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अहमदाबाद। पूरे वर्ष के दौरान सब चीजें मिलती हैं फिर भी जैसे गरमी के मौसम में आम  की और ठंडी के मौसम में मेरे की सीजन होती है। वैसे ही चातुर्मास के इस मौसम में धर्म की सीजन होती है। प्रतिदिन चाहे आराधना कम ज्यादा हो या कभी नजर अंदाज कर दें परंतु चातुर्मास में तो अवश्य धर्माराधना की वृद्धि ही होनी चाहिए। 
विशाल संख्या में उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प.पू.गुरूदेव राजयश सूरीश्रजी म.सा. ने फरमाया कि जैनों की क्या करुण दशा हो गई है। आज किसी को एक जाने-माने परिवार का सदस्य होने का आनंद, कोई अच्छी स्कूल में पढऩे का आनंद कोई नामांकित कालेज या ऑफिस में नौकरी करने का आनंद, किसी मंत्री के साथ की मित्रता का आनंद, भारतीय होने का आनंद है, लेकिन शास्त्रकार भगवंत पूछते है क्या आपको अमूल्य महिमावंत जैनधर्म प्राप्ति का आनंद है? उपरोक्त सभी तो भौतिक आनंद है, इनका गौरव या आनंद तो केवल केमेरा के फ्लेश की तरह क्षणिक है। जबकि जैनधर्म की वेल्यू का रियलाई जेशन भी किसी को नहीं। आज के युग में मनुष्यों को परपर एक दूसरे को चीजे देखकर उन्हें खरीदने की इच्छा हो जाती है। लोग ये भूल चूके हैं कि खरीदी उसी की कि जाती है जिसकी हमें जरूरत हो उसकी नहीं जो दूसरों के पास हो। आप चाहे जितने अच्छे कपड़े, गहने, कार, मोबाईल, फर्निचर या घर खरीद लो आखिर में तो यहां सब छोड़कर ही जाना है। तो जो साथ ले जाना है उसके लिए क्यूं कोई उद्यम नहीं करते? किसी के पास कोई अच्छी साड़ी देखी तो खरीदने की इच्छा हो जाती है, कोई अच्छा पर्स देखा तो खरीदने की इच्छा हो जाती है कोई अच्छा हार या अंगूठी देखते हैं तो खरीदने की इच्छा हो जाती है तो क्या कभी राज-द्वेष रहित परमात्मा को देखकर वीतराग बनने की इच्छा होती है? किसी साधु भगवंत को देखकर संयमी बनने की इच्छा होती है? किसी व्रतधारी श्रावक को देखकर त्यागी बनने की इच्छा होती है? पूज्यश्री ने जैनों को जागृत करने हेतु फरमाया कि आपको अपने पुत्र के उज्जवल भविष्य के लिए उसके प्रेम के खातिर अपनी शक्ति ना हो तो उदार लेकर भी विदेश पढऩे भेजते है। अपनी पत्नी-परिवार-मित्र-स्वजन-संबंधी के प्रेम के खातिर उनकी प्रत्येक बात मानकर उनको खुरा करते हो। कभी तो परमात्मा के वचनों को शिरसावंद्य कर प्रभु आज्ञा का पालन कर प्रभु के सच्चे अनुयायी बनने का आनंद महसूस करो। डॉक्टर, वकील, ड्राईवर, नौकर, नाई इत्यादि पे आसानी से विश्वास कर उनकी बातें मान लेते है तीन लोक के नाथ, सर्वज्ञ ऐसे तीर्थंकर परमात्मा के वचनों पे क्या विश्वास है? तो रात्रि भोजन का त्याग करो, कंदमूल का त्याग करो, अशुभ प्रवृत्तियों का त्याग करो।
प्रभु पर अटल विश्वास उस विमान में बैठी छोटी सी लड़की की तरह होगा चाहिए। कोई एक संत विदेश यात्रा के प्रवास के लिए दूसरे मुसाफिरों के साथ बैठे हुए थे। विमान का टेकऑफ सफलतापूर्वक हो गया परंतु थोड़े समय के पश्चात् विमान में कोई टेक्नीकल समस्या उत्पन्न हुई। विनाश के विचार से ही विमान में बैठे तमाम मुसाफिर डरने लगे। परंतु इस कोलाहल के बीच उस संत की नजर एक खिड़की के पास बैठी छोटी सी लड़की पर पड़ी। वह लड़की जैसे इस परिस्थिति से अंजान हो वैसे आराम से कहानी की विकास पढ़ रही विमान के बेहोश पायलेट ने दूर कर दी।
फिर भी वह लड़की अपनी ही मस्ती में थी। संत से रह नहीं गया तो उस लड़की से पूछ लिया बेटा तुम्हें पता भी है थोड़ी देर पहले यहां क्या हुआ? उस नन्हीं सी निर्दोष लड़की ने जवाब दिया। हां मुझे पता है। मैंने सब सुना और मैं सब समझती भी हूं। पर साथ में मुझे विश्वास था कि विमान के बेहोश पायलेट मेरे प्यारे पाप हैं, जो मुझे कुछ नहीं होने देंगे। बस इसी तरह प्रभु के वचनों पर विश्वास कर जीवन में आगे बढ़ो। समस्याएं तो कार्य करने वालों को ही आती है पर इसका अर्थ ये नहीं कि आप वह कार्य करना ही छोड़ दें। हाथों के नाखून यदि बढ़ जाए तो उनमें मैल भरने की संभावना है। इसका अर्थ ये नहीं की ऊंगली काटनी पड़े केवल नाखून काटने से काम हो जाता है। इसी तरह प्रभु की आज्ञा पालन करते-करते कभी कोई समस्या या मुश्किल हो तो उसका हल ढूंढऩा चाहिए। प्रभु की आज्ञा को न छोड़ें। बस प्रभु आज्ञा को न छोड़े। बस प्रभु आज्ञा पालन करने में सदैव तप्पर बनकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।