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नई दिल्ली/रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा देकर कहा है कि हसदेव अरण्य में कोयले के लिए किसी भी नए खनन आरक्षित क्षेत्र को आवंटित करने या उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है। चालू परसा ईस्ट और केते बासन में 350 मिलियन टन कोयला है, जो राजस्थान के पावर प्लांट्स के लिए 20 सालों की जरूरत को पूरी करने के लिए काफी है।

उल्लेखनीय है कि 26 जुलाई 2022 को छत्तीसगढ़ विधानसभा ने छत्तीसगढ़ के हसदेव अरंड क्षेत्र में कोयला ब्लॉकों को रद्द करने के लिए एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था। विधानसभा ने हसदेव अरण्य को उसके स्वरूप में बनाए रखने के पक्ष में प्रस्ताव पारित किया। इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र सरकार से कोयले का आवंटन रद्द करने का अनुरोध करते हुए पत्र भी केंद्र सरकार को लिखा। आवंटन के विरुद्ध प्रभावित आदिवासी समुदाय की ओर से दायर याचिकाओं में एक पिटिशनर सुदीप श्रीवास्तव हैं, जिसके प्रतिवादी के रूप में 16 जुलाई को अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षण (एपीसीसीएफ) सुनील कुमार मिश्रा ने यह हलफनामा दायर किया है। यह राज्य सरकार के पहले के रुख से विपरीत है, जिसे आदिवासी समुदाय अपनी जीत के रूप मे देख रहे हैं।

हसदेव अरण्य लगभग 1 लाख 70,000 हेक्टेयर तक फैला
बता दें कि मध्य भारत में हसदेव अरण्य लगभग 1 लाख 70,000 हेक्टेयर तक फैला सघन क्षेत्र है। यह बारहमासी हसदेव नदी का जलग्रहण क्षेत्र भी है। यह हसदेव बांगो जलाशय का जलक्षेत्र भी है, जो छत्तीसगढ़ में 3लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करता है। याचिका में कहा गया था कि हसदेव अरण्य क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों और कोयला ब्लॉकों की अनुमति यहां की जैव विविधता समृद्धि और जल विज्ञान संबंधी महत्व को ध्यान में रखते हुए नहीं दिया जाए। सरकार की ओर से दिए गए हलफनामे में कहा गया है कि हसदेव अरण्य मानव-हाथी संघर्ष को संभालता है, जिसकी प्रदेश में नाजुक स्थिति है। भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की सिफारिश पर विचार करते हुए, इस पर्यावरण-नाजुक क्षेत्र के भीतर अधिक कोयला ब्लॉकों में खनन की अनुमति देना सर्वोत्तम हित में नहीं होगा। अक्टूबर 2021 में भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद और डब्ल्यूआईआई ने एक अध्ययन रिपोर्ट इस संबंध में पेश की है। शपथ पत्र में कहा गया है कि प्रदेश के कुल कोयले का हसदेव अरण्य मात्र 8 प्रतिशत कोयला ही है। मतलब इस क्षेत्र को संरक्षित करके भी देश की कोयला की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।

राज्य सरकार ने इस तरह से सुप्रीम कोर्ट में पूर्व में दिया अपना शपथ पत्र बदल दिया है जिसे हसदेव अरण्य को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे कार्यकर्ता अपनी जीत के रूप में देख रहे हैं।

हालांकि हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति का मानना है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा के संकल्प के तारतम्य एवं संविधान की पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों की ग्रामसभाओं के निर्णयों का पालन करते हुए राज्य सरकार को परसा कोल ब्लॉक को जारी वन स्वीकृति के अंतिम आदेश को तत्काल वापस लेना चाहिए।