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ठ्ठदेवेंद्रराज सुथार
बारिश के पानी को विभिन्न स्नेतों एवं प्रकल्पों में सुरक्षित तथा संग्रहित रखना-करना वर्षा जल संचयन कहलाता है। वर्षा जल संचयन वर्षा जल के भंडारण को संदॢभत करता है, ताकि जरूरत पडऩे पर बाद में इसका उपयोग किया जा सके। इस तरह व्यापक जलराशि को एकत्रित करके पानी की किल्लत को कम किया जा सकता है। भारत में पेयजल संकट एक प्रमुख समस्या है।
भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है और इस वजह से पीने के पानी की किल्लत बढ़ रही है। वर्षा जल का उपयोग घरेलू काम मसलन घर की सफाई, कपड़े धोने और खाना पकाने के लिए किया जा सकता है। वहीं औद्योगिक उपयोग की कुछ प्रक्रियाओं में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। गॢमयों में वाष्पीकरण के कारण होने वाली पानी की किल्लत को 'पूरक जल स्नेतÓ के द्वारा कम किया जा सकता है। जिससे बोतलबंद पानी की कीमतें भी स्थिर रखी जा सकेंगी।
यदि एक टैंक में पानी का व्यापक रूप से संचयन करें तो साल भर पानी की पूॢत के लिए हमें जल विभाग के बिलों के भुगतान से भी मुक्ति मिल सकती है। वहीं वर्षा जल को छोटे-छोटे माध्यमों में एकत्रित करके हम बाढ़ जैसे महाप्रयल से भी बच सकते हैं।वर्षा जल संचयन के लिए वर्तमान में कई वैज्ञानिक एवं परंपरागत विधियां प्रयोग में लाई जा रही हैं। जैसे-सतह जल संग्रह प्रणाली-भूसतह पर गिरने वाले पानी को भूतल में जाने से रोकने के लिए इस प्रणाली को उपयोग में लाया जाता है। इस प्रणाली के उदाहरणों में नदी, तालाब और कुएं आदि शामिल हैं। छत प्रणाली-इसके जरिये छत पर गिरने वाले पानी को कंटेनरों या भूमिगत टैंकों में भरा जाता है। बांध-सार्वजनिक तथा सरकारी तौर पर बांध परियोजनाओं का सफल निर्माण बारिश के जल को संग्रहित करने में काफी कारगर साबित हो सकता है। बांध जैसे प्रकल्पों में जलराशि को लंबे समय तक बांधकर इसका उपयोग नहरों के माध्यम से सिंचाई के प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है। हालांकि पूरे विश्व में धरती का लगभग तीन चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है, किंतु इसमें से 97 प्रतिशत पानी खारा है जो पीने योग्य नहीं है। पीने योग्य पानी की मात्र सिर्फ तीन प्रतिशत है। इसमें भी दो प्रतिशत पानी ग्लेशियर एवं बर्फ के रूप में है। इस प्रकार सही मायने में मात्र एक प्रतिशत पानी ही मानव के उपयोग के लिए उपलब्ध है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक मानव का दायित्व बनता है कि वह अपने हिस्सा का पानी पहले से ही संग्रहित करके रखे। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों और गुजरात के कुछ इलाकों में पारंपरिक रूप से घर के अंदर भूमिगत टैंक बनाकर जल संग्रह करने का प्रचलन है। इस परंपरा को अन्य राज्यों में लागू कर हम इस गंभीरता को कम कर सकते हैं।