
अहमदाबाद। हर किसी को पसंद नहीं परंतु एक घर ऐसा है जिसकी सब प्रतीक्षा करते हैं, तैयारियां करते है वह है त्यौहार। जनों का यह पर्युषण पर्व यानी आत्मा के भीतर जाकर उसके स्वरूप की अनुभूति करना। पर्युषण महापर्व के कुछ वार्षिक कर्तव्य भी है। जैनाचार्य बहुमुखी प्रतिभा संपन्न, परम शासन प्रभावक प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित भाविकों को वार्षिक कर्तव्यों के विषय से अवगत कराते हुए 11 कर्तव्यों के नाम बताये। श्री संघ की पूजा, साधर्मिक भक्ति, यात्रा त्रिक, स्नान महोत्सव, देव द्रव्य की वृद्धि, महापूजा, आलोचना। प्रत्येक श्रावक को संपूर्ण वर्ष दरम्यान ये संघ यानि साधू, साध्वी, श्रावक, श्राविका के संगम से बना पच्चीसवां तीर्थंकर समान है। श्री संघ की पूजा यानि साधू साध्वी-श्रावक-श्राविका का अनुपम आदर-सत्कार-सम्मान कर उनकी सेवा करना। उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उन्हें पूर्ण करने का प्रयत्न करना। साधर्मिक भक्ति यानि जरूरतमंद जैन श्रावक-श्राविकाओं को आर्थिक मदद सह वस्त्र-वसति-मकान आदि की व्यवस्था करना। यात्रा त्रिक में संघ यात्रा, रथ यात्रा तथा, तीर्थ यात्रा का महत्व बताया गया है।
संघ यात्रा:- जैन धर्म में पालित संघ यात्रा का अत्यंत महत्व है। ऐसी संघ यात्राओं से देशभर में एक अद्भुत प्रभाव पड़ता है और सासन की प्रभावना भी होती है। तप-त्याग एवं अध्यात्म जागृति करने विविध प्रकार के तरीके बताये गये इनके अंतर्गत में पंचाह्निका महोत्सव, अष्टान्हिका महोत्सव एवं चारों ओर शासन की शोभा बढ़ाने वाली रथ यात्रा का आयोजन करते है। तीर्थ यात्रा स्नान महोत्सव यानि प्रभु का जन्म कल्याणक महोत्सव। देवलोक के अधिपति श्री इंद्र महाराजा द्वारा मेरु पर्वत पर तीर्थंकर परमात्मा के महाभिषेक का आयोजन होता है। ऐसा अभिषेक प्रत्येक श्रावक को प्रतिदिन करना चाहिए नहीं तो कम से कम वर्ष में एक बार शानदार स्नान महोत्वस करना चाहिए।
देव द्रव्य की वृद्धि यानि जिनालय संबंधी, प्रभु भक्ति में उपयोग होते द्रव्यों की वृद्धि करना। प्रतिदिन जिनालय में अष्ट प्रकारी पूजा के चढ़ावे आदि से देव द्रव्य की वृद्धि होती है। त्योहारों का आलंबन लेकर जैसे घर की सजावट करना पसंद है वैसे ही पर्व के दिनों में विविध प्रकार की सामग्रीयों से जिनालय एवं परमात्माकी प्रतिमा की सुंदर सजावट यानि महापूजा। रात्रि जागरण यानि प्रभु भक्ति में भावित बनने वर्ष में एक बार रात्रि में प्रभु के समक्ष संगीत-भक्ति-नृत्य-गीत एवं अनेकविध कलाओं की प्रस्तुति करना। परंतु एक बात का अवश्य का ध्यान रखें कि इस रात्रि जागरण के दौरान जैन धर्म के सिद्धांतों के विरूद्ध कोई कार्य न हो। श्रुत भक्ति: श्रुत यानि अक्षर मात्र का ज्ञान! श्रुतज्ञान की अपूर्व भक्ति करने पुस्तकों का प्रकाशन संपादन संकलन एवं लेखन करना। ज्ञान भंडार की स्वच्छता एवं सुचारू संचालन का ध्यान रखना भी श्रुतज्ञान की भक्ति ही है।
उद्यापन यानि कोई भी तपश्चर्या की अनुमोदना हेतु तप पूर्णाहुति प्रसंग पे कोई उत्सव-महोत्सव का आयोजन करना। शास्त्रों में ज्ञान पंचमी, मौन एकादशी, आदि के पूर्णाहुति में उद्यापन का विधान बताया गया है। तीर्थप्रभावना यानि भव्यता से गुरू भगवंतों का प्रवेशोत्सव प्रतिष्ठा उत्सव आदि मनाने से जैन धर्म की प्रभावना हो और अन्य धर्मी भी जैन धर्म को जानने के जिज्ञासु बनें। पिछले सौ वर्षों के इतिहास में दीर्घ संघ यात्रा द्वारा तीर्थ की अद्भुत प्रभावना प.पू. गुरूदेव विक्रम सूरीश्वरजी म.सा. ने की और इसलिए उन्हें तीर्थ प्रभावक के विरूद्ध से नवाजा गया। संपूर्ण जीवन के दौरान जानते-अजानते वाणी वर्तन या विचारों से किया गया कोई भी दुष्कृत्य या पाप का गुरू भवगंतों के समक्ष इकरार कर उनका प्रायश्चित करना यानि आलोचना। आत्मोत्थान एवं आत्मशुद्धि के लक्ष्य से की गई प्रत्येक प्रवृत्ति अवश्य सुखदायक ही होती है।