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अहमदाबाद। जगत में अनेक प्रकार के लोग रहते हैं, सबकी विचारधारा भी अलग होती है, सोच अलग होती है। लेकिन बहुत कुछ अलग होने पर भी थोड़ा कुछ जो मिलता जुलता है। उसके आधार पर दोस्त बनते हैं, नये रिश्ते बनते हैं और आत्मीयता बढ़ती है।
इतने सारे लोगों में समझदार कौन? प्रशांत मूर्ति प्रभावक प्रवचनकार, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित श्रोताओं को उत्तर देते हुए फरमाया कि समझदार तो वहीं है जो जन्म-जरा-मृत्यु, भूत-भविष्य आदि की चिंता ना करे परंतु प्रत्येक परिस्थिति अनुसार अपनी मनस्थिति बनाकर जीये। परिस्थिति का सहर्ष स्वीकार करके समाधिपूर्वक रहने में समझदारी है। वर्तमान में वैश्चिक महामारी के बढ़ते भय के कारण कई लोग अपनी स्वस्थता खो बैठे है, अपनी मानसिक शक्ति क्षीण कर रहे हैं। जीवन तो उतार-चढ़ाव खुशी-दु:ख आदि से युक्त ही होता है लेकिन इन सब में मन:स्थिति को स्वस्थ बनाए रखना है। पूज्यश्री फरमाते है कि परिस्थिति को वश करना अपने हाथ में नहीं होता लेकिन मन:स्थिति को वश करना अपने हाथ में है। सबसे दयनीय बात तो यह है कि जो हमारे हाथ में नहीं ऐसी परिस्थिति को हम कंट्रोल करना चाहते है और मन:स्थिति जो हमारे हाथ में है उसे कंट्रोल नहीं कर पाते।
किसी चिंतक ने खूब लिखा है कि शरीर तो सुखरासिक है, आत्मा आनंदरसिक है लेकिन मन? मन तो दु:ख रसिक ही है। कहीं से भी दु:ख ढूंढ लेता है ये मन और फिर विचित्र दसा कर देता है। प्रत्येक चीज को परिस्थिति को देखने के दो नजरिये होते है:- हकारात्मक, नकारात्मक। मन को खामियां जल्दी नजर आती है और इसीलिए दु:खी होना पड़ता है। हकारात्मक दृटिकोण से मन प्रसन्न रहता है और जीवन में आनंद की लहरें छा जाती है। नकारात्मक दृष्टिकोण से व्यक्ति हतीत होता है। मन को हकारात्मक तरीके से सोचने हेतु समझाना पड़ता है, तैयार करना पड़ता है। ऐसा करने के लिए अलग-अलग नुस्के अपनाने पड़ते है। सर्वप्रथम तो प्रत्येक व्यक्ति में, चीज में, परिस्थिति में पोजिटिविटी देखना सीखों इससे दृष्टि की विशालता बढ़ेगी और विश्व एक आनंद से हरा-भरा बगीचा लगेगा।
इसके अलावा रात को सोने से पूर्व एक डायरी में संपूर्ण दिन में आपके साथ जो अच्छा हुआ, जिससे आपको आनंद हुआ हो ऐसी कोई भी दस बातें लिखे। कुछ भी हो सकता है चाहे कोई जोक सुनकर आनंद हुआ हो या फिर कोई खाद्य पदार्थ से आनंद हुआ हो, कोई मनोहर दृश्य देखने से हो या फिर कोई मनपसंद स्पर्श से हुआ हो, किसी विपरीत परिस्थिति में समता में रहने से हो या फिर कोई आराधना करने से हो। कुछ भी जिससे आपको क्वचित भी आनंद हुआ हो ऐसी दस बातें लिखे पढ़ें तो आपको एहसास होगा कि आप एक खुशियों से भरी दुनिया में जी रहे हो। यह एक असरकारक छोटी सी क्रिया है जिससे हम हमारे दृष्टिकोण को, स्वभाव को परिवर्तित कर सकते है। पूज्यश्री फरमाते है कि हम तो वीर की संतान है प्रभु वीर के जीवन का प्रत्येक पन्ना हमें विपरीत  परिस्थिति में भी आनंद और प्रसन्नता की दो में रहने को प्रेरित करता है। माता के हित के लिए गर्भ में हलन-चलन बंद किया लेकिन वह मां के दु:ख का कारण बन गया। यह जानकर प्रभु को गुस्सा, दु:ख या अफसोस नहीं हुआ उन्होंने तो यह सोचा कि मेरे माता-पिता मुझसे इतना प्यार करते है तो उनके जीत जी मैं दीक्षा लूंगा तो उन्हें इससे कहीं अधिक दु:ख होगा। अत: उनके जीते जी संयम नहीं लेने का अभिग्रह गर्भावस्था में ही ले लिया। चंडकौशिक सर्प ने करुणावत्सल प्रभु को डंख मारा लेकिन प्रभु ने उतनी ही सौम्यता से करुणा से उसे प्रतिबोधित कर सद्गति भेंट दी। बस इस तरह प्रभु वीर का आलंबन लेकर प्रत्येक परिस्थिति का सहर्ष स्वीकार कर उसे आनंद में परिवर्तित कर दें ऐसी मन:स्थिति का सर्जन करें।