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0 कोर्ट में 23 याचिकाएं दाखिल कर केंद्र के फैसले को चुनौती दी गई थी

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के खिलाफ दाखिल की गई 23 याचिकाओं पर सुनवाई पूरी हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिनों तक मामले में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मंगलवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने मामले की सुनवाई की। इसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना की संविधान पीठ ने सभी संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने याचिकाकर्ताओं, उत्तरदाताओं - केंद्र और अन्य - की 16 दिनों तक दलीलें सुनी। केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि सरकार हमेशा राष्ट्रीय एकता का पक्षधर रही है। उन्होंने कहा कि वह चुनाव और राजनीति में नहीं पड़ना चाहती हैं। श्री मेहता ने कहा कि इससे ​​(370 को निरस्त करने से) लोगों की बेहतरी का ध्यान रखा जा रहा है। 
उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के पांच अगस्त 2019 के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि 2020 में दशकों में पहली बार स्थानीय निकाय चुनाव हुए। कोई हड़ताल नहीं, कोई पथराव नहीं, कोई कर्फ्यू नहीं।
श्री मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि नए होटल बनाए जा रहे हैं। फैसले से सभी को फायदा हुआ है। उन्होंने आगे बताया कि जो युवा पहले भारत के शत्रु आतंकवादी समूहों द्वारा नियोजित किए जाते थे, वे अब लाभप्रद रूप से नियोजित हैं।

श्री मेहता ने कहा कि ये नीतिगत विचार (केंद्र द्वारा) जिन्होंने निर्णय लिया कि पुनर्गठन सही था या नहीं। ब्लू प्रिंट ने सुनिश्चित किया कि क्या किया गया ताकