
अहमदाबाद। परम मंगलमयी जैन धर्म चारों तरफ फैला हुआ है। कोई एक शौकीन व्यक्ति कान में इत्र से सुवासित रुई के फुमड़े डालकर आता है तो उस इत्र की सुवास केवल उसके कान तक सीमित न रहकर संपूर्ण वातावरण में फैल जाता है। ठीक वैसे ही पर्यूषण की आराधना की सुवास चारों ओर फैलानी है।
नव्य आयोजन प्रेरणा दाता, सर्वतोमुखी प्रतिभा संपन्न, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव. राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी श्रावकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि शास्त्रों में पद प्रकार के यति धर्म बताए गए हैं। उनमें सर्वप्रथम क्षमा धर्म है। जिस क्षमा धर्म की आराधना पर्यूषण महापर्व के दरम्यान किया जाता है। क्षमा यानी कोई भी प्रकार का प्रतिकार करने का विचार नहीं करना। जो परिस्थिति बनी हो उसका सहजता से, बिना कुछ बोले स्वीकार करना यानि क्षमा धर्म की साधना। इस पर्यूषण महापर्व के दरम्यान ऐसा निश्चित करना है कि भले ही दर से रिश्ते में लगने वाले श्रीमंत श्रेष्ठी वर्यों के साथ संबंध रखते है तो साथही धर्माराधना से श्रीमंत ऐसे सर्व साधर्मिक बंधुओं से भी संबंध बनाये रखना है। क्योंकि श्रीमंत श्रेष्ठी वर्यों को मान देना यदि आप अपना कत्र्तव्य समझते हो तो साथ में याद रखना कि सामान्य स्थिति वाले बंधुओं की बेइज्जदी करना का आपको या हम को अधिकार नहीं है।
पूज्यश्री फरमाते है कि सद्धर्म संरक्षक प.पू. कमल सूरीश्वरजी म.सा. अपने शिय जैनरत्न ख्याख्यान वाचस्पति प.पू.लब्धिसूरीश्वरजी म.सा. को हर हफ्ते पूछते थे कि शासन में क्या नया चल रहा है। उन कार्यों में से जो सामान्य व्यक्तियों ने विशेष शासन प्रभावक कोई कार्य किया हो तो उन्हें खत लिखकर भिजवाते। प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता-पात्रता-क्षमता अलग अलग होती है। अत: शास्त्रकार भगवंत कहते हैं कि जिन वचनों से दूसरों को दु:ख हो, परस्पर कषायों की वृद्धि हो ऐसे वचनों का त्याग करना चाहिए। पूज्यश्री कहते है कि सहज क्षमता तब आती है जब भीतर में मधुरता छा जाती है। मधुर वचन बोलने वालों को सफलता की प्राप्ति होती है। शायद कोई कर्मोदय से सफलता ना भी मिले लेकिन कषाय तो नहीं बढ़ेंगे। परिणाम स्वरूप नये अशुभ कर्म नहीं बंध होंगे।
प्रभु वीर को केवलज्ञान द्वारा सब कुछ दिखता था लेकिन कभी कोई नरकगामी जीव हो या मोक्षगामी जीव सभी को देवानुप्रिय से ही संबोधित करते थे। जैसे विविध मिष्ठान-भोजन से पुरसी हुई थाली देखने मात्र से उसका स्वाद मुंह में नहीं आता वैसे क्षमा आदि विविध प्रकार के धर्मों की आराधना करने से ही उनके आत्मा हो उसे मधुर शब्दों से ही संबोधित करना कई लोग कहते है कि ऐसे तो मीठे शब्दों से ही संबोधन करते है लेकिन वो सुधरे इसलिए थोड़ा गुस्सा करके बोलना पड़ताहै। लेकिन शास्त्रकार भगवंत फरमाते है कि सच्चे दिल से यदि किसी को सुधारने का इनटेशन हो तो मधुर वचन अपने आप ही आते है। सामने वाली आत्मा जब जागृत होगी तभी उनमें परिवर्तन आयेगा। अत: किसी को सुधारने के हेतु से अपने स्वभाव को ना बिगाड़े। इसलिए कहा गया है कि क्षमा रखने में सौ गुण है।
पर्यूषण पर्व का कहा संदेश है कि अपने च्ति को प्रसन्न रखें, तथा दूसरों का चित्त प्रसन्न रहे ऐसे वचन बोलना ऐसा वर्तन करना। जैसे समुद्र शांत अच्छा लगता है वैसे ही भीतर जब क्षमा-नम्रता-धैर्य से भरे सौम्य प्रकृति, स्वभाव को देखकर प्रसन्नता होती है। किसी को क्षमा करने के लिए बहुत सहन करना पड़ता है। जिनशासन एक महान प्यूरिफिकेशन फैक्ट्री है। जो अपने विचारों को अच्झी तरह से तुरंत दे सकता है। जैसे ह्रदय का बाय-पास सर्जरी कराने से दस वर्ष का आयुष्य बढ़ता है वैसे ही कान में तथा मन में बाय-पास द्वारा क्षमा भाव-नम्रता भाव को आगे बढ़ाना है। चाहे कुछ भी हो जाये मन को प्रसन्न रखने के लिए क्षमा ही सबसे बड़ा शस्त्र है। बस प्रभु वीर के क्षमा के संदेश को फैलाये और रोम-रोम में व्याप्त करे यही शुभ भावना।