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मस्तक पर तीसरी आंख, रुद्राक्ष, डमरू, वासुकी, चंद्रमा, गंगा... ये सभी सुनकर हमारे आंखों के सामने जिस ईष्ट की तस्वीर आती है... वो हैं बम बम भोले यानी स्वयंभू शिवशंकर... लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन प्रतीकों का मतलब क्या है। आज हम अपने पाठकों को शिव शंकर के प्रतीक चिन्हों की जानकारी दे रहे हैं साथ ही उनका महत्व भी बता रहे हैं।

रुद्राक्ष : शिव का एक अहम प्रतीक रुद्राक्ष भी है। मान्यता है कि इनकी उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि जो इसे धारण करता है उसे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

चंद्रमा : हम में से कई लोग यह जानते हैं कि शिव का एक नाम सोम भी है। सोम का अर्थ चंद्रमा होता है। इसे मन का कारक माना जाता है। ऐसे में शिव के मस्तक पर विराजित चंद्रमा मन के नियंत्रण का भी प्रतीक माना गया है।

त्रिशूल : भगवान शिव का त्रिशूल 3 प्रकार की शक्तियों यानी सत, रज और तम का प्रतीक है। वहीं, 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक भी है। मान्यता है कि इसके सामने कोई शक्ति नहीं ठहर सकती है। वासुकी नाग : वासुकी नाग शिव के परम भक्त थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अपने गले में रहने का वरदान दिया था। भगवान शिव के नागश्वर ज्योतिर्लिंग नाम से भी यह साफ है कि शिव का नागों से अटूट संबंध है।

वृषभ : शिव का वाहन वृषभ है। इसका अर्थ धर्म है। वेद ने धर्म को 4 पैरों वाला प्राणी बताया है। ये 4 पैर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष माने गए हैं। ऐसे में वृषभ के 4 पैरा यानी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के अधीन हैं। वृषभ को नंदी भी कहा जाता है।

गंगा : शिव की जटाओं से गंगा बहती है। इसके बाद से ही शिव को जल चढ़ाए जाने की प्रथा शुरू हुई थी। गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतारने के समय यह सोचा गया कि गंगा का वेग इतना है कि इससे धरती में बड़ा छेद हो सकता है और अगर ऐसा होता है तो गंगा पाताल में समा जाएगी। इसके समाधान स्वरूप ही शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया। फिर इसे धरती पर उतारा।