
अहमदाबाद। परम मंगलमय परमात्मा की वाणी रूप उत्तराध्ययन सूत्र एक अनमोल खजाना है। इस अनमोल खजाने में से हमें बहुत कुछ अपने जीवन में ग्रहण करना है। कहते हैं कि जिसे मनुष्य भव का मूल्यांकन समझ में आया वह व्यक्ति इस अनमोल खजाने का मूल्य क्या है वह चीज उसे जल्दी से समझेगा।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है आप लाखों करोड़ों के मालिक हो, आपकी मील में लोग काम करते है। आपके एक एक अलग एं ईशारे से कर्मचारी काम करते है। आपको आज्ञांकित सेवक मिला उसका आपको आनंद है तथा आपके सेवक को भी आप जैसे नाश मिले उसका आनंद है।
एक राजा दश राज्यों का संचालन करता है वह भी अपनी प्रजा की वफादारी से खुश है तथा राजा भी प्रजा का योग-क्षेम न्याय से करता है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है अप्राप्य वस्तु की प्राप्ति को योग, प्राप्य वस्तु के संरक्षण को क्षेम कहते है। जो योग-क्षेम करने वाला होता है वह नाथ कहलाता है। अब तक प्रजा का स्वामी बनकर बैठा है वह चंद दिनों तक ही रहेगा आयुष्य पूर्ण होते ही राजा को भी सब छोड़कर जाना है। पूज्यश्री फरमाते है हमें तो ऐसा नाथ बनाना है जिसका कभी साथ ही न छूटे तथा जीवन में भी कुछ तकलीफ ही न आए ऐसे नाथ तो हमारे वीतराग-परमात्मा है। वीतराग परमाल जिनके नाथ है उनके जीवन में कभी भी दु:ख आधि-व्याधि आएगी ही नहीं मान लो, पूर्व के कर्म के उदय से व्याधि आ भी गई तो प्रसन्नता टीकी रहेगी।
इस 20 वें अध्ययन में अनाथी मुनि की कथा बताई है। एक बार सम्राट श्रेणिक विहार यात्रा के लिए मंडित कुक्षि नामक उद्यान में गए। अचानक उनकी आंखे एक ध्यानस्य मुनि पर पड़ी। राजा मुनि के रूप लावण्य को देखकर अत्यंत विस्मित हुआ। और मुनि से पूछा, भोग काल में सन्यास ग्रहण की बात समझ में नहीं आती। आप तरूण है भोग भोगने योग्य है फिर भी आप इस अवस्था में मुनि क्यों बनें? मुनि के कहा, राजन्! मैं अनाथ हूं। मेरा कोई भी नाश नहीं है और त्राण नहीं है इसीलिए मैं मुनि बना हूं। राजा ने मुस्कुराते हुए कहा, शरीर-सम्पदा से आप ऐश्वर्य शाली लगते है फिर अनाथ कैसे? कुछ भी हो मैं आपका नाथ बनता हूं। आप मेरे साथ चलें। मैं आपके लिए मेरे ही जैसा एक अंतपुर दूंगा। आप उसमें सुख पूर्वक रहना। मुनि ने कहा, तुम स्वयं अनाथ हो। मेरे नाथ कैसे बन सकोंगे राजा को यह वाक्य तीर की तरह चुभा।राजा ने कहा, मुनि! मेरे पास हाथी और घोड़े है नगर और अन्तपुर है आज्ञा और ऐश्वर्य है। कहते है मनुष्य के पास तीन शक्तियां है। संपदाकी शक्ति, ऐश्वय-सत्ता की शक्ति और अध्यात्म की शक्ति। जिनके पास इन तीनों में से एक भी शक्ति होती है वह इष्ट सिद्धि करने में सफल बनता है इसीलिए सम्राट श्रेणिक के अपने ऐश्वर्य की ओर मुनि का ध्यान आकर्षित किया। ऐश्वर्य के उपर एक कथा प्रचलित है। एक बार राजा और मंत्री में विवाद हुआ कि बड़ा कौन? दोनों ने आखिर में तय किया कि जो अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सके वही बड़ा होगा। राज्य सभा भरी हुई थी सब लोग अपने अपने स्थान पर बैठे थे अवसर देखकर मंत्री ने अनपे परम मित्र को बुलाकर कहां, जा तुं राजा के मुख पर चाटा लगाकर आ। वह मित्र घबरा गया। मंत्री ने अपने मित्र को खूब हिम्मत दी फिर भी वह तैयार न हुआ। राजा के सामने मंत्री की शक्ति व्यर्थ गई। अब राजा की बारी थी। राजा ने सामन्त को बुलाकर आदेश दिया कि मंत्री ने मुख पर चांटा लगाए। सामन्त ने आव देखा न ताव सीधा मंत्री के मुख पर तमाचा लगा दिया। के पास सत्ता की शक्ति थी जिसके आधार पर वह सब कुछ करा सकता था। मंत्री के पास वैसी शक्ति नहीं थी। हे मुनि! आप मुझे अनाथ कैसे कहते हो? तुम अनाथ का अर्थ नहीं जानते और नहीं जानते कि कौन व्यक्ति कैसे सनाथ होता है। और कैसे अनाथ?
मुनि ने कहा, मैं भी पहले राजा ही था। एक बार मुझे असफ अक्षि रोग उत्पन्न हुआ। उसे मिटाने के लिए कई प्रकार के उपचार किए। मेरे माता-पिता सगे संबंधी सभी मेरी वेदना पर आंसू बहाए परंतु कोई मेरी वेदना को दूर न कर सका ये थी मेरी अनाथता। फिर मैंने सोचा यदि इस पीड़ा से मैं मुक्त हो जाऊं तो मैं मुनि बना जाऊं इस प्रकार का संकल्प करके मैं सो गया। जैसे जैसे रात बीती वैसे वैसे मेरा रोग शांत होता गया। सूर्योदय होते ही मैं प्राणियों का नाथ बन गया उन सबको मुझसे त्राण मिल गया यह है मेरी सनाथता। मैंने आत्मा पर शासन किया यह है मेरी सनाथता। बस मुनि की बात सुनकर राजा खुश हुआ और बोला, हे महर्षि! आप ही वास्तव में सनाथ और सबांधव हो? मुनि से बोध पाकर राजा ने सम्यक्त्व का अंगीकार किया तथा धम4 से जुड़ गए। पूज्यश्री फरमाते है आप भी नाथ बनाओ तो ऐसा जो आपके हमेशा साथ रहे। देव-गुरू एवं धर्म का साथ कभी नहीं छोडऩा बस, इन्हीं को नाथ बनाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।