सावन में पडऩे वाले प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। प्रत्येक माह में दो प्रदोष व्रत रखें जाते हैं। यह व्रत मास के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी पर रखा जाता है। प्रदोष व्रत को मंगलकारी और लाभदायी व्रत माना जाता है। सावन में प्रदोष व्रत रखने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस व्रत से कुंडली में चंद्र का दोष दूर होता है। सप्ताह के अलग-अलग दिन पडऩे वाले प्रदोष का अलग-अलग महत्व है। सोमवार के दिन सोम प्रदोष, मंगलवार के दिन भौम प्रदोष और शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत व्रत कहते हैं। सावन में दो प्रदोष पड़ेंगे। जानिये पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त
त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ : 05 अगस्त को शाम 05 बजकर 09 मिनट से
त्रयोदशी तिथि की समाप्ति : 06 अगस्त को शाम 06 बजकर 28 मिनट तक
शुभ मुहूर्त : सावन का दूसरा शुक्र प्रदोष व्रत
त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ : 19 अगस्त को रात 10 बजकर 54 मिनट से
त्रयोदशी तिथि की समाप्ति : 20 अगस्त को रात 08 बजकर 50 मिनट तक
प्रदोष व्रत पूजा विधि
इस दिन प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान करके साफ सुथरे तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके उपरांत घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें और अगर संभव है तो व्रत का संकल्प करें। इस दिन भगवान शिव का बेलपत्र और धतूरा के साथ जलाभिषेक करें तदपश्चात भगवान को पुष्प अर्पित करें। प्रदोष व्रत के दिन भगवाव शिव सहित माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करनी चाहिए। क्योंकि किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। भगवान शिव की आरती करें। भगवान शिव को भोग लगाकर खुद सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस दिन भगवान शिव का अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए।
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