
हम सब रोज सोते हैं, लेकिन सोने का अर्थ क्या है? किए हुए कार्य की विश्रांति और आगे के कार्य की तैयारी। इस दृष्टि से सोना एक समाधि है। समाधि का अर्थ है, मन-बुद्धि का परमात्मा में लीन हो जाना। यानी ऐसी अवस्था, जिसमें आत्मा की शक्ति का आविर्भाव हो। समाधि के बाद मन बुद्धि आत्मशक्ति से ओतप्रोत हो जाती है, जो हमारा व्यवहार पवित्र करती है। निद्रा के बाद हमारे कार्य अधिक पवित्र और उत्साहयुक्त होने चाहिए। सच्चे कर्मयोगी के लिए निद्रा एक समाधि ही है।
कर्मयोगी की निद्रा समाधि का रूप ले लेती है। वह नि:स्वप्न होती है। उसमें विचारों का विकास होता है। वह तमोगुण का चिह्न नहीं होती, साम्यावस्था का चिह्न होती है। हां, जागने के बाद तंद्रा का कोई असर नहीं होना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि जागृति में चित्त में सतत कोई न कोई विचारचक्र चालू रहे। सहज साक्षित्व रहे, यह शुद्ध जागृति का लक्षण है।
भारत के लोग मानते हैं कि कोई ध्यान करता है, तो वह आध्यात्मिक साधना करता है। वैसे देखा जाए, तो गहरी निद्रा से बढ़कर कोई ध्यान नहीं हो सकता। हमारा अपना अनुभव है कि नि:स्वप्न और निर्दोष निद्रा से विचारों का जितना उत्तम विकास होता है, उतना निर्विकल्प समाधि छोड़कर बाकी किसी स्थिति में नहींहोता। निर्दोष प्रगाढ़ निद्रा आध्यात्मिक हो सकती है। जानवर निद्रा लेता है, तो वह आध्यात्मिक नहींहै, लेकिन निष्काम कर्मयोगी दिन भर काम करके सो जाता है, तो उसकी निद्रा में वे सारे अनुभव आ सकते हैं, जो निर्विकल्प समाधि छोड़कर दूसरे किसी में नहीं आते। निद्रा एक घटना है। इसको अभी तक कोई स्पष्ट नहीं समझ सका है। वैज्ञानिक कहते हैं कि इतनी नाड़ी होगी, तो गहरी नींद आएगी। जागृति में एक क्षण निद्रा और निद्रा में एक क्षण जागृति रहती है। लेकिन ये सब ऊपरी बाते हैं, निद्रा के बाद क्या होता है, कोई नहीं कह सका है। मनुष्य सो गया, फिर क्या मैं मनुष्य हूं, यह अनुभव आता है क्या? नहीं आता। स्वप्न में आता है, गहरी निद्रा में नहीं।
सोने के बाद विनोबा, विनोबा नहीं रहता। गहरी निद्रा में सभी अनुभव मिट जाते हैं, इसीलिए परिणाम सुख में आता है।
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निद्रा में आनंद का अनुभव है। इससे सिद्ध होता है कि आत्मा का स्वरूप आनंदमय है। दरअसल, सोते समय मनुष्य अपने मूल स्वरूप में लीन होता है। यही परमेश्वर में लीन होना है। निद्रा कर्मयोगी की सहजप्राप्त समाधि है।