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नई दिल्ली। जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीर बताया। कोर्ट ने कहा कि इसे राजनीतिक रंग नहीं देना चाहिए। याचिका पर अगली सुनवाई अब 7 फरवरी को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई की। इसमें फर्जी धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्यों को कड़े कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है। यह भी कहा गया है कि जबरन धर्मांतरण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है और नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण कर सकता है।

उन्होंने याचिका में दावा किया कि जबरन धर्मांतरण एक राष्ट्रव्यापी समस्या है, जिससे तत्काल निपटने की जरूरत है। नागरिकों को होने वाली चोट बहुत बड़ी है, क्योंकि एक भी जिला ऐसा नहीं है जो 'हुक और बदमाश' द्वारा धर्म परिवर्तन से मुक्त हो।"

पिछली सुनवाई में क्या हुआ था
मामले पर पिछली सुनवाई 12 दिसंबर को हुई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से कहा था कि वो जनहित याचिका में अल्पसंख्यक धर्मों के खिलाफ दिए गए अपमानजनक बयानों को हटा दें। साथ ही ये सुनिश्चित करें कि ऐसी टिप्पणी रिकॉर्ड में न आए।

वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अरविंद दातार ने कोर्ट के निर्देशों का पालन करने का आश्वासन दिया था। उन्होंने कहा कि अगर यह अपमानजनक टिप्पणी है, तो उन्हें हटा दिया जाएगा। पीठ ने केंद्र सरकार के हलफनामे के इंतजार करने के लिए सुनवाई 9 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी थी।

धर्म परिवर्तन रोकने के लिए अलग से कानून बनाने की मांग की
इस याचिका में मांग की गई थी कि धर्म परिवर्तनों के ऐसे मामलों को रोकने के लिए अलग से कानून बनाया जाए या फिर इस अपराध को भारतीय दंड संहिता (IPC) में शामिल किया जाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह मुद्दा किसी एक जगह से जुड़ा नहीं है, बल्कि पूरे देश की समस्या है जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

आदिवासी इलाकों में ज्यादा होते हैं ऐसे मामले: केंद्र
केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि धर्म परिवर्तन के ऐसे मामले आदिवासी इलाकों में ज्यादा देखे जाते हैं। इस पर कोर्ट ने उनसे पूछा कि अगर ऐसा है तो सरकार क्या कर रही है। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र से कहा कि इस मामले में क्या कदम उठाए जाने हैं, उन्हें साफ करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के तहत धर्मांतरण कानूनी है, लेकिन जबरन धर्मांतरण कानूनी नहीं है।