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मुंबई। सागर ने हर नदीओं का पानी अपने में समावेश किया तभी वह विशाल बना। इसी तरह कोई व्यक्ति कितना भी अच्छा कहे या बुरा, महापुरूष उस पर रियेक्ट नहीं करते है तभी वे महापुरूष बनें है। इस मानव भव को पाने वाले हरेक व्यक्ति को, दुनिया से विदाई लेने के पूर्व कुछ ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे लोग उनकी अनुपस्थिति में उनको हमेशा याद रखें। आप किसी को एक अक्षर का भी ज्ञान देते हो तो लोग उसे याद रखते है। इसी तरह आपका यदि किसी ने अन्न खाया हो तो वह व्यक्ति हमेशा आपको याद रखेगा। इसी तरह किसी जरूरतमंद को आपने कभी पैसों से मदद की होगी। तो वह भी जिंदगी भर आपका गुणगान करता रहेगा।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है, कोई भी कार्य निस्वार्थ भावना से करो जिससे नाम तुम्हारा अमर बनें. कुछ लोग अपना नाम लिस्ट में आए अथवा किसी को दिखाने के उद्देश्य से भी कार्य करते है।
दादा गुरूदेव लब्धि सूरि महाराजा जिनका हम लगातार पांच दिनों से गुणानुवाद कर रहे है आज उनकी पुण्यतिथि मनाने का अवसर आया है। व्याख्यान वाचस्पति के नाम से भी वे जाने जाते है। लब्धि सूरि महाराजा उनके गुरू कमल सूरि महाराजा के आज्ञांकित शिष्य थे। एक बार कुछ श्रावक कमल सूरि महाराजा के पास विनंति करने आए। गुरूदेव! यहां से तीन कि.मी. की दूरी पर हमारा गांव है आप किसी साधु भगवंत को हमारे यहां व्याख्यान करने भेंजोंगे तो आपका उपकार होगा। कमल सूरि महाराजा कुछ विचार करके लब्धि सूरि महाराजा को अपने पास बुलाया। लब्धि विजयजी! आपको इन श्रावकों के साथ जाना है और वहां पर व्याख्यान करना है। लब्धि सूरि महाराजा ने तुरंत ही स्वीकृति देकर उनक श्रावकों के साथ चल दिये। व्याख्यान करके लौटने के बाद वे अपने गुरू के चरणों का स्पर्श करके कहा, गुरूदेव! मैं व्याख्यान करके आ गया। कमलसूरि महाराजा ने देखा! अरे लब्धि विजय! आपका शरीर तो गरम है। आपको 102 डिग्री बुखार है फिर भी आपने बताया नहीं।
पूज्यश्री फरमाते है गुरू आज्ञा की पालन करके जो भी कार्य करते है उनके जीवन में कभी विघ्न नहीं आता है। तथा शक्ति भी अपने अपने आप में प्रकट होती है
एक बार दादा गुरूदेव ने अपने अंतिम दिनों में सभी शिष्य प्रशिष्याओं को एकत्रित करके कहा, आप सभी को एक बात का ख्याल रखना है कभी आज तक मैंने कितने ही साहित्यों का सर्जन किया है. मेरे धर्मस्थ होने के कारण यदि मेरे साहित्यों में किसी भी साधु संतों को यदि कोई भूल दिखे तो पक्षपात किए बिना मेरी भूल को आप सुधार लेना। पूज्यश्री फरमाते है गुरूदेव कितनी निखालसता से कहते है मेरी यदि भूलू हो तो सुधारना। उस जमाने के वें पंडित कहो या बुद्धिशाली कहो स्वयं में ज्ञान का खजाना होते हुए भी किसी भी प्रकार का अहं नहीं। जो अहं का विसर्जन करता है वह अर्हम् बनता है। आप सभी भी एक बात का ख्याल रखना ज्ञान का कभी अभियान मत करना। यदि आप होशियार हो आपमें मास्टरी है तो अन्य को ज्ञान का दान जरूर करना।
दादा गुरूदेव हमेशा अपने शिष्यों से कहते थे। आपको यदि दूसरों में बुराई दिखे अथवा दोष दिखे तो अपनी आंख एवं कानों को हमेशा बंद रखना। परमात्मा ने हमें जीभ सिर्फ दूसरे के गुणगान करने के लिए दी है न ही दोषों का गुणगान करने। बस गुणीजनों के गुणों का गुणगान करके, अपने में उन गुणों को प्रगटाकर शीघ्र संयम के मार्ग पर आने की शुभ भावना करें।
पूज्यश्री फरमाते है दादा गुरूदेव के साथ पूज्यश्री की दीक्षा के पूर्व कुछ समय तक उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आज वे हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनका साहित्य उन यादों को ताजा कर देता है ऐसे अद्भुत योगी इस काल में पाना मुश्किल है। आप भी एक बार उके साहित्य को जरूर पढऩा तथा उनमें जो गुण थे उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।