अहमदाबाद। किसी प्रसंग पर जब हम अपने परिवार जन, स्वजन, मित्र जन के यहां भोजन करने जाते हैं तो थाली में तो अनेक प्रकार की आइटम्स परोसते हैं। उन में से सब कुछ खाने की ताकत तो नहीं होती पर सब चखने की इच्छा हो तो शक्य बनता है। खाने के शौखिन होते है वे प्रत्येक आइटम अवश्य चखते हैं। ठीक उसी तरह शास्त्रकार भगवंतों व पूर्वाचार्यों ने, महर्षियों ने अपने पैंतालीस आगम की थाली में परोसी है। सभी आगम सूत्रों का संपूर्ण वांचन-पठन-श्रवण संभावित नहीं हो पाता, लेकिन उनके आस्वाद स्वरूप इस चातुर्मास दरम्यान प्रभावक, प्रवचनकार, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी म.सा. आगमसार ग्रंथ पर अपनी प्रवचन धारा बहायेंगे।
पूज्यश्री ने आगमसार ग्रंथ के प्रथम श्लोक का विवेचन करते हुए फरमाया कि पैंतालीस आगम में कोई भी कार्य करने की अनुज्ञा तथा निषेध नहीं किया है, केवल इतना ही कहा है कि जो भी कार्य करना हो वो हृदय की सच्चाई से और सरलता से करना। शास्त्रों में क्या कहा है, क्या बताया है यह जानने की जिज्ञासा अंदर से जागृत हो तो ही आगम वचनों में आनंद की दिव्य अनुभूति होगी। कोई भी कार्य के लिए ह्रदय में झंखना और दृढ़ निश्चत हो तो ही कार्य सिद्ध हो पाता है। एक राजा ने बहुत बड़े वैज्ञानिक का बहुत मान-सम्मान किया और फिर कहा कि, मैं ने जो मुगुट पहना है वह अत्यंत आकर्षक एवं सुंदर है परंतु मुझे किसी ने कहा है कि इसमें सुवर्ण के साथ-साथ और भी अलग-अलग धातु है। अत: तू इस मुगुट को तोड़े बिना ही यह पता कर कि इसमें सुवर्ण के अलावा और क्या-क्या है। राजा के प्रश्न को वैज्ञानिक ने सुन लिया। अब वह दिन-रात यही सोचता कि राजा के प्रश्न का जवाब क्या होगा? कैसे ढूंढूं? सोते-उठते, खाते-पीते, आते-जाते, चलते-फिरते बस यहीं प्रश्न दिमाग में घूम रहा था। और एक दिन जब वह नहाने अपने स्नानघर में गया तब अचानक से ही उसे जवाब मिल गया कि स्पेसिफिक ग्रेवीटि के सिद्धांत से इस प्रश्न का हल किया जा सकता है। बस जवाब मिला और वह वैज्ञानिक खुशी से झूम उठा। इस छोटे से दृष्टांत से यही समझना है कि एक प्रश्न जब दिमाग पर अधिकार ले उसमें भी यदि आत्मदर्शन का प्रश्न यदि दिमाग पर अधिकार लो तो समझना कुछ ही भवों में आपका मोक्ष निश्चित है। पूज्यश्री फरमाते है कि अगर यह विचार कायम बना ही रहे तो परिवर्तन आगे बिना नहीं रहता। आगम सूत्रों का श्रवण जीवन में परिवर्तन लाने हेतु ही है। महा पुण्योदय से इस वर्ष जीवन में परिवर्तन लाने हेतु ही है। महा पुण्योदय से इस वर्ष चातुर्मास के दौरान पूज्यश्री आगमसूत्रों पे व्याख्यान फरमायेंगे और उनके ही शिष्य युवा प्रतिबोधक प.पू. वीतरागयश सू.म.सा. योग शास्त्र ग्रंथ पे अपनी प्रवचन धारा बहायेगे।
पूज्यश्री ने उपस्थित आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि यदि समस्त आगम सूत्रों को कंठस्थ न कर सके तो कुछ नहीं किंतु आवश्यक सूत्र-प्रतिक्रमण विधि-गुरूवंदन विधि तता चैत्यवंदन विधि में आते सूत्र तो कंठस्थ करना ही चाहिए। कितने ही महात्माओं के मुख से निकले सूत्रों को क्या हम नहीं सीखेंगे? यह प्रश्न करते-करते पूज्यश्री के स्वर में वंदना का स्पंदन महसूस हो रहा था। विदेशों में घूमने जाना हो तो भी वहां की जो स्थानिक भाषा हो वह सीख लेते है। तो क्या अनंत उपकारी तीर्थंकर परमात्मा से बातचीत करने चैत्यवंदन सूत्र नहीं सीख सकते? पंच महाव्रतधारी गुरू भगवंत का विनय करने हेतु गुरूवंदन विधि के सूत्र नहं सीख सकते? आत्मशुद्भि करने हेतु प्रतिक्रमण सूत्र नहीं नहीं सीख सकते? पूज्य गुरूदेव का सबको यह निर्देश रहा कि चाहे उम्र बड़ी हुई तो क्या हुआ सूत्र कंठस्थ करने की तीव्र तमन्ना हो तो वह अवश्य सफल हो सकता है। ज्ञान प्राप्ति हेतु कोई उम्र की सीमा नहीं होती। अत: कोई भी बहाने निकाले बिना यशाशक्ति सूत्र कंठस्त करने हेतु पुरूषार्थ करें। सूत्र और अर्थ के चिंतन से जो आनंद की प्राप्ति है वह आनंद किसी और में नहीं आता। बस आगम श्रवण-वांचन-पठन-अध्ययन में रस आये और परमात्मा के मार्ग पे शीघ्र बढ़ सके।
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