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0 रायपुर में आयोजित संयुक्त सम्मेलन में जन आंदोलनों ने दिखाई एकजुटता
0 अधिसूचित क्षेत्रों में जमीन ट्रांसफर पर रोक का प्रस्ताव

रायपुर। रायपुर के पास्टोरल सेंटर में मंगलवार को भूमि अधिकार आंदोलन और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने संयुक्त सम्मेलन का आयोजन किया। इस दौरान एक प्रस्ताव पारित कर पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में जमीन के हस्तांतरण, आदिवासियों के विस्थापन और वन भूमि के डायवर्सन पर रोक लगाने की मांग उठी। सम्मेलन में देश भर में आंदोलन कर रहे संगठनों ने छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य, सिलगेर गोलीकांड, नवा रायपुर के लिए भूमि अधिग्रहण सहित विभिन्न मुद्दों पर संघर्ष कर रहे आंदोलनों के साथ नई एकजुटता दिखाई। 

नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की नेता मेधा पाटकर ने कहा कि आज आधुनिकता के नाम पर देश-दुनिया में प्राकृतिक संसाधनों को मुनाफे के लिए लूटा जा रहा है। यह आर्थिक शोषण का दौर है जो जीवन के अधिकार का हनन कर रहा है। आज राज्य सरकारें एक कागज के नोट के आधार पर कंपनियों को जमीनें दे रही हैं। छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओड़िशा जैसे प्रदेशों में आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनों पर हमले तेज हुए हैं। मेधा ने कहा, हम सब लोग मिल कर नहीं लड़ेंगे तो न हम बचेंगे और न समाज बचेगा। इस संदेश को गांव-गांव तक पहुंचाना होगा।

सर्वहारा जन आंदोलन महाराष्ट्र की उल्का महाजन ने कहा कि हसदेव अरण्य की लड़ाई किसी एक प्रदेश या एक समुदाय की लड़ाई नहीं है। यह पूरे देश की आबोहवा और पर्यावरण बचाने की लड़ाई है, जिसे हर हाल में जीतना ही होगा। किसान संघर्ष समिति के डॉ. सुनीलम, भारत जन आंदोलन से बिजय पांडा, लोकशक्ति अभियान के प्रफुल्ल सामंत रे, भूमि अधिकार आंदोलन गुजरात के मुजाहिद नफीस, लोक मोर्चा, महाराष्ट्र की प्रतिभा सिंधे ने भी सम्मेलन में अपनी बात रखी। इस सम्मेलन में छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, जम्मू एंड कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पं. बंगाल, हिमाचल प्रदेश, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तराखंड से करीब 500 प्रतिनिधियों शामिल हुए थे।

सरकारों पर मनमाने अधिग्रहण का आरोप
अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्ला ने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। केंद्र में अध्यादेश वापस लेने के बावजूद आज भी राज्यों में भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधान लागू नहीं हो रहे हैं। राज्य सरकारें मनमाने ढंग से भूमि अधिग्रहण कर रही हैं। मोल्ला ने कहा, इस राज्य सम्मेलन के बाद अगस्त में भूमि अधिकार आंदोलन का एक राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली में होगा। वहां देश भर के आंदोलनों पर बात कर आगे की रणनीति तय की जाएगी।

सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों ने हाथ उठाकर प्रस्ताव का समर्थन किया।