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अहमदाबाद। कोई भी चीज इस्तेमाल करते है तब वह व्यर्थ न हो इसका पूरा ख्याल रखना चाहिए। फिर चाहे वह बिजली हो, पानी हो, घी हो या खाने की कोई चीज हो। ऑक्सीजन यूं ही हवा में आसानी से मिल जाता है तो उसकी कीमत नहीं होती तो वृक्ष भी यूं ही इधर-उधर किसी की मेहनत के फल स्वरूप मिल जाने पर उनकी कीमत नहीं करते लेकिन आज विश्व में छाई हुई इस महामारी ने सबका मूल्यांकन करना सीखा दिया।
प्रभावक प्रवचनकार गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया की वैश्विक महामारी कोरोना ने सबको यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि अकेले आये और अकेले ही जाना है। खाली हाथ आये और खाली हाथ ही जाना है बस केवल जीवन काल के दौरान किये गये सुकृतों द्वारा इकट्ठा किया हुआ पुण्य तता धर्माराधना ही आखिर भवांतर में साथ देगी। एक सेठजी संभालकर रखना भविष्य में कभी काम लगेगा। इस बात को पांच वर्ष बीत गये तो प्रथम पुत्रवधू ने तो वह दाना फैंक दिया, दूसरी बहु ने उसे खा लिया, तीसरी ने संभालकर एक डब्बी में रख दिया और चौथी बहू ने वह दाना अपने पीयर भेजकर भाई से कहा कि जब भी आप कोई धान्य बोओ तब इसको भी बो देना। सेठ जी ने अपनी चार बहुओं को दाने लाने को कहा तो केवल तीसरी बहू ने दाना लाकर दिया और चौथी बहू ने कहा यदि दाना मांगना हो तीन चार बैल गाडियां मेरे पीयर भेजनी होगी। 
सेठ जी खुश हुए। चीज का इस्तेमाल करना, उसे व्यर्थ जाने देना या फिर उसको बोकर फल पाना इन तीनों में से क्या करना वो अपने हाथ में ही है। पूज्यश्री ने यह दृष्टांत द्वारा श्रोताओं को प्रश्न पूछा कि दुर्लभता से मिले मानव भव को क्या करना है? जो इस मानव भव को बोना चाहते हो उन्हें संसार के भव भ्रमण से अटकना होगा। संसार के भव भ्रमण को अटकाने सर्वप्रथम समयक्त्व की प्राप्ति करना अनिवार्य है। समयक्त्व की प्राप्ति करने हेतु ग्रंथी भेद करना पड़ता है अर्थात् कर्मों की भयंकर गांठ को भेदकर फिर अपूर्वकरण द्वारा समयक्त्व प्रगट होता है। यदि प्राप्त किया हुआ समयक्त्व यदि आपके पास टिककर रहा जिसे शास्त्रीय भाषा में क्षायिक समयक्त्व कहते है तो सात से आठ भवों में आपका मोक्ष निश्चित है। प्रभु वीर को भी सताईस भव इसीलिये करने पड़े क्योंकि नयसार के भव में प्राप्त हुआ समयक्त्व  बीच में लुप्त हो गया इस प्रकार के समयक्त्व को शास्त्रीय भाषा में क्षायोपरामिक समयक्त्व कहते है। महापुरूषों ने उत्तराध्ययन तथा दूसरे ग्रंथों में कहा है कि केवल मोक्ष को या निर्वाण पद को ही ध्यान में रखोगे तो आपका मोक्ष अवश्य होगा।
पूज्यश्री फरमाते है कि मनुष्य भव में मिले गुणों को, पूज्यश्री फरमाते है कि मनुष्य भव में मिले गुणों को, सम्यग् दर्शन सम्यग् ज्ञान- सम्यग् चारित्र आदि को बोने लगो तो उसेमें से महान वृक्षों की प्राप्ति होगी। गुणों की बीज इस भव में बोओगे तो भवांतर में आपको वहीं साथ देंगे। शास्त्रकार भगवंतों ने अनेक प्रकार के योग बताये है। तप भी एक प्रकार का योग है जिससे संवर और निर्जरा होती है। तप दो प्रकार के है बाह्य और अभ्यंतर। बाह्य तप यानि जो बाहर दिखता हो, उदा. एकाशणा, बियासणा, उपवास आदि। अभ्यंतर तप यानि स्वाध्याय, कायोत्सर्ग, ध्यान, प्रायश्चि, विनय वैयावच्च आदि। इस प्रकार के तप के योग से मोक्ष साधना में आगे बढ़े सकते है। जैसे हर फ्रुट का सीजन निश्चित होता है वैसे पहले तप का मौसम भी चातुर्मास की सीजन में निश्चित होता। लेकिन अभी तो सभी फल जब चाहो तब मिल जाते हैं तो तप का भी कुछ ऐसा होना चाहिए। पर्वाधिराज पर्युषण पधारे रहे है तप द्वारा उसका अनुपम स्वागत करने की तैयारियां प्रारंभ कर दो। आत्मा को आगे जैसे बढ़ायें? उसे विशुद्ध कैसे बनाया जाये? उसे कर्मों से मुक्त कैसा किया जाये? बस आत्म चिंतन में लग जाओ और सुंदर आराधना द्वारा आत्मा से परमात्मा बनना।