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अहमदाबाद। वर्तमान परिस्थिति में आधुनिक युग की युवा पीढिय़ों को यह प्रश्न बार-बार सताता है कि जीवन किस तरह से जीना उचित होगा? जीवन को किस तरह सही दिशा में ले जाया जाएं? जीवन व्यवहार सौंदर्यमय युक्त कैसे हो सकता है? ऐसे जीवन विकास संबंधी अनेक प्रश्न युवानों के मन में चल रहे होते हैं। सर्वतोमुखी प्रतिभा संपन्न, मौलिक चिंतक, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सू.म.सा. ने विशाल संख्या में उपस्थित धर्मानुरागी श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि इन सभी प्रश्नों का एक ही जवाब है जो वर्तन, वचन, व्यवहार हमें पसंद नहीं वैसा वर्तन, वचन और व्यवहार किसी के साथ करना नहीं और किसी को बोलना नहीं। मधुर वचन, सौम्य नम्र व्यवहार तथा सद्विचारों द्वारा परायों को भी अपने बनाए जा सकते हैं। मुख की एक स्मित, मुंह से निकले दो मीठे शब्द, मीठी वाणी से किसी को आवकार देना आदि से कोई अंजान व्यक्ति भी हमसे आकृट होकर हमें बुलाना चाहेगी। हमारे साथ भी जब कोई मीठास से, प्यार से, सभ्यता से बातचीत करें तब हमें अच्छा लगया है। फिर चाहे वह व्यक्ति माता-पिता-भाई-बहन-पुत्र-पुत्री कोई भी हो। सबको परस्पर एक दूसरे से यही अपेक्षा होती है कि धीरे से, प्यार से बोले, जोर से चिल्लाकर या डॉटकर बात ना करें। पूज्यश्री तो फरमाते है कि वाणी में मधुरता और चेहरे पे यदि स्मित रखोंगे तो विश्व के कोई भी क्षेत्र में सफलता को प्राप्त कर पाओगे। एक फोटोग्राफर भी जब हमारे फोटो खींचना हो तो भी वह एक ही कहता है कृपया हंसे आश्चर्य की बात तो यह है कि किसी को भी अपने गुस्सेवाला या हताश हुए चेहरे का फोटो देखना पसंद नहीं आता। उतरे हुए चेहरे देखना, निराशा से युक्त चेहरे देखना किसी भी व्यक्ति को पसंद नहीं अत: ऐसी मुखाकृति देखे भी नहीं और दिखाये भी नहीं। एक कुरूप श्याम वर्णोय आदमी था। दिखने में बिलकुल अच्छा नहीं लेकिन फिर भी लोग उसे मिलने, उससे बात करने उत्सुक रहते थे। किसी ने इसका कारण पूछा तो पूज्यश्री ने फरमाया कि उसके पास रुप नहीं है, लावण्य नहीं है, सौदर्य नहीं है लेकिन इसके पास मधुर वचन, स्मित से युक्त चेहरा है जिसके कारण सब उससे आकृष्ट होते है।
कहते है प्रीति से बोलना चाहिए और नीति से कमाना चाहिए। पूज्यश्री कहते है कि जीवन को नंदनवन बनाना हो तो सबके साथ सौम्य वर्तन-व्यवहार करना चाहिए। व्यक्ति थोड़े समय के लिए मिलते है। उस समय अपने व्यवहार विचार के परस्पर आप ले से फिर संबंध बनाने का निर्णय लेते है लेकिन इतना जरूर ध्यान रखें कि वचन द्वारा किसी के दिल को ठेस न पहुंचे, वर्तन द्वारा किसी का मन दु:खी ना हो। ये दोनों ऐसे परिबल है जो किसी दो व्यक्तियों को नजदीक भी ला सकते है तो दूर भी कर सकते है। इस सिद्धांत को अपनाने के लिए साथ ही लेट गो  सहन कर लेने की भावना भी होनी चाहिए। एक व्यक्ति जब गरम हो तब दूसरे से समझकर ही ठंडा रहना चाहिए।
इसे अंग्रेजी में म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग कहते है। बस परस्पर एक दूसरे को समझे, समझकर वर्तन-वचन का उपयोग करें ताकि जीवन नंदनवन बन जाये।