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श्रीहरिकोटा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने सोमवार को कहा कि भारत के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र में हलचल नजर आ रही है क्योंकि अंतरिक्ष एजेंसी ने आने वाले महीनों में मिशनों की एक श्रृंखला तैयार की है।

इसरो ने सोमवार को प्रक्षेपण यान जीएसएलवी-एफ-12 के जरिये देश की दूसरी पीढ़ी के पहले नौवहन उपग्रह एनवीएस-01 का सफल प्रक्षेपण किया।
श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से सुबह 10:42 बजे 51.7 मीटर लंबा जीएसएलवी-एफ12 अपनी 15वीं उड़ान में दो हजार 232 किलोग्राम वजनी एनवीएस-01 नौवहन उपग्रह को लेकर रवाना हुआ। प्रक्षेपण की उल्टी गिनटी 27.5 घंटे पहले रविवार सुबह सात बजकर 12 मिनट पर शुरू हो गयी थी।
प्रक्षेपण के लगभग 18 मिनट बाद उपग्रह प्रक्षेपण यान से अलग होकर जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में स्थापित हो गया। एनवीएस-01 में पहली बार एक स्वदेशी परमाणु घड़ी को भी लगाया गया है।

उपग्रह को अपेक्षित कक्षा में स्थापित करने के लिए कक्षा ऊपर उठाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया।
प्रक्षेपण के बाद डॉ़ सोमनाथ ने संवाददाताओं से कहा कि इसरो के लिए आने वाला साल काफी व्यस्त रहेगा क्योंकि यह पीएसएलवी, जीएसएलवी, सबसे भारी रॉकेट एलवीएम और एसएसएलवी के साथ मिशनों की एक श्रृंखला शुरू करेगा।

इसरो प्रमुख ने कहा कि चंद्रयान-3 को इसी साल जुलाई में लॉन्च किया जाएगा। ये अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी। इसके साथ ही इंसेट -3डी को जीएसएलवी की मदद से प्रक्षेपित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, पहला मानव उड़ान मिशन, गगनयान से पहले रॉकेट क्रू एस्केप सिस्टम का जुलाई में परीक्षण किया जाएगा, जिसके बाद दो मानव रहित मिशन होंगे।

डॉ सोमनाथ ने कहा,“हम टेस्ट वेहिकल मिशन के लिए तैयार हो रहे हैं। हमें क्रू मॉड्यूल और क्रू निकास प्रणाली हासिल करनी होगी। जुलाई तक हम रॉकेट के साथ सिस्टम को एकीकृत कर लेंगे।” क्रू मॉड्यूल और क्रू एस्केप सिस्टम की सुरक्षा प्रणालियों का परीक्षण लगभग 14 किमी की ऊंचाई पर किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि दूसरे स्पेसपोर्ट कुलसेकरपट्टिनम क्षेत्र में स्थित है तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में आता है। उन्होंने कहा कि 99 प्रतिशत भूमि अधिग्रहण पूरा हो चुका है और संपर्क सड़कों के लिए भूमि का अधिग्रहण किया जाना है।

डॉ सोमनाथ ने कहा कि एक नए रॉकेट को डिजाइन करने पर काम चल रहा है जो बहुत अधिक पेलोड ले जा सकता है। इसके अलावा एलवीएम3 रॉकेट को भारी उपग्रहों को ले जाने के लिए उन्नत किया जा सकता है जो वर्तमान 4 टन क्षमता से 5.5 टन तक वजन उठाने की क्षमता रखता है।