अहमदाबाद। वर्तमान में बढ़ रहे भौतिकवाद, यंत्रवाद आदि में भी मंत्रों की शक्ति तो कुछ अनोखी ही है। जहां विज्ञान और उसके यंत्र काम करना छोड़ते हैं वहां से मंत्रों की शक्ति काम करना प्रारंभ होती है। मंत्र भी अनेक प्रकार के होते है। उसमें शाश्वत श्री नमस्कार महामंत्र का प्रभाव तो अचिंत्य, अकल्पनीय एवं अवर्णनीय है। अनेक प्राचीन तीर्थाोद्धारक, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू. आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि जाप करने से, मंत्र गुंजन करने से मुक्ति की प्राप्ति होगी। मंत्र गुंजन से एक अद्वितीय शक्ति का संचार होता है। शाश्वत श्री नमकार महामंत्र का प्रभाव तो वर्तमान में भी देखने को मिलता है। दीक्षा दानेश्वरी प.पू.गुणरत्न सू.म.सा के निश्रावर्ती श्रमण भगवंत पू. मौनरत्न वि.म.सा. को 4 टीएच स्टेज का केन्सर हो गया। डॉक्टरों ने कहा आप इन्हें उपाश्रय में ले जाओ और आराधना कराओ क्योंकि अब इनको बचा पाना मुश्किल है। मुनि भगवंत को उपाश्रय में लाया गया और वे नवकार मंत्र के लिखित जाप में लग गये। इस जाप लेखन द्वारा उनका 4 टीएच स्टेज का केंसर मिट गया और वे स्वस्थ होकर आठ वर्ष और आराधना कर पाये। उसके पश्चात् समाधि पूर्वक काल धर्म हुए। यह है नवकार मंत्र का कलिकाल में प्रत्यक्ष प्रभाव।
पूज्यश्री फरमाते है कि जब किसी को फोन करते है और स्वीच ऑफ आता है तो कहने में आता है कि इस रुट की सभी लाईन बंध है कृपया थोड़ी देर बाद प्रयास करें। कुछ ऐसा ही धार्मिक क्रियाओं के साथ होता है। संसार के कार्यों के बीच धर्म क्रिया धर्माराधना के लिए फोन स्वीच ऑफ हो जाता है। वर्तमान युग में मार्गानुसार दो एक महान गुण है, अत: मिथ्यात्व को नहीं मार्गानुसारी के गुणों को साथ दीजिये। इसी संदर्भ में आगे बढ़ते-बढ़ते पूज्यश्री ने गर्भपात के विषय में बात की। श्रावक का सर्वप्रथम कत्र्तव्य है अहिंसक बनना तथा अहिंसा का प्रचार-प्रसार करना। ये एक फैंशन बन चुका है। नियत समय एवं अपनी इच्छानुसार गर्भपात करा लेते है। अपने मौज शौक के लिए किसी निर्दोष जीव की हत्या कर देना ये कैसा इंसाफ है? आप ही की इच्छा से तो उसका आगमन हुआ होता है और उसकी क्या भूल की उसे इस दुनिया में आने से पूर्व ही खत्म कर दिया जाये? ये तो केवल क्रूरता-निर्दयता का ही परिणाम है।
शास्त्रों में प्रत्येक पाप के लिए प्रायश्चित बताये गए है लेकिन गर्भहत्या कराने वालों के लिए अभी तक कोई प्रायश्चि नक्की नहीं किया गया। पूज्यश्री तो कहते हैं कि जो गर्भहत्या करते है या करवाते है तो उन्हें प्रभु की पूजा करने का अधिकार नहीं है। करने, कराने और अनुमोदन करने का फल एक जैसा ही मिलता है। सब एक दूसरे को देख-देखकर फैंशन करते हैं तो पूज्य गुरूदेव ने कहा कि किसी के फंक्शन में दस लाख के फूल आये देख दूसरे श्रीमंत श्रेष्ठी वर्य को मन में ऐसा होता है कि मैं अपने प्रसंग में पच्चीस लाख के फूलों की सजावट करवाऊंगा लेकिन किसी को मासक्षमण, सिद्धि तप, वर्षीतप आदि करते देख क्या तप धर्म की आराधना करने की भावना होती है? सबको नहीं होती। जैसा संग वैसा रंग यह युक्ति ऐसे धर्माराधना विगेरे में शीघ्र सिद्ध नहीं होती लेकिन वास्तविकता में यदि ऐसा होने लग जाये तो सबका परस्पर कल्याण हो जाएगा। दुर्लभ मनुष्य भव को प्राप्त करने के बाद केवल मौज शौक-मजे-मस्ती में व्यतीत किये बिना महापुणयाई से मिले जिनेश्वर परमात्मा का सर्वोत्कृट धर्म की उत्कृट आराधना कर उसे सार्थक करना है। पूज्य गुरूभगवंत अपना अमूल्य समय निकालकर हमें जो मार्गदर्शन देते है उसके अनुसार करने से अवश्य परम पद की प्राप्ति हो सकती है। अहिंसा वह जैन धर्म का ही नहीं सर्व धर्मों का मुख्य संदेश है अत: उसे समस्त विश्व में फैलाना सभी का परम कत्र्तव्य बनता है। सब मिलकर यदि यह अभियान चलायेंगे तो अवश्य अहिंसामय विश्व का सर्जन होगा।
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