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मुंबई।दुनिया के कितने जीव सुखी है तो कितने दु:खी। इस दु:ख के पीछे कारण कौन है? तो वह है कर्म। कोई भी जीव जिस प्रकार से राग द्वेष करता है उस प्रकार से उसके कर्म का बंध होता है और परिणाम उसका फल भी पाता है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू.राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है मान लो आप के दो पुत्र है छोटा और बड़ा। बड़ा पुत्र खूब शरारती है। छूट्टी के दिनों में उसका धूम बढ़ा जाती है कभी लकड़ी से टी.वी. के स्क्रीन का कांच फोड़ देता तो कभी बल्ब पर बाल मारकर उसे तोड़ देता है। घर पर क्या घटना होती है उसकी आपको जानकारी नहीं होती क्योंकि आप हमेशा अपनी दुकान में व्यस्त रहते हो। एक दिन आप घर पर जल्दी आ गए। किसी ने आपको आते ही शिकायत की कि बच्चों ने खूब धूम मचाई है तब आप अपने अभिप्राय से कह देते हो इस बड़े लड़के की ये हरकत होगी तब छोटा लड़का ये बात सुनकर हंसता है। देखा, धूम मैंने किया और पप्पा ने बड़े भैया का नाम लिया। कितनी मजा आई ऐसा कहकर वह कूदता है। बड़े लड़के को आपके इस गलत अभिप्राय से गुस्सा आता है। कहते है पिता यदि सही बात जानकर बड़े लड़के से माफी नहीं मांगता है तो बात बढ़ जाती है बड़े को आप पर द्वेष हो जाता है और इस प्रकार से कर्म का बंध हो जाता है।
प्रवजन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है जीवन का क्रम है जो कर्म हमने बांधे है उसका उदय में आने से, हमें, उसका फल भोगना ही पड़ता है वशिष्ठ ऋषि ने राम को अयोध्या की राजगद्दी पर बिठाने के लिए श्रेष्ठ मुहूत्र्त निकाला था।
लेकिन, अचानक मंथरा के एक वाक्य ने सारी बाजी को पलट दिया इसका नाम है कर्म। भूतकाल में जो कर्म बांधे है उस अशुभ कर्म का उदय आया। एक प्रश्न उठता है ये कर्म कहां से आए? कहते है कैकेयी को भरत का राग था उसी के कारण ये सब हुआ। संसार का मूल ही राग है। जब तक राग नहीं छूटेगा तब तक मोक्ष असंभव है। राम ने दशरथ के वचन का पालन करके चौदह वर्ष वनवास को स्वीकारा।
जब राम वनवास जाने के लिए तैयार हुए तब उनके चेहरे की एक भी रेखा नहीं बदली। मुख पर प्रसन्नता की महक थी। पूज्यश्री फरमाते है जिस समय, आपके सामने जो परिस्थिति आए, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। जो कर्म बांधे है उसे भोगे बिना छूटकारा नहीं। आप कितने भी ऊंचे नीचे होंगे आपके कर्म आपको ही भुगतने पड़ेंगे इसीलिए राग द्वेष करने के पहले सो बार विचार करो क्या राग करना अच्छी चीज है? किसी के साथ दुश्मनाहट करना अच्छा है? नहीं तो फिर सोच समझकर राग द्वेष करो।
जो कर्म आपने राग से बांधे है वह जब उदय में आए तब समभाव रखो। राग द्वेष के छोटे बड़े संक्लेश छोडऩा सीखो।
एक युवान किसी नजदीक के रिश्तेदार के रीसेप्शन में जाने के लिए तैयार होकर घर से निकला। अभी तो आधे रास्ते पर पहुंचा है कि वह पसीने से तरबतर हो गया। रास्ते में उसके मित्र मिले। उन्होंने उस युवान को कहा, भैया! तेरे पास पसीना पोछने के लिए भी टाईम नहीं है क्या? युवान ने रूमाल के लिए अपनी जेब में डाला। अरे! मैंने बराबर याद करके मेरी जेब में रुमाल डाला था परंतु कहा गया? शायद पान वाले के गल्ले पर गया था तब पान खाने के लिए पैसे निकाले थे तो भूल से गिर गया होगा। मित्रों से युवान ने कहा, पहले मैं अपना रूमाल ढूंढूगा दूसरा काम बाद में करूंगा। मित्रों ने खूब समझाया प्रसंग पूरा हो जाएगा अपनी गैरहाजिरी होगी। युवान माना नहीं। तीस रूपिये की टैक्सी करके वे पान के गल्ले पर गए। युवान ने मन में मानता मानी कि यदि रूमाल मिल जाएगा तो मैं पांच रूपिये का माताजी को नारियल चढ़ाऊंगा। रूमाल की खोज की, परंतु मिला नहीं। मन में सोचने लगा माताजी का प्रभाव है कि नहीं? अचानक मित्रों का ध्यान गटर की ओर गया। उस गटर में वह रूमाल मिला। युवान उस गंदे रूमाल को लेने दौड़ा। पूज्यश्री फरमाते है रूमाल गंदगी से भरा है फिर भी युवान का उसके ऊपर का राग नहीं छूट रहा है। किराने की दुकान से रूमाल धोने के लिए 10 रूपिये का साबून खरीदा। घर जाकर उस रूमाल को बराबर चुनट निकालकर सुकाने गया कि उसके दो टुकड़े हो गए।
युवान रूमाल के राग से दु:खी हुआ कहते है आदमी छोटी-छोटी चीजों पर राग करके दु:खी होता है। मानवी के लिए जगत का पदार्थ छोडऩा सरल है परंतु शरीर का राग छोडऩा मुश्किल है। बस, अपने जीवन में राग द्वेष न हो उसका ख्याल रहे क्योंकि कर्म बांधना सरल है उसको भुगतना मानवी के लिए कठिन है। मानवी स्वयं समझकर दु:खी होने के जो उपाय है उनसे दूर रहकर शीघ्र वीतरागीता को पाए।