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अहमदाबाद। प्रत्येक व्यक्ति को महान बनने की लालसा होती है। महान बनने के लिए कुछ अनोखे तरीके से कार्य करना पड़ता है। कार्य करने के पूर्व सोचना, उसके हेतु विचार करना अनिवार्य होता है। क्रिय वर्तन आचार से व्यक्ति की सौजन्यता को आंका जा सकता है।
सर्वतोमुखी प्रतिभा संपन्न सुप्रसिद्ध प्रतिभा संपन्न, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी भाविकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि इस जगत में कोई भी व्यक्ति छोटे से छोटा कार्य करने के पूर्व तथा बड़े से बड़ा कार्य करने के पूर्व विचार करते हैं। उसके बारे में सोचते हैं और फिर उसका तंत्र प्रारंभ होता है। अत: शास्त्रकार भगवंत फरमाते है कि एक बार पानी-भोजन-मकान नहीं मिलने तो चलेगा किंतु सद्विचार ना मिले तो नहीं चलेगा। सुविचार कहां से प्राप्त होंगे? इस प्रश्न का उत्तर फरमाते हुए पूज्यश्री ने मार्गदर्शन दिया कि अच्छे लोगों के संग से अच्छे विचारों की प्राप्ति होगी। अर्थात् साधु-संत तथा शास्त्रों के सत्यंग से, समागम से सद्विचारों की प्राप्त होगी। सद्विचारों से आचार में परिवर्तन आयेगा। अच्छी किताबों का वांचन करने से अच्छे विचारों के बीज मन में बो सकते है जो आगे चलकर आचार स्वरूप महान कार्य स्वरूप वटवृक्ष बनते हैं। कहते है अच्छा विचार ना आये तो वह दिन व्यर्थ ही गया समझो। इसलिए कई अखबार वाले अपने मुख्य पन्ने पे प्रतिदिन एक सुवाक्य, सुविचार प्रकाशित करते है। 
सत्संग से अच्छे विचार मिलेंगे और उन विचारों पे अपनी चिंतन की धारा चलाकर उन्हें अमल कर महान कार्यों इतिहास का सर्जन करना है। चिंतन करो अपनी प्रवृत्तियों के विषय में तो आपको अवश्य पता चल ही जायेगा कि आप पूर्वभव में किस प्रकार के व्यक्ति थे किस योनि में से आये। एक छोटा लड़का बहुत जिद्द करके अपनी मां से मोदक मांगकर खाने के लिए घर के दरवाजे के पास जाकर खड़ा हो गया। एक भिखारी जो तीन-तीन दिन से क्षुधा से पीडि़त था वह वहां से गुजर रहा था और इस लड़के को देखकर रोते-रोते अपने करुण स्वर में बोलने लगा मुझे खाने को कुछ दे दो नहीं तो मैं मर जाऊंगा। ऐसे करुण स्वर सुनकर उस करुणावंत बालक ने अपना प्रियतम मोदक उसे एक ही सेकेंड में दे दिया। मोदक देकर वह बालक घर में गया तो उसकी मां ने पूछा कि इतनी जल्दी मोदक खा लिया? बालक ने जवाब दिया कि नहीं मां मैं ने तीन दिन से भूखे भिखारी को दे दिया। मुझसे ज्यादा उसे इसकी आवश्यकता अधिक थी अत: मैं ने उसे दे दिया। यह सुनकर उसकी मांग आश्चर्य चकित भी हुई और प्रसन्न भी हुई क्योंकि उसने कभी अपने पुत्र को ये सब सिखाया नहीं था लेकिन सहजता से आये शुभ विचारों को आचार में रुपांतरित किया वह जानकर आनंद हुआ। दान करने की भावना तथा कारुण्य भाव दोनों अंदर से प्रगटे तो समझना की यह पूर्वभव के ही संस्कार है। शास्त्रकार भगवंत कहते है कि आप में यदि दान करने के संस्कार हो तो थोड़ी संपत्ति में से भी दान कर सकते हो। ऐसा जरूरी नहीं है कि ज्यादा धन हो तो ही दान कर सकते है। 
उदाहरण स्वरूप आनंद श्रावक और पुण्या श्रावक मौजूद ही है। अपनी सीमित संपत्ति में से भी वे अपने साधर्मिकों की भक्ति करते। एक अच्छा विचार और दोनों के जीवन में जबरदस्त परिवर्तन आ गया। इतिहास के पन्नों में सुवर्ण अक्षरों में इन दो महान श्रावकों के नाम अंकित हुये है। अनेक श्रावकों के आदर्श स्वरुप बने इन दो आत्माओं का आलंबन लेकर पूज्यश्री के मार्गदर्शनानुसार सद्विचारों द्वारा अपने जीवन को महान बनाये। संक्षिप्त में पूज्य गुरूदेव ने सभी को निर्देश दिया कि दो प्रश्नों के चिंतन लग जाओ मैं कहां से आया हूं? मुझे कहा जाना है? चिंतन की धारा में आगे बढ़ते-बढ़ते अवश्य कुछ महान इतिहास का सर्जन होगा।