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SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

 विजय मिश्रा''अमितÓÓ पूर्वअति.महाप्रबंधक (जन)   
मरे मौत अकाल का, 
जो काम करे चण्डाल का।
काल उसका क्या बिगाड़े, 
जो भक्त हो महाकाल का।''
 जब-इन पंक्तियों को सुनता-पढ़ता, तब-तब अमरनाथ बर्फानी बाबा के दर्शन की अभिलाषा जागृत हो उठती थी। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा से प्रारंभ होकर श्रावण मास की पूर्णिमा तक संपन्न होने वाली इस यात्रा को साकार करने का  सुनहरा अवसर जुलाई 2015 में प्राप्त हुआ। अमरनाथ यात्रा पर जाने के पूर्व जिला चिकित्सालय से स्वास्थ प्रमाणपत्र लेने तथा पंजाब नेशनल  बैंक में पंजीयन कराने की अनिवार्य प्रक्रिया को यथासमय पूर्ण किया।
यात्रा की तैयारी  पूरी कर रायपुर से दिल्ली हवाई यात्रा, दिल्ली से जम्मू की यात्रा ट्रेन से एवं जम्मू से श्रीनगर (300 किलोमीटर दूरी) की हवाई यात्रा हमनें पूरी की।
श्रीनगर पहुंचकर  अमरनाथ जाने के लिए  बालटाल मार्ग का चयन करके  95 किलोमीटर दूर स्थित बालटाल तक जाने के लिए हमनें 18 सीटर मिनी बस को माध्यम बनाया। बालटाल पहुंचने के उपरान्त हमने आगे की यात्रा हेतु अत्यावश्यक सामान यथा गरम कपड़े, छड़ी, टार्च, दवाईयां के अलावा शेष अन्य समानों को मिनी बस में ही दो दिन के लिए छोड़ दिया। आगे बालटाल बेस केम्प में प्रवेश करते समय  सैनिकों के जांच शिविर से गुजरना पड़ा, जहां कि बड़ी सूक्ष्मता से हमारी और सामानों की जांच हुई। समुद्र तट से बालटाल की ऊंचाई 10,500 फीट हैं, वहां बर्फीली हवाओं की मार झेलते हमनें किराये पर उपलब्ध टेन्ट में रात्रि विश्राम किया।
अमरनाथ गुफा तक जाने के लिएअगली सुबह प्रात: 4 बजे हम किराये के खच्चर से रवाना हुये। हजारों की संख्या में वहां खच्चरों का मेला लगा हुआ था। खच्चरों की इस भीड़ में गुम हो जाने पर अपने खच्चर को ढूंढ पाना समुद्र में मोती ढूंढ लाने जैसा ही कार्य रहा। वहां एक मजेदार अनुभव हुआ ज्यादातर खच्चर वालों की निगाह दुबले-पतले तीर्थयात्रियों की तरफ रहती है। दाम पूरा और खच्चर पर बोझ कम पड़े, यह उनकी  सोच होती हैं। हम आगे बढ़े तभी रास्ते  ''डोमैल कंट्रोल गेट'' पर हमारें स्वास्थ प्रमाण पत्र, परिचय पत्र एवं पंजीयन तिथि पत्र की जांच  सैनिकों द्वारा की गई्। (यात्रियों को निर्धारित पंजीकृत तिथि पर यात्रा करना होता है)।
डोमैल गेट पर वैधानिक प्रक्रियाएं पूर्ण करके भोलेनाथ का जयकारा लगाते हुये हमारी टोली अमरनाथ गुफा की ओर चल पड़ी।  लगभग 13 किलोमीटर के रास्ते में  बर्फ, कीचड़ ,और खच्चरों की लीद के कारण  भारी फिसलन थी। अत्यंत संकरीले और सर्पीले घुमावदार उतार-चढ़ावयुक्त पहाड़ के ऐसे मार्ग पर खच्चरों को सधे हुये कदमों से चलते हुए देखकर लगता था मानो खाई में नहीं गिरने का उन्हें वरदान प्राप्त हैं। बालटाल से अमरनाथ गुफा तक जाने हेतु   दूरूह-खतरनाक रास्ते से गुजरना होता है। यही वजह है कि ज्यादातर यात्री पहलगाम की ओर से यात्रा करना पंसद करते हैं।  बालटाल से अमरनाथ गुफा पहुंचने में केवल एक दिन  तथा पहलगाम से तीन दिन का समय लगता है।
