
अहमदाबाद। श्री शांत सुधारस ग्रंथ में अनित्यादि सोलह भावना इतनी सुंदर बताई गई है कि जीवन की कोई भी परिस्थिति में हताश, निराश या कोई भी विपरीत संयोगों में मन: स्थिति खराब हो जाये तो मन का बैलेंसिंग करने की अद्भुत शक्ति इन भावनाओं में समाई है। भावनाओं द्वारा मन को सशक्त करने की अपूर्व शक्ति केवल शांत सुधारस ग्रंथ में ही है।
अनेक प्राचीन तीर्थोद्धारक, मौलिक चिंतक सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि इन सोलह भावनाओं में से प्रमोद भावना से कौन भावित हो सकता है? कैसी आत्माएं भावित हो सकती है? जो आत्माएं गुण ग्राह्य दृष्टि से युक्त हो वह पुण्यात्माएं प्रमोद भावना से भावित हो सकती है। इससे विपरीत जो आत्मा अहंकारी हो, जिसे अन्य के गुण नहीं दिखते ऐसी आत्माओं को लगता है कि वे स्वयं सर्वगुण संपन्न है। आजू-बाजू के लोगों में गुण है या नहीं उस दिशा में दिमाग ही नहीं दौड़ता। पूज्यश्री फरमाते है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अहंकारी-अभिमानी व्यक्ति के मन में आई एएम एवरी थिंग ऐसे ही विचार होता है। ऐसे व्यक्ति की दृष्टि व्यापक बनने के बजाय सीमित बन जाती है।
वर्तमान की स्वार्थ भरी दुनिया में, जहां किसी को समर्थ है वो अहंकारी है, कुछ लोगों की तो समझ शक्ति और विचार शक्ति ही नहीं होती। ऐसे में भी कई लोग ऐसे है जो गुण दृष्टि से युक्त हो, व्यापक दृष्टि के मालिक है। ऐसे लोगों में अन्य के गुणों को परखने की, उन्हें पुष्ट करने की अनन्य शक्ति है। प्रमोद भावना यानि अन्य के गुण देखना और अन्य में रही हुई शक्ति को देखकर, उसे पुष्ट करना वह भी प्रमोद भावना का ही अंग है। क्योंकि किसी की शक्ति का विकास यानि गुणों का विकास है। इसी बात को स्पष्ट रुप से समझने के लिए डॉ. गुलाब के जीवन की झांखी पे नजर डालते है। दाहोद जिल्ले के दादूर नाम के छोटे से गांव में रहते, एक आदिवासी परिवार में गुलाब का जन्म हुआ। गुलाब के पिताजी तथा माताजी परिवार के साथ गोंडल जिल्ले में स्थायी हुई। गुलाब के पिताजी ने गौशाला में महीने की छ: हजार की तन्ख्वाह में अपना काम प्रारंभ किया। गुलाब पढऩे में होशियार था। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण समझदार गुलाब ने सोचा कि दसवीं कक्षा की परीक्षा के बाद डिप्लोमा करके जाब करूंगा। परंतु गुलाब के पिताजी की इच्छा थी कि वह आईआईटी का कोई कोर्स करें। गुलाब पढ़ाई के साथ-साथ कोम्प्यूटर सीखने भी जाता था। उसके परीक्षा के परिणाम जब कोम्प्यूटर टीचर को पता चला तो उन्होंने गुलाब को विज्ञान क्षेत्र में आगे बढऩे की सलाह दी।
कोम्प्यूटर टीचर से अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के बारे में बात की तो उन्होंने अपने, मित्र मंडल से तथा शिक्षकों के साथ बातचीत की। फिर वे गुलाब के घर पहुंचे और वादा किया कि आज से गुलाब की पढ़ाई का संपूर्ण खर्च मैं उठाऊंगा। आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। केवल गुलाब हमें दीजिये हम आपको डॉ. गुलाब भेंट देंगे। इस तरह से गुलाब में रही स्मृति शक्ति ज्ञान शक्ति समझ शक्ति का विकास किया। जिससे वह जीवन में खूब आगे बढ़ पाया और साथ ही लोक कल्याण सेवा का अनुपम कार्य किया।
पूज्यश्री इस दृष्टांत द्वारा समझाते है कि किसी को प्रोत्साहित करना, किसी की शक्ति अनुसार उसे प्रगति करने में सहाय करके गुणों का प्रगटीकरण करना प्रमोद भावना है। किसी के गुणों को, प्रगति को देखकर आनंद हो, किसी के सुख को, किसी की सिद्धि को देखकर ईष्र्या ना हो और परमानंद की अनुभूति हो तो ही प्रमोद भावना अपनी आत्मा में घुंटती है। ऐसे परम मंगलमयी भावों में रमण करने से आनंद आनंद होता है और आत्मा से परमात्मा बन सकते हैं।