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अहमदाबाद। नदी के पानी का प्रवाह को रोकने के लिए यदि बांध बना ले तो पानी रूक जाएगा। फूल स्पीड से चल रहा गीड़ी पर यदि ब्रेक लगाए तो गाड़ी कंट्रोल में आ जाएगी। कहते है कुछ चीजों के कंट्रोल के लिए कुछ साधनों कामयाब हो जाएंगे, परंतु समय की गति को रोकने की किसी में ताकत नहीं है।
अहमदाबाद में विराजित प्रखर प्रवचनकार राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि अब तक हम कह रहे थे चातुर्मास आया परंतु अब तो पर्वाधिराज पर्व पर्युषण भी खूब नजदीक की पूर्णाहूति के समय प्रतिक्रमण के बाद ही क्षमा की जाती है परंतु शास्त्र विधि के मुताबिक शक्य हो तो संवत्सरि के प्रतिक्रमण के पूर्व ही क्षयापना करनी चाहिए। पूज्यश्री एक सुंदर दृष्टांत को बताते हुए समझाते है आप लोगों ने स्कूल की पढ़ाई की है? शिक्षक हमेशा पढ़ाई कराने के पहले बोर्ड पर लिखते है फिर पढ़ाते है और पढ़ाई पूरी होते ही बोर्ड को साफ कर देते है उसी प्रकार संवत्सरी पर्व वह डस्टर की तरह है। पूरे वर्ष दरम्यान जो कुछ भी हुआ उसे मिटा देने का है आने उस चीज को भूल जाना है। जाने-अनजाने समझपूर्वक अथवा बेससझ से जो कुछ भी भूल हुई हो तो उसे भूल जाना उसी का नाम संवत्सरी महापर्व है। पर्ििस्थति के मुताबिक मन: स्थिति को बदलना जरूरी है। कुछ लोग अपने स्वभाव को कभी नहीं बदलते है। जैसी आदत है वैसा ही करते रहते है कोई सुधार नहीं, तब मन में विचार आता है कुत्ते की पूंछ हमेशा टेड़ी ही रहती है। छह महीने तक कुत्ते की पूंछ को यदि जमीन में गाढ़ दे और फिर उसे निकाले तो वह टेडी की टेडी ही रहेगी उसी प्रकार कुछ व्यक्ति भी ऐसे होते है कि आप उन्हें कितना भी समझाओ उनमें जरा भी परिवर्तन नहीं आएगा। कुच हलुकर्मी आत्मा उन्हें आप एक ही बार कहो परिवर्तन उनमें अवश्य दिखेगा। जो अपने जीवन में ही नहीं लाना चाहते है उनको साक्षात् तीर्थंकर परमात्मा भी आ जाए तो परिवर्तन नहीं आएगा। मान लो, कोई व्यक्ति आपसे न समझे तो उन पर डिसलाइक तिरस्कार नहीं करना परंतु नके प्रति जो डिसलाइकिंग तिरस्कार भाव पैदा हुआ है उसे दफना देना उसी का नाम पार्वाधिराज पर्यूषण पर्व है। विश्व की विचित्रता को वर्णन करते हुए पूज्यश्री ने बताया, हम किसी के आगे स्मित देते है और सामने वाला कभी आपको आंख दिखाए तब आपको अपने स्मित को भूल जाना पड़ता है। और अपने मन को समझाना पड़ता है कि तुलसी इस संसार में, भात भात के लोग सबसे हिलमिल रहो, नदी भाव संयोग हरेक लोगों की अपनी अपनी जीवन जीने की स्टाईल अलग अलग है। जिसे जिस प्रकार से जीवन जीना है उससे हमें क्या है? हमें तो सिर्फ इतना ही सोचना है कि कभी भी किसी के साथ वैर भाव नहीं रखना है। परंतु सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव रखना है। कोई आत्मा परमात्मा की देशना सुनकर भी अपने जीवन में परिवर्तन लाताहै जैसे कि छह छह व्यक्तिओं का खून करने वाले अर्जुनमाली को प्रभु की देशना दिलको छू गई और उसके जीवन में सुन्दर परिवर्तन आया। उसकी आत्मा तो शासन के खाते में जमा हो गई। यदि कोई आत्मा सुधरे नहीं तो उसकी आत्मा कर्मसत्ता के खाते में जमा हो गई ही समझना। इन दोनों में से आपकी आत्मा का नंबर किस खाते में जमा करवाना है सोच लेना बस, जीवन को लम्बे समय तक याद न रखकर क्षमा करना सीखों और माईंड को हमेशा क्लीयर रखों।