पहाड़ी मार्ग पर एक ओर गहरी खाई थी तो दूसरी ओर पहाड़ी दीवार। नियमानुसार खच्चरों को पहाड़ी रास्ते के खाई की ओर किनारे-किनारे तथा पैदल यात्रियों को पहाड़ं से सट कर चलना होता है। ऐसे भयावह मार्ग में चलते हुए खच्चर पर सवार तीर्थ यात्री को मृत्यु अपनी मु_ी में नजर आती हैं और उसके मुख से उस समय केवल बम-बम भोले का सुर ही निकलता है। ऐसे ही भोले भंडारी का नाम जपते सांस गिनते हम उस स्थल पर पहुंच गये जहां से अमरनाथ की गुफा हमें स्पष्ट दिखाई दे रहीं थी। उस समय आश्चर्यमिश्रित हर्ष से भाव-विभोर हमारे मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। यहां खच्चर से उतरते ही हमारे पांव भुरभुरे सफेद बर्फ में धंस-धंस जा रहे थे। दूर-दूर तक वहां बर्फीली जमीन पर स्थापित रंग-बिरंगे टेन्ट यूं अहसास करा रहे थे मानो सफेद चादर पर विभिन्न रंगों के फूलों की कशीदाकारी की गई हो। सूर्य की किरणों से चमचमाते पर्वत शिखर पर नजरें टिक नहीं पा रही थी। हमनें वहां एक टेन्ट किराये पर लिया। वहीं हमें 50 रूपये प्रति बाल्टी की दर पर गरम पानी उपलब्ध हो गया। बर्फीली सतह पर स्नान करने का अनुठा अनुभव लेकर हम भोलेनाथ की गुफा दर्शन करने चल पड़े। वहां रास्ता को आसान बनाने के लिए रास्ते पर जमे बर्फ को हटाने सैनिक दल सतत् जुटे हुये थे, फलस्वरूप सहजतापूर्वक हम पवित्र गुफा के द्वार पर पहुंच गये।
श्री अमरनाथ की गुफा समुद्र सतह से 12729 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मानव निर्मित मंदिर नहीं बल्कि प्रकृति द्वारा निर्मित एक उबड़-खाबड़ 30 फीट चौड़ी और करीब 60 फीट लम्बी प्रकृति निर्मित गुफा है। इसके द्वार पर कोई किवाड़ नहीं हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने पार्वती मैया को इसी गुफा में अमर कथा सुनाया था। पवित्र गुफा के भीतर प्रकृति निर्मित हिम शिवलिंग (लगभग 17 फीट ऊंची) के साथ ही श्री गणेश पीठ तथा पार्वती पीठ के दर्शन हुये।
एक अद्भुत और आश्चर्यचकित कर देने वाली बात वहां दिखाई दी कि गुफा के बाहर बुरादे की भांति भुरभुरा बर्फ का संसार बिखरा पड़ा है ।वहीं गुफा के भीतर निर्मित शिव लिंग, श्री गणेश पीठ तथा पार्वती पीठ पक्के कड़े बर्फ निर्मित थे। गुफा के भीतर ऊपर से जल की बूंदें टप-टप टपक रही थी। वहां उपस्थित भक्तों ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि गुफा के ऊपर पर्वत पर श्रीराम कुण्ड हैं। गुफा के भीतर वन कबूतरों का होना चमत्कृत करता हैं। इनका दर्शन शुभ माना जाता है अत:  तीर्थयात्री बैचेन आंखों से गुफा के भीतर इन्हें तलाशते हैं।
पवित्र गुफा में मनभर समय बिताने के उपरान्त हम टेन्ट की ओर लौट चले। उस समय रास्ते भर लगे लंगरों में नि:शुल्क बंट रहे केसरयुक्त दूध, खीर, दही, चांवल, छोले-भटूरे जैसे विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजनों का भरपूर स्वाद हमनें लिया। रात में वहां बर्फीली सतह पर बने टेन्ट के भीतर बिछे मोटे तारपोलिन के ऊपर भारी-भरकम गददे और रजाई में सोने का अनुभव भी अद्भुत रहा। आंखों में नींद के बजाय भोलेनाथ की गुफा समाई हुई थी लेकिन भारी थकान की वजह से कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला। सुबह चहुंओर फैली बर्फीली सतह पर ही दैनिक दिनचर्या से निवृत्त होकर हम वापस बालटाल के लिए लौट चले।  इस यात्रा पथ पर तैनात सैनिकों को देखकर  सिर श्रद्धा से झुक जाता था। इनकी सक्रियता से ही कठिन मार्ग की यात्रा सुरक्षित सुगमता से संपन्न हो पाती हैं। यहां पर भक्ति भाव में डूबे लंगर संचालकों की सेवा भी नमन योग्य हैं जो कि  सरसराती बर्फीली हवा के मध्य तीर्थयात्रियों की सेवा में नि:शुल्क गरमा-गरम लजीज व्यंजन परोसने के लिए आतुर रहते हैं। उन्हें देखकर भगवान श्रीराम की सेवा में लीन भीलनी शबरी की याद बरबस आ गई थी। कश्मीर की हसीन वादियों के बीच अमरनाथ की पवित्र गुफा आज भी अपनी ओर खींचती हैं और भाव-विभोर मन कह उठता है - ''ऐसी फिजा न मिलेंगी सारे जहां में, जन्नत अगर हैं कहीं, तो हिन्दुस्तान में।