नई दिल्ली। भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के प्रकोप से उबरकर तेज गति से सुधार के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। आने वाले चार साल में भारत 50 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने मंगलवार को कहा कि अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत बेहतर और मजबूत स्थिति में है। अभी हमारी अर्थव्यवस्था 33 खरब डॉलर की है और 50 खरब डॉलर के लक्ष्य को हासिल करना बहुत मुश्किल नहीं है।
यूएनडीपी इंडिया की ओर से आयोजित कार्यक्रम में सीईए ने कहा कि भारत 2026-27 तक 50 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अगर आप सिर्फ डॉलर के लिहाज से अर्थव्यवस्था में 10 फीसदी की मामूली वृद्धि का अनुमान लगाएं तो 2033-34 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 100 खरब डॉलर का हो जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में 2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 50 खरब डॉलर पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। विश्व बैंक ने हाल ही में चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया है। आसमान छूती महंगाई, आपूर्ति शृंखला संबंधी समस्याओं और भू-राजनीतिक संकट के कारण विकास दर अनुमान में बदलाव किया है।
उच्च महंगाई का जोखिम कम
नागेश्वरन ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था अन्य देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में है। यहां उच्च महंगाई का जोखिम भी कम है। देश का वित्तीय क्षेत्र वृद्धि को समर्थन देने के लिए अच्छी स्थिति में है। इसलिए विकास दर को लेकर ज्यादा चिंता की बात नहीं है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ रही महंगाई का दबाव भी अन्य देशों के मुकाबले कम है। उन्होंने कहा कि सरकार ने भी महंगाई से निपटने के लिए आयात शुल्क में कटौती, खाद एवं रसोई गैस पर सब्सिडी और पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती करने जैसे कई कदम उठाए हैं।
अर्थव्यवस्था चुनौतियों से निपटने में सक्षम
सीईए ने कहा कि भारत आज ऐसी स्थिति में है, जहां उसे वैश्विक वृहद मौद्रिक नीतियों और राजनीतिक घटनाक्रमों दोनों की वजह से चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। अर्थव्यवस्था ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि इस साल भारत के समक्ष सतत उच्च वृद्धि, महंगाई को नीचे लाने और राजकोषीय घाटे को संतुलन में रखने की चुनौतियां होंगी।
आप महंगाई की मौजूदा चिंता को छोड़कर देखें तो भारत अपनी वित्तीय प्रणाली के बूते पिछले दशक से बाहर आया है। न सिर्फ बैंकों और वित्तीय क्षेत्र का बही-खाता सुधरा है बल्कि कॉरपोरेट क्षेत्र की स्थिति भी बेहतर हुई है।
क्रिसिल : 18 लाख करोड़ रुपये पहुंच सकता है एनबीएफसी का कर्ज
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) का कर्ज बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 18 लाख करोड़ रुपये पहुंच सकता है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा कि आरबीआई के रेपो दर में बढ़ोतरी से इन कंपनियों की उधारी लागत भी बढ़ जाएगी।
एजेंसी ने मंगलवार को कहा कि चालू वित्त वर्ष में एनबीएफसी की उधारी लागत 0.85 फीसदी से 1.05% तक बढ़ सकती है। 31 मार्च, 2022 तक एनबीएफसी का कर्ज 15 लाख करोड़ रुपये रहा। वृद्धि को समर्थन देने के लिए एनबीएफसी तीन लाख करोड़ रुपये का कर्ज और बांट सकती हैं। आरबीआई ने एक महीने में रेपो दर में 0.90 फीसदी की बढ़ोतरी की है। आगे इसमें 0.75 फीसदी की और वृद्धि हो सकती है।