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0 डॉक्टरों का कहना है कि मस्तमौला स्वभाव और बचा लिए जाने की उम्मीद में जिंदा रहा राहुल

बिलासपुर/रायपुर। प्रदेश के जांजगीर-चांपा जिला के मालखरौदा विकासखंड के पिहरीद गांव के एक बोरवेल में फंसे 10 साल के राहुल साहू को मंगलवार देर रात सही सलामत बाहर निकाल लिया गया। उसे बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वहां उसकी हालत स्थिर है। लगभग 106 घंटे तक अंधेरे बोरवेल में मासूम राहुल की मौत से लड़ाई को चमत्कार बताया जा रहा है। हेल्थ विशेषज्ञों व मनोवैज्ञानिकों का कहना है अपने मस्त मौला स्वभाव और बचा लिए जाने की उम्मीद में राहुल साहू वहां से जिंदा बच निकला है।

रायपुर के जवाहरलाल नेहरु मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में साइकेट्री के विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज साहू ने बताया कि इंसान के सहनशीलता की कोई सीमा नहीं है। अगर उसको बच जाने अथवा बचा लिए जाने की थोड़ी भी उम्मीद रहे तो उसका शरीर पूरी क्षमता से कोशिश करता है। इस मामले में भी ऐसा ही लगता है। राहुल साहू बाेलने-सुनने में सक्षम नहीं था, लेकिन उसके गिरने के बाद मदद पहुंचाने की जो कोशिशें शुरू हुईं, उसको खाने-पीने का सामान भेजा जाने लगा। इससे उसे उम्मीद मिली होगी। इसके अलावा उसकी विशेष मानसिक स्थिति भी उसमें मददगार बनी।

नि:शक्तता की वजह से संभवत: वह बोरवेल में फंसने से पैदा जटिलताओं और खतरों का अंदाजा नहीं लगा पाया। अपने पास सांप को देखकर भी वह डरा नहीं। ऐसे में उस पर कोई घबराहट हावी नहीं हुई। वह जिस परिस्थिति में था उसमें शांत पड़ा रहा। संभव है कि उसकी वजह से भी उसके सर्वावाइल की क्षमता बढ़ गई। डॉ. मनोज साहू एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग का किस्सा सुनाते हुए बताया कि एक प्रयोग में वैज्ञानिकों ने कुछ चूहों को गहरे पानी में छोड़ दिया। उसमें से कई चूहे 20 मिनट में ही डूब गए। इस प्रयोग को फिर से दोहराया गया। इस बार चूहे ज्यों ही डूबने को हुए उन्हें निकाल लिया गया। भोजन आदि दिया गया। दोबारा उन्हें पानी में छोड़ा गया तो उनके संघर्ष की क्षमता बढ़ चुकी थी। इस मामले में भी राहुल को इस उम्मीद ने ही अंधेरे में बचाए रखा।

चुपचाप पड़ा रहा, यह बड़ा मददगार साबित हुआ
जांजगीर-चांपा के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आरके सिंह का कहना है कि हर व्यक्ति के शरीर की क्षमता और विल पॉवर अलग-अलग होता है। उन्हें लगता है कि उसको किसी बात की चिंता नहीं हुई। इसकी वजह से वह जहां था वहां चुपचाप पड़ा रहा। इसे भू-समाधि जैसी स्थिति कह सकते हैं। उसी को उसने अपना संसार समझा होगा। उसकी जगह नार्मल बच्चा रहता तो वह डरता। चीखता-चिल्लाता और उटपटांग हरकतें करता। हो सकता है कि उसकी वजह से वह कहीं और फंस जाता।