
अहमदाबाद। जीवन में कई प्रकार की परिस्थिति आती है। परिस्थिति के अनुरूप मन: स्थिति भी परिवर्तित होती है। कभी खुशी, कभी गम, कभी उदास, कभी हताशा, कभी निराशा, कभी आनंद, कभी हर्ष, कभी प्रसन्नता, कभी चिंतित। ऐसी अनेक प्रकार की मन:स्थितियों में से प्रत्येक व्यक्ति को प्रसन्नता, खुशी और आनंद ही सबसे ज्यादा अच्छी लगती है। अनेक प्राचीन तीर्थोद्धारक, मौलिक चिंतक, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी म.सा. ने विशाल संख्या में उपस्थित धर्मानुरागी श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि आनंद तो सबको होता है लेकिन कारण अलग-अलग होते है। किसी को हीरे का हार पहनने का आनंद है तो किसी को महंगी डिजाईनर साडियां पहनने का आनंद है, किसी को सुवर्ण अलंकारों से अलंकृत होने का आनंद है तो किसी को नया लेटस्ट मोबाईल फोन यूएसआई करने में आनंद है, किसी को ऋद्धि, सिद्धि, संपत्ति, स्वर, रुप, लावण्य, ऐश्वर्य आदि का आनंद होता है तो पूज्यश्री पूछते है महामंगलकारी परमात्मा के महामंगल, लोकोत्तर शासन प्राप्ति का आनंद है? गुरूदेव श्री कहते है कि जब लौकिक चीजों की प्राप्ति का इतना आनंद हो सकता है तो शासन प्राप्ति का अनहद आनंद क्यों ना हो? अर्थात् यह आनंद उसी को महसूस होगा जो शासन को समझे हुए है। शासन को समझने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक कदम पे शासन की अनुमोदना करनी चाहिए।
कोई भी कार्य करने में या करवाने में पुरूषार्थ की आवश्यकता होती है। (शारीरिक-मानसिक बल) किंतु अनुमोदना के लिए ऐसा कोई पुरूषार्थ नहीं करना है। केवल व्यापक दृष्टि द्वारा अपने आसपास रहते लोगों में, होते कार्यों की गुणग्राह्य दृष्टि से अनुमोदना करना है। पूज्यश्री की अदभुत चिंतन शक्ति द्वारा प्रमोद भावना पर प्रतिदिन विविध प्रकार के चिंतन रूपी पक्वान श्रोताओं को पुरस रहे है, पेश कर रहे है। पूज्य गुरूदेव फरमाते है कि कोई भी इंद्रिय के विषय के बिना अंदर से आनंद की अनुभूति होना, आनंद में रहना यानि प्रमोद भावना। प्रमोद भावना के अंतर्गत पूज्यश्री ने तीर्थंकर परमात्मा का परार्थ व्यसनिता के गुण की बात की। प्रभु तो अनंत गुणों के सागर है, गुणरत्नों की खान है उनके गुणों के कुछ अंश भी यदि हमारे आत्मा में आ जाये तो जीवन सफल बन जाये। प्रभु तो प्रतिफल प्रति क्षण परोपकार करने तत्पर रहते है। ऐसे निर्विकारी, निरंजन वीतराग परमात्मा का आलंबन लेकर हमें भी परोपकार करना चाहिए। प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल परोपराकर करे के छोटे बड़े अवसर हमें मिलते ही है बस उन्हें चूके नहीं। अंदर से ऐसा भाव होना चाहिए। कि मेरा जीवन किसी के हित के लिए है, अच्छे के लिए बने, किसी का भला करने के लिए है, किसी को सहाय करने के लिए है। ऐसे भावों में जब रमण करते है जब परोपकार की भावना दृढ़ बनती है। विचारों में जब दृढ़ता आती है तब ही वह आचार में परिणामित होती है। वर्तमान की दयनीय परिस्थिति देखकर बड़ा दु:ख होता है क्योंकि कोई अपने स्वार्थ की पुष्टि के लिए, अपना कार्य साधने के लिए किसी भी मर्यादा को लांघने तैयार हो जाते है। कक्षी में आये जीव तक की हत्या करने तैयार हो जाते है। ना। अधिक्कार हो उन माता-पिता को जो गर्भ में आये जीवन को अच्छा जीवन, सुखमय जीवन, आनंदमय जीवन, संस्कारमय जीवन देने के बजाय उसे खत्म कर डालते है। परोपकार करने तैयार होने वालों को सर्वप्रथम अपने घर सोसायटी समाज और फिर देश तक जाना चाहिए। अर्थात् प्रारंभ अपने घर-परिवार-मित्रों से करें। वर्तमान में एबोर्शन के लिए जागृति लाना अत्यंत आवश्यक बन चुका है। यह पाप है, किसी जीते जागते इंसान को बंदूक या जहर से मारने की सजा यदि फांसी दी जाती है तो शस्त्रों से, क्रूरता से निर्दोष-अबोल गर्भ में रहे हुए जीव को मारने की सजा क्या? पूज्य गुरूदेव अेन्टी अेबोर्शन मूवमेन्ट के लिए अत्यंत संवेदनशील तथा सक्रिय है। इस मुद्दे को लेकर पूज्यश्री समाज में जागृति लाने के लिए आईएओ (इंटरनेशनल अहिंसा आर्गेनाईजेशन) के स्थापकों को प्रेरणा तथा मार्गदर्शन प्रदान करते रहते है। पाप से भी जो ध्यान-चिंतन करते है वो उत्थान की ओर बढ़ सकते है। यह प्रभाव परमात्मा के परम प्रभावक शासन का ही है। देव-गुरू को जो समर्पित है उन सबकी अनुमोदना करो। अनुमोदना करने का लक्ष्य बनाओगे तो आप स्वयं भी आनंद में रहोंगे और आपसे जुड़ी प्रत्येक व्यक्ति भी आनंद में रहेगी। परम और चरम आनंद यानि मोक्ष सुख के आनंद की अनुभूति होगी।