
अहमदाबाद। वर्तमान विश्व नकारात्मक बातों से, विचारों से और व्यक्ति से पीडि़त है। नकारात्मकता को दूर करने, हताशा और निराश से बचने के लिए सकारात्मक विचार, व्यक्ति का सहारा अत्यंत अनिवार्य है। आध्यात्म जगत के समस्त गुरू तथा शुभ चिंतक कहते है कि प्रभु के समक्ष, गुरू भगवंतों के समक्ष, अनंत सिद्धात्माओं के समक्ष, अनंद केवलियों के समक्ष प्राणिधान करना है, प्रार्थना करना है कि जो भी विचार आये वो शुभ विचार ही आये। शास्त्रकार भगवंत कहते है ये शुभ विचार शांत रस के वेत्ता है।
सर्वतोमुखी प्रतिभा संपन्न, सर्वधर्म ग्रंथों के तलस्पर्शी ज्ञाता, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि प्रमोद भावना को जितना महत्व दे। उतना कम है। विश्व में जितने भी पोजिटिव अेपरोच है। पोजिटीव विचार है वे सब प्रमोद भावना ही है। आत्मा जब प्रमोद भावना से तरबतर हो जाये तब सिद्धि हासिल हो जाती है। लोग कहते है प्रमोद भावना भाने में तकलीफ तब होती है जब हमारे साथ दुव्र्यवहार करने वाली व्यक्ति हमारे सामने आ जाये। शास्त्रकार भगवंत फरमाते है कि प्रमोद भावना हमें पल पल यही सिखाता है कि अनंत दुर्गुणवाले, दुव्र्यवहार करने वाले में भी एक सद्गुर्णो तो अवश्य होता ही है।
इसी संदर्भ में एक कृपण सेठजी की कथा या आ जाती है। एक गांव में सेठजी रहते थे। बहुत ही सुखी संपन्न और समृद्ध थे लकिन कृपण थे। गांव में कोई टीप इकट्ठी करनी थी लेकिन समस्या यह थी कि सेठजी जितनी राशि लिखाये उससे अधिक कोई नहीं लिखा सकतेे। सेठजी तो ठहरे कंजूस। उन्होंने तो कितने ही दिनों तक राशि की उद्घोषणा ही नहीं की। इसका उपाय क्या निकाला जाये यह सब गांव वाले सोचते रहे। इसी बीच सेठजी के नौकर को एक युक्ति सूझी। उसने सेठजी को कहा कि आप बस मुझे ग्यारह हजार का चेक लिखकर दे दो। मुझे जैसे ही दूसरी राशि मिलेगी, टीप होगी उसमें से आपको ग्यारह हजार लौटा दूंगा। सेठजी ने सोच कि इसमें तो कोई हर्ज नहीं है। ये मुझे पैसे फिर से लौटाने ही वाला है। ऐसा सोचकर सेठजी ने ग्यारह हजार का चेक लिख दिया। नौकर ने पूरे गांव में संदेश फैला दिया कि सेठजी ने ग्यारह हजार की राशि टीप में दी है। बस फिर क्या था, समस्त ग्रामजनों ने अपनी-अपनी इच्छा एवं अनुकूलतानुसार उदारता से टीप में राशि लिखवाई। करीबन ढ़ाई लाख रुपए की राशि एकत्रित हुई। नौकर अपने सेठजी के पास गया और बोला कि सेठजी आपका नाम, आपकी राशि कितनी पुण्यमयी है कि आपकी राशि उद्घोषणा के बाद तो ढाई लाख रुपए की राशि हमें टीप में मिल गई। यह लीजिये आपके ग्यारह हजार रुपए, आपको सप्रेम लौटा रहा हूं। सेठजी ने देखा कि पहली बार मेरे द्वारा ग्यारह हजार रुपए की उदार राशि दान में दी गई थी वो भी वापस मिल जाने के लोभ से फिर भी उसकी इतनी किमत? तो मुझे अब ये रुपये नहीं चाहिए। ऐसा सोचकर उन्होंने पैसे लेने से इंकार कर दिया और अब वे धीरे-धीरे दान देने लगे और उदार दानवीर के रुप में प्रसिद्ध हुए। इस कथानक से पूज्यश्री ने श्रोताओं को समझाया कि नौकर में वो कला थी जिससे वह सेठजी के एक सद्गुण को पुष्ट कर पाया। परिणाम स्वरूप कृपण सेठजी अब उदार दानवीर बन गए। अनेक दुर्गुणवाली आत्माओं में भी एक सद्गुण तो अवश्य होता ही है।
किसी के भी सद्गुणों का विस्तार करना आना चाहिए। यदि में हमारे में किसी के भी सद्गुणों को पुष्ट करने की क्षमता हो सद्गुणों को पुष्ट करने की क्षमता हो तो हम उस व्यक्ति में परिवर्तन ला सकते हैं। किसी को सुधारने के लिए वाणी में मधुरता और आंखों में स्नेह लाओ तो प्रमोद भावना भी स्वयं ही आ जायेगी। प्रमोद भावना से परमात्मा बने यही मंगल याचना।