
चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे हरिशयनी एकादशी कहते हैं से शुरू हो जाता है और कार्तिक माह शुक्ल पक्ष में पडऩे वाली देवउठनी एकादशी के दिन समाप्त होता है। देवउठनी एकादशी 14 नवंबर 2021 है इसलिए चातुर्मास 14 नवंबर को समाप्त होगा। हिन्दू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व होता है। मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु पाताल लोक में चार महीने के लिए विश्राम करते हैं। ऐसे में सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं। चातुर्मास में ही भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना सावन आता है। इन चार माह में श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक माह आते है। चातुर्मास में मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। शास्त्रों में चातुर्मास से जुड़े कुछ विशेष नियम बताए गए हैं जिनका पालन करने से जातकों को लाभ प्राप्त होता है। इस दौरान जातकों को विशेष सावधानी भी बरतने की आवश्यकता होती है। आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
जप-तप के लिए श्रेष्ठ है यह अवधि
चातुर्मास का समय साधना के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। हालांकि साधना के संचरण नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि एक स्थान पर ही बैठकर साधना करनी चाहिए। इन चार महीनों में सावन का महीना सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस माह में जो व्यक्ति भागवत कथा, भगवान शिव का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान करेगा उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होगा।
चातुर्मास में सेहत से जुड़े नियम
चातुर्मास जिसमें सावन, भादौ, आश्विन और कार्तिक का माह आता है उसमें खान-पान और व्रत के नियम और संयम का पालन करना चाहिए। दरअसल इन 4 महीनो में व्यक्ति की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है। इससे अलावा भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। इस समय पानी को ऊबालकर पीना ज्यादा लाभकारी होता है।
चातुर्मास में खानपान के नियम
चातुर्मास मास का पहला माह सावन आता है। नियमानुसार इस महीने हरी पत्तेदार सब्जियों को नहीं खाना चाहिए। दूसरा माह भाद्रपद आता है। इस माह दही खाने से बचना चाहिए। चातुर्मास का तीसरा माह अश्विन होता है जिसमें दूध से परहेज बाताया गया है। चातुर्मास का अंतिम माह कार्तिक में दालों का सेवन नहीं करना चाहिए। चातुर्मास में खानपान से जुड़े ये नियम अच्छी सेहत के लिए उत्तम होते हैं।
चातुर्मास में नहीं होंगे मांगलिक कार्य
धार्मिक दृष्टिकोण से जगत के पालनहार विष्णु जी की अनुपस्थिति के कारण चातुर्मास में विवाह या अन्य संस्कार, गृह प्रवेश जैसे अन्य मांगलिक कार्य रुक जाते हैं। वहीं जब कार्तिक शुक्ल की एकादशी जिसे देवउठनी एकादशी कहते हैं आती है तब भगवान विष्णु जागते हैं और फिर पुन: शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है।