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अहमदाबाद। प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य को सफल होने की, सिद्धि प्राप्त करने की एक महत्त्वाकांक्षा होती है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए साधना अनिवार्य होती है। कोई बड़ा बिजनेस टायकून हो तो नीति और प्रामाणिकता उसकी साधना होती है, कोई वैज्ञानिक हो तो प्रयोग उसकी साधना होती है। कोई अध्यापक हो तो ज्ञान उसकी साधना होती है। कोई विद्यार्थी हो तो अभ्यास उसकी साधना होती है। वैसे ही कोई महात्मा हो, संत हो तो तप-त्याग और इंद्रिय विजय ही उसकी साधना होती है।
संत मनीषी, सरल स्वभावी, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. उपस्तित श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाते है कि प्रत्येक साधक को साधना से ही सिद्धि हासिल होती है। साधनों से तो किसी को सिद्धि नहीं हासिल होती। साधनों में फंसना नहीं बल्कि उनका सहारा लेकर साधना में आगे बढ़कर सिद्धि हासिल करें। सतत साधना से ही सिद्धि के शिखर तक पहुंचा जा सकता है। हम चाहे जिस क्षेत्र में है उसे अपनी साधना समझकर पुरूषार्थ करें ताकि सिद्धि आपके पास अवश्य आयेगी। एक सुवाक्य कहा गया एक्सीलेंस के पीछे भागो सक्सेस झक मारके तुम्हारे पीछे आयेगी। सफलता के शिखर को सर करना है तो सर्वप्रथम नींव मजबूत बनानी पड़ती है. अपने कार्य में इतना लग जाओ कि जगत भी आश्चर्य करें। 
एक प्रोफेसर कालेज में लेक्चर दे रहे थे। उनके लेक्चर्स इतने बोधदायक और प्रेरणादायक होते थे कि विद्यार्थी बड़े ही रस से श्रवण करते। नित्यक्रम अनुसार प्रोफेसर ने अपना लेक्चर प्रारंभ किया। इतने में ही एक आदमी दौड़ते-दौड़ते उनके पास आया और कान में बोला कि आपके घर आग लगी है। जल्दी चलो। प्रोफेसर साहिब के मुख पे कोई प्रतिभाव नहीं, उनकी अस्खलित धारा में भी कोई परिवर्तन नहीं, कोई बदलाव नहीं उसी धारा में अपना लेक्चर चालू ही रखा। दस-पंद्रह मिनिट तक वह आदमी देखता ही रहा। उसे लगा कि शायद प्रोफेसर साहिब ने बराबर सुना नहीं होगा। अत: फिर से कह देता हूं। फिर गया कहने लेकिन उनका कोई प्रतिभाव नहीं मिला। अंत में वे अपना लेक्चर पूर्ण करके जब निकलने की तैयारी कर रहे थे तब उस आदमी ने पूछा आपको पता चलने के बावजूद भी आप यहां से निकले नहीं। यह कुछ समझ नहीं पाया। तब प्रोफेसर साहेब ने कहा कि मैं लेक्चर दे रहा था। घर में आगे लग गई तो मेरी संपत्ति जल गई ऐसा नहीं है मेरी वास्तविक धरोहर, संपत्ति मेरा ज्ञान है। वह तो मेरे पास सही सलामत है फिर क्या चिंता। जिस संपत्ति की तुम बात कर रहे वह तो श्रणिक सुख को देने वाली है तथा चिंतित करने वाली है। मैं जिस संपत्ति का मालिक हूं वह तो आत्मिक सुख, संतोष तथा आनंद प्रदान करने वाली है। मैं जिस संपत्ति का मालिक हूं वह तो आत्मिक सुख, संतोष तथा आनंद प्रदान करने वाली है।
प्रोफेसर का यह उत्तर सुनकर वह आश्चर्यचकित हुआ। इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि अपने कार्य के प्रति संपूर्ण रूप से समर्पित हो जाये, पुरूषार्थ करे तो ही सिद्धि हासिल हो सकती है। ज्ञान की साधना द्वारा ही प्रोफेसर साहेब विपरीत परिस्थिति में भी समभाव में रह सके। उन्होंने यह प्रत्यक्ष दिखा दिया कि साधनों से नहीं बल्कि साधना से ही सिद्धि प्राप्त हो सकती है। साधना के लेक्चर प्रारंभ किया। इतने में ही एक आदमी दौड़ते-दौडते उनके पास आया और कान में बोला कि आपके घर आग लगी है। जल्दी चलो प्रोफेसर साहिब के मुख पे कोई प्रतिभाव नहीं, उनकी अस्खलित धारा में भी कोई परिवर्तन नहीं, कोई बदलाव नहीं उसी धारा में अपना लेक्चर चालू ही रखा। दस-पंद्रह मिनिट तक वह आदमी देखना ही रहा। उसे लगा कि शायद प्रोफेसर साहिब ने बराबर सुना नहीं होगा। अत: फिर से कह देता हूं। फिर गया कहने लेकिन उनका कोई प्रतिभाव नहीं मिला। अंत में वे अपना लेक्चर पूण4 करके जब निकलने की तैयारी कर रहे थे तब उस आदमी ने पूछा आपको पता चलने के बावजूद भी आप यहां से निकले नहीं। यह कुछ समझ नहीं पाया। तब प्रोफेसर साहेब ने कहा कि मैं लेक्चर दे रहा था। घर में आग लग गई तो मेरी संपत्ति जल गई ऐसा नहीं है मेरी वास्तविक धरोहर, संपत्ति मेरा ज्ञान है। वह तो मेरे पास सही सलामत है फिर क्या चिंता। जिस संपत्ति की तुम बात कर रहे हो वह तो क्षणिक सुख को देने वाली है तथा चिंतित करने वाली है। मैं जिस संपत्ति का मालिक हूं वह तो आत्मिक सुख, संतोष तथा आनंद प्रदान करने वाली है।
प्रोफेसर का यह उत्तर सुनकर वह आश्चर्यचकित हुआ। इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि अपने कार्य के प्रति संपूर्ण रुप से समर्पित हो जाये, पुरूषार्थ करे तो ही सिद्धि हासिल हो सकती है। ज्ञान की साधना द्वारा ही प्रोफेसर साहेब विपरीत परिस्थिति में भी समभाव में रह सके। उन्होंने यह प्रत्यक्ष दिखा दिया कि साधनों से नहीं बल्कि साधना से ही सिद्धि प्राप्त हो सकती है। साधना के लिए अपने लक्ष्य से तनिक भी चलित ना हो, निश्चल रहे तो ही साधना से सिद्धि प्राप्त होगी। इस विश्व में मानव के लिए कुछ भी असंभव नहीं है केवल पुरूषार्थ की आवश्यकता है। सिद्धि अनेक प्रकार की होती है। प्रत्येक सिद्धि को हासिल करने के लिए साधना की ही आवश्यकता होती है। पूज्य गुरूदेव की प्रेरणा से हम भी आत्मा से परमात्मा बनने की साधना का प्रारंभ कर दे यही मंगल भावना।