच वह प्यास से व्याकुल हो जलाशय की खोज में शमीक ऋषि के आश्रम पहुंच गए। ऋषि उस वक्त ध्यान में लीन थे। राजा परीक्षित ने उनसे जल मांगा, लेकिन उन्होंने कोई उत्तर दिया। राजा परीक्षित को लगा कि ऋषि उनका अपमान कर रहे हैं। नाराज होकर उन्होंने पास में ही पड़े एक मरे हुए सर्प को उनके गले में डाल दिया। (वार्ता)