0 मंत्री अकबर बोले- केंद्र की नीति से वनवासियों को होगी दिक्कतें
0 बृजमोहन ने कहा- लोगों को अब भी लंगोट में रखना चाहती है सरकार
रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा सत्र में वन (संरक्षण) नियम 2022 को लेकर वन मंत्री मो. अकबर ने शासकीय संकल्प पेश किया। चर्चा के बाद विधेयक सदन में ध्वनिमत से पारित किया गया. राज्य सरकार ने वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से नया नियम वापस लेने का अनुरोध किया। केंद्र के नए नियम पर आपत्ति जताई।
शासकीय संकल्प पेश करते हुए मो. अकबर ने कहा कि इस नियम से वन क्षेत्रों में गतिविधियों की अनुमति प्रावधानों को बदले जाने से वन क्षेत्रों में निवासरत अनुसूचित जनजाति और अन्य वनवासियों का जनजीवन और उनके हित प्रभावित होंगे। जिन वनवासियों के पास वन अधिकार पट्टा है, उनके लिए भी दिक़्क़तें होंगी।
बीजेपी विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि संविधान में केंद्र और राज्य के अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख है. राज्य सरकार अपने आपको संघीय ढांचा का हिस्सा मानती है या नहीं? केंद्र ने नियमों का संशोधन करने के पहले राज्य सरकार से अनुमति ली है।
बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि असहमति व्यक्त कर राज्य सरकार क्या साबित करना चाहती है। क्या सरकार ये चाहती है कि ट्रेन का विस्तार ना हो, बांध ना बने, बड़ी परियोजनाएं ना आए. जब तक राज्य सरकार अनुमति ना दे कोई भी परियोजना शुरू नहीं जो सकती।
बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में केंद्रीय परियोजना की कई सड़कें नहीं बन पा रही है। राज्य सरकार अधिग्रहण से जुड़े मामलों का निपटारा नहीं कर रही। क्या सरकार बस्तर और सरगुज़ा के लोगों को अब भी लंगोट में रखना चाहती है। उनके विकास को रोकना चाहती है।
कांग्रेस विधायक संतराम नेताम ने कहा कि मैं भी एक आदिवासी हूं। केंद्र के इस नए नियम से आदिवासियों का, वनवासियों का नुक़सान होगा. इस संशोधन को लाया ही नहीं जाना चाहिए था। राज्य सरकार और वनवासियों को प्रताड़ित करने के लिए केंद्र सरकार ने ऐसा संशोधन लाया है।
बीजेपी विधायक सौरभ सिंह ने कहा कि 1975 में जो ग़लत हुआ था, उसे सुधारने का काम केंद्र सरकार कर रही है। इस विधेयक का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। अगर वन अधिकार नियम का उनलगहन करता था, तब एक साल की सजा होती थी, उसे घटाकर 15 दिन कर दिया गया है। वन विभाग इस नियम का दुरुपयोग करता था। नक्सलवाद के बढ़ने की भी एक बड़ी वजह यही रही। सौरभ सिंह ने कहा कि केंद्र ने राज्यों के अभिमत के लिए वक़्त दिया था। राज्य सरकार ने अपना अभिमत क्यों नहीं दिया। 45 हज़ार करोड़ रुपए का इंपोर्ट फ़ॉरेस्ट से होता है। नए नियम में कमर्शियल फ़ॉरेस्ट का भी प्रावधान है। लेफ़्ट की राजनीति देश को गर्त में ले जाएगी। रसिया भी बर्बाद हो गया। चाइना ने भी रास्ता बदल लिया।
वन मंत्री मो. अकबर ने कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य से किसी तरह की सहमति नहीं ली. केंद्र को सहमति ली जानी चाहिए थी। जहां तक फ़ॉरेस्ट राइट एक्ट का सवाल है। आदिवासियों को पट्टा पाने का अधिकार है। ग़ैर आदिवासी के लिए तीन पीढ़ी का रिकॉर्ड चाहिए। आदिवासियों के हितों की रक्षा करनी ज़रूरी है। इसलिए ये संकल्प लाया जाना ज़रूरी है। इस संकल्प के पीछे व्यापक जनहित है। बीजेपी विधायक सौरभ सिंह ने कहा कि अभिमत पब्लिक डोमेन में था। राज्य सरकार जिन बिंदुओं पर आपत्ति जताई है। क्या ये अभिमत केंद्र के सामने दी गई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि नए नियम से केंद्र सरकार ने ग्राम सभाओं के अधिकार ख़त्म कर दिए हैं। ग्राम सभाओं का अधिकार पूर्ववत बने रहे। बात सिर्फ़ इतनी है।