
अहमदाबाद। कोई इंजीनियरिंग कॉलेज में पढऩे वाले विद्यार्थी को अपने कॉलेज की प्रसिद्धि का गौरव महसूस होता है। किसी को बीएमडब्ल्यू कार के मालिक होने का गौरव होता है। किसी को अपने घर के फर्निचर इंटीरियर डिजाइन आदि का गौरव होता है। किसी को ब्रान्डेड कपड़े, मोबाइल, चप्पल, जूते आदि का गौरव होता है तो शास्त्रकार भगवंत कहते है कि चौदह राजलोक में सर्वश्रेठ ऐसे जैन धर्म की प्राप्ति का गौरव है? आनंद है?
अनेक प्राचीन तीर्थोद्धारक, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्चाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीवरजी म.सा. ने उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि अपने को जब आनंद होता है तब हम हमारे आसपास के लोगों को भी उसमें भाग लेने हेतु प्रार्थना करते हैं। जैन धर्म की प्राप्ति का आनंद भीतर में होगा तो अवयस्क आजू-बाजू के, परिचित लोगों को उसमें जोड़ें। पूज्यश्री फरमाते हैं कि जैसे भोजन करने बैठते है और थाली में कोई स्वादिष्ट पकवान आ जाये और उसी समय कोई मेहमान आये तो हम अवश्य उन्हें वह चखने का आग्रह करते हंै। ठीक वैसे ही महापुण्याई से परम सौभाग्य से प्राप्त हुए जैन धर्म का आस्वाद लेने के बाद अपने परिचित लोगों को इसका आस्वाद लेने आमंत्रित करें। कोई दुकान में कपड़ों की या साडिय़ों की से लगी हो तो हम दस लोगों को उसके बारे में बताते फिरते है फिर भेल ही वह उसमें जाये या ना जाये, कहीं कोई एज्युकेशनल वर्कशॉप आदि चल रहा हो तो भी हम हमारे मित्रों को उसमें जाने का आग्रह करते है फिर भले ही वह उसमें जाये या नहीं, कोई एक्जीबिशन हो तो उसमें चलने का भी आग्रह तो करते है तो पूज्यश्री फरमातेहै कि इन सब चीजों के लिए हम हमारे स्वजन-परिजन-मित्रजनों को कह सकते है तो क्या जैन धर्म में जुडऩे, उसके सिद्धांतों को अपनाने-समझने के लिए नहीं कह सकते? जबरदस्ती तो किसी के भी साथ कोई भी कार्य में नहीं करनी चाहिए पर समझाने की छूट तो सभी को है। भले ही सामने वाले उसे अपनाये या नहीं लेकिन अपनी बात रखने का अधिकार तो सबको है।
जैन धर्म को कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति यदि जानने की तथा समझने की कोशिश करेगा तो वह अवश्य उससे प्रभावित हो ही जाएगा। जैन धर्म की अनेक ऐसी विशेषताएं है जिससे लोग प्रभावित हो:- जैन धर्म की सूक्ष्मता, अहिंसा-सत्य-अस्तेय-ब्रम्हचर्य-अपरिग्रह-रात्रि भोजन त्याग, कषायों की मंदता, आत्म विशुद्धि के मार्ग और इन सब से बढ़कर यह धर्म प्रत्येक आत्मा को परमात्मा बनाने की एक अद्भुत क्षमता को धारण करता है। मार्ग सबके लिए खुला है। बताया गया है उस पर जो चले वह अवश्य सिद्धि हासिल कर सकेगा। ऐसी क्षमता को शायद ही किसी धर्म में होगी। दूसरी मुख्य विशेषता है कर्म सिद्धांत की मान्यता। कोई भी जीव हो उसके साथ जो भी होता है वह सिर्फ और सिर्फ उसके कर्मों के अनुसार ही होता है। किसी और का कोई दोष नहीं। आत्म विशुद्धि के अनेक मार्ग तथा आलंबन है उसमें से मुख्य है कषायों की मंदता। क्रोध-मान-माया-लोभ आदि कषायों को हराकर, उनके सामने युद्ध करके विजय प्राप्त करना है।जिस कारण से व्यक्ति जीवन के हर कदम पे हताश निराश-अफसोस आदि अनुभव करते है वह कषाय की है। इनको निष्फल बनाने क्षमा-नम्रता-सरलता-संतोष रूपी गुणों की साधना-उपासना और आत्म विशुद्धि कर आत्मोत्थान करना है। इन सभी के लिए सर्वप्रथम जैन धर्म के प्रति राग होना अनिवार्य है। जब हमें कोई चीज पसंद आये तब ही हम उसे करने की, अपनाने की बात किसी और को करते है। परमात्मा का शासन मिला उनके आलंबन से अनेक द्वारा बताई गई साधना आराधना कर परमात्मा बने यही मंगल अभ्यर्थना।