Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

tranding

0 बिहार में जाति गणना पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया

नई दिल्ली। बिहार की जातीय गणना को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। इसमें सरकार ने कहा है कि जनगणना एक्ट 1948 के अनुसार जनगणना का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है, राज्यों को नहीं। हलफनामे में केंद्र ने बताया कि वह भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार एससी/एसटी/ईबीसी और ओबीसी के उत्थान के लिए सभी कदम उठा रही है।

इससे पहले 21 अगस्त को सुनवाई हुई थी। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस भट्टी की अदालत से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 7 दिन का समय मांगा था। इसके बाद 28 अगस्त की तारीख दे दी। कोर्ट में बिहार सरकार ने दलील देते हुए कहा कि राज्य में गणना का काम 6 अगस्त को पूरा हो चुका है। सारे डेटा भी ऑनलाइन अपलोड कर दिए गए हैं। इसके बाद याचिकाकर्ता ने डेटा रिलीज करवाने की मांग की थी।

क्या है जनगणना कानून 1948?
हलफनामे में सरकार ने कहा है कि जनगणना का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची में प्रविष्टि 69 में आता है। केंद्र ने इस प्रविष्टि में दी गई शक्ति का इस्तेमाल करते हुए जनगणना कानून 1948 बनाया है। इस कानून की धारा तीन में सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार दिया गया है। संविधान के तहत या अन्यथा कोई अन्य संस्था जनगणना या जनगणना जैसी कोई कार्रवाई करने की हकदार नहीं है। यानी किसी और संस्था या निकाय को जनगणना या जनगणना जैसी कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।

एनजीओ ने दायर की है याचिका
एनजीओ एक सोच एक प्रयास और यूथ फॉर इक्वेलिटी ने हाईकोर्ट के एक अगस्त को दिए गए उस फैसले के खिलाफ याचिका लगाई है जिसमें बिहार सरकार को जाति गणना कराने की परमिशन दी गई थी। एक और याचिका बिहार के नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की ओर से दायर की गई है। इसमें याचिकाकर्ता ने कहा कि पटना हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिए बिना कि बिहार राज्य के पास 6 जून, 2022 की अधिसूचना के से जाति-आधारित गणना को अधिसूचित करने का अधिकार ही नहीं है, उनकी याचिका को गलती से खारिज कर दिया था।

बिहार सरकार की अधिसूचना, संविधान की अनुसूची VII के साथ पढ़े जाने वाले संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों के बंटवारे के संवैधानिक जनादेश के खिलाफ है। जनगणना अधिनियम के दायरे से बाहर है। 1948 जनगणना नियम, 1990 के साथ पढ़ा जाता है और इसलिए अमान्य है।

पटना हाईकोर्ट ने दी थी हरी झंडी
दरअसल, पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जातीय जनगणना को लेकर उठ रहे सवालों पर सुनवाई की थी। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सार्थी की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों तक (3 जुलाई से लेकर 7 जुलाई तक) याचिकाकर्ता और बिहार सरकार की दलीलें सुनीं थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुना। इसके बाद एक अगस्त को जाति गणना कराने की मंजूरी दे थी। इसके बाद बिहार सरकार ने बचे हुए इलाकों में गणना का कार्य फिर से शुरू करवा दिया। बिहार सरकार के अनुसार, जाति आधारित गणना का कार्य पूरा हो गया है।