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मुंबई। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे की सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। ऐसे में सरकार बनाने से चंद कदम दूर खड़ी भाजपा सियासी पत्ते खोलने से बच रही है। पार्टी इस मसले पर एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। पार्टी को डर अपनी फजीहत होने का है। भाजपा फिलहाल अपने आप ही ठाकरे सरकार के गिरने का इंतजार कर रही है। वह किसी भी स्थिति में सरकार गिराने का आरोप खुद पर नहीं लेना चाहती। इसलिए महाराष्ट्र के मसले पर बार-बार जोर देकर कह रही है कि शिवसेना के विद्रोह से उसका कोई लेना-देना नहीं है। यह उनका आंतरिक मसला है। 

पार्टी नेता शिवसेना के साथ उसके दोनों सहयोगी दल कांग्रेस और एनसीपी के रुख पर भी नजर रखे हुए हैं। खासकर शरद पवार पर और उनकी अगली रणनीति पर। क्योंकि साल 2019 में एनसीपी नेता अजित पवार के साथ जल्दबाजी में सरकार बनाने की कोशिश में भाजपा गच्चा खा चुकी है, जिसके चलते पार्टी इस बार दुर्घटना से देर भली वाली रणनीति पर चलते हुए धीरे-धीरे काम कर रही है।

भाजपा वेट एंड वॉच मोड पर
महाराष्ट्र के मुद्दे पर भाजपा की इस चुप्पी पर महाराष्ट्र से उसके एक वरिष्ठ सांसद ने कहा कि भाजपा उद्धव सरकार को गिराकर शिवसेना को सहानुभूति लेने और मराठा कार्ड खेलने का कोई मौका नहीं देना चाहती। इसलिए हमारी पार्टी पूरी तरह से वेट एंड वॉच मोड पर है। जब तक इस बात की पुष्टि नहीं हो जाती कि बागी विधायक पूरी तरह से शिंदे गुट के साथ हैं या ये सभी तथ्य रिकॉर्ड पर नहीं आ जाते तब तक भाजपा इस मसले पर आगे नहीं बढ़ेगी। पार्टी इस बार सतर्क होकर इसलिए काम कर रही है क्योंकि पिछली बार जल्दबाजी दिखाकर पार्टी की फजीहत हुई थी।

सांसद ने कहा कि इस बार भी दो विधायक कैलाश पाटिल और नितिन देशमुख बागी होने के बाद जिस तरह से वापस गए इससे पार्टी नेतृत्व आशंकित है कि बाद में यह संख्या और न बढ़ जाए। वहीं दूसरी तरफ शिवसेना नेताओं की तरफ से बार-बार यह भी दावा किया जा रहा है कि शिंदे गुट के 10 से 12 विधायक उनके संपर्क में हैं। वे विधानसभा में विश्वास मत के दौरान उद्धव ठाकरे का ही साथ देंगे। 

इसके अलावा पार्टी 2019 वाली महाराष्ट्र और 2020 वाली राजस्थान वाली गलती नहीं दोहराना चाहती। इन्हीं सभी कारणों को देखते हुए जल्दबाजी में कोई कदम उठाने से बच रही है, लेकिन भाजपा केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व लगातार इस पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है।

इस बार भी शरद पवार की रणनीति का है डर
इस बीच भाजपा की नजर शिवसेना के दोनों सहयोगी दल कांग्रेस और एनसीपी पर भी है। दरअसल उद्धव ठाकरे भी एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की सलाह पर ही सरकार बचाने के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में पवार की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है। भाजपा की चिंता शरद पवार को लेकर है, जिनकी रणनीति काफी गहरी होती है और पिछले मौके पर भाजपा उसमें मात भी खा चुकी है। ऐसे में खुलकर सामने आने से पहले पवार की ताकत को पूरी तरह जांच लेना चाहती है कि कहीं कोई गड़बड़ी न रह जाए। क्योंकि शरद पवार भी यह कह चुके हैं कि बागी विधायकों के मुंबई आने पर स्थिति बदलेगी तो उद्धव ठाकरे ने कहा कि शिवसेना के विधायक हमारे सामने आकर बात करें। 

भाजपा सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के कुछ विधायक से वे संपर्क साधे हुए हैं। अगले एक-दो दिन में स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, लेकिन तब तक सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है। शिवसेना के बागियों को संभालने के साथ भाजपा अपने विधायकों और अपने समर्थक निर्दलीय विधायकों पर भी नजर रखे हुए है कि कहीं उसमें सेंध न लग जाए।

ऐसे खुलेगा भाजपा का सरकार बनाने का रास्ता
एकनाथ शिंदे गुट पहले दो-तिहाई का आंकड़ा पूरा कर लेना चाहता है, ताकि उसे कोई संवैधानिक दिक्कत न आए। दो दिन पहले शिंदे गुट ने अपने साथ 45 विधायकों के समर्थन का दावा किया था, लेकिन अब तक शिंदे गुट से करीब 34 विधायक ही खुलकर सामने आए हैं। शिंदे गुट 40 विधायकों का आंकड़ा पार होने के बाद ही विधानसभा उपाध्यक्ष और राज्यपाल के सामने असली शिवसेना होने का दावा कर विभाजन की औपचारिकता भी पूरी कर लेगा। इसके साथ ही भाजपा के साथ सरकार बनाने का रास्ता भी खुल जाएगा।