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आषाढ़ शुक्ल सप्तमी (इस वर्ष 16 जुलाई) को विशेष रूप से सूर्यपूजा व सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु की आराधना का विधान है। सूर्य की संतानों में शनिदेव यमराज यमुना कर्ण के अतिरिक्त वैवस्वत मनु भी हैं जिनसे सृष्टि में मानव एवं सूर्यवंश की उत्पत्ति हुई।
सूर्यदेव ऐसे साक्षात् देवता हैं, जिनकी उपस्थिति मात्र से जीवन ऊर्जा, सकारात्मकता व सत्साहस से भर जाता है। सूर्यागमन से पुष्प-पल्लव लतिका, वनस्पतियां जीवंत हो उठती हैं। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की सप्तमी (इस वर्ष 16 जुलाई) को विशेष रूप से सूर्यपूजा व सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु की आराधना का विधान है। सूर्य की संतानों में शनिदेव, यमराज, यमुना, कर्ण के अतिरिक्त वैवस्वत मनु भी हैं, जिनसे सृष्टि में मानव एवं सूर्यवंश की उत्पत्ति हुई। इसी वंश में राजा सगर, दिलीप, मन्धाता, रघु, अज, दशरथ और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म हुआ। सूर्यपुराण में इसी तिथि को सूर्य के वरुण रूप और वैवस्वत मनु की भी पूजा का उल्लेख मिलता है।
वैवस्वत मनु के समय विष्णु के चौबीस अवतारों में एक मत्स्यावतार का वर्णन मिलता है। इसमें राजा सत्यव्रत से जुड़ी एक रोचक कथा है, जिसके श्रोता परीक्षित एवं वक्ता महाराज शुकदेव जी हैं। एक बार सत्यव्रत नदी में स्नानोपरांत तर्पण कर रहे थे, तभी उनके हाथ में एक मछली आ गई। वे उसे जल में डालने को उद्यत हुए तो मछली ने जल में डालने से मना कर दिया। राजा ने बात मान ली और उसे जलपात्र में रख लिया। कुछ समय बाद जलपात्र छोटा पड़ गया तो मछली को घड़े में रखवा दिया, वह घड़ा भी छोटा पड़ गया। 
राजा ने फिर मछली को सरोवर में डालने का आदेश दिया। मछली नित्यप्रति बढ़ती जा रही थी।
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आश्चर्य तब हुआ, जब सरोवर भी छोटा पड़ गया। अंतत: उसे समुद्र में डाल दिया गया। थोड़े ही समय में मछली समुद्र के एक छोर से दूसरे छोर तक फैल गई। तब राजा समझ गए कि यह कोई साधारण मछली नहीं है। उन्होंने मछली को प्रणाम करते हुए निवेदन किया कि हे मीन! आप अपने वास्तविक रूप में आइए। सत्यव्रत की निष्ठा और मीन-सेवा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि आज से सातवें दिन पृथ्वी पूरी तरह से जलमग्न हो जाएगी। मैं तुम्हें एक काम सौंपता हूं। तुम धरती पर विद्यमान प्राणियों, ऋषियों और समस्त प्रकार की वनौषधियों को लेकर तैयार हो जाओ। जब तीनों लोक जलमग्न होने लगेगा तो तुम्हारे पास एक नाव आएगी, तुम उस पर सवार हो जाना।

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मैं इसी महाकाय मछली रूप में उपस्थित मिलूंगा-इतना कहकर विष्णु जी गायब हो गए। यही सत्यव्रत महाकल्प में विवस्वान या वैवस्वत मनु, सूर्यपुत्र श्राद्धदेव आदि नामों से जाने गए और उन्होंने मनुस्मृति की रचना की। मान्यता है कि इस दिन सूर्य-उपासना से समस्त रोगों से मुक्ति, शत्रु-दमन, समस्त सांसारिक दुखों से निवृत्ति तथा विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्य मंत्र, आदित्यहृदय स्तोत्र और सूर्याष्टक का पाठ करने का विधान है।