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नई दिल्ली। गंगा नदी की स्वच्छता का पता लगाने के लिए केंद्र सरकार अब दो प्रजाति के मछलियों का सहारा लेने जा रही है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के एक अधिकारी के अनुसार केंद्र सरकार डॉल्फिन और हिलसा मछली के जीवन चक्र का अध्ययन करेगी जिसके जरिए पवित्र नदी के स्वास्थ्य का पता लग सकेगा। सरकार के अनुसार राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के वैज्ञानिक, औद्योगिक अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान की मदद से इसका अध्ययन करेंगे।  इसके तहत डॉल्फिन, हिलसा मछली और सूक्ष्म जीवों की आबादी का अध्ययन किया जाएगा। जिससे पता लगेगा कि नदी की स्वच्छता कितनी है।

जैव-संकेतक नदी के स्वास्थ्य को स्थापित करने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं: जी अशोक कुमार
विस्तार से बताते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन(NMCG) के महानिदेशक जी अशोक कुमार ने कहा कि ये जैव-संकेतक नदी के स्वास्थ्य को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि हमने पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए एनएमसीजी के तहत कई पहल की हैं और अध्ययन के जरिए हम यह जांचना चाहते हैं कि कितना सुधार हुआ है। 

कुमार ने कहा कि माइक्रोबियल विविधता पर मानव हस्तक्षेप के प्रभाव और गंगा नदी में मौजूद ई.कोली की उत्पत्ति का भी अध्ययन किया जाएगा। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह अध्ययन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा गंगा नदी पर किए जा रहे अध्ययन और शोध के संग्रह का हिस्सा है। उन्होंने आगे कहा कि गंगा नदी से संबंधित विषयों पर अनुसंधान, नीति और ज्ञान प्रबंधन पर केंद्रित है।

जानें अध्ययन से कैसे लगेगा पता
एनएमसीजी के अनुसार हिल्सा और डॉल्फिन मछलियों की अभी की आबादी और पूर्व की आबादी में तुलना की जाएगी। अगर आबादी में वृद्धि हुई होगी तो इससे पता लगेगा कि गंगा कितनी साफ हुई है। अगर आबादी में कमी आई होगी तो इसका मतलब गंगा अभी उतनी साफ नहीं हुई है। कुमार ने कहा कि एनएमसीजी और केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान के प्रयासों के कारण मछली की आबादी में वृद्धि से आजीविका के साथ-साथ नदी डॉल्फ़िन, मगरमच्छ, कछुए और गंगा के पक्षियों जैसे उच्च जलीय जैव विविधता के शिकार आधार में भी सुधार होगा 

गंगा में पिछले चार वर्षों में नदी से लगभग 190 मछलियों की प्रजातियां दर्ज
कुमार ने कहा कि पिछले चार वर्षों में नदी से लगभग 190 मछलियों की प्रजातियां दर्ज की गई हैं जो नदी के किनारे रहने वाले मछुआरों को आजीविका और आर्थिक स्थिरता प्रदान करती हैं। गंगा नदी और उसके बेसिन को दुनिया में सबसे अधिक आबादी में से एक माना जाता है, और यह विशाल जैव विविधता का पोषण करती है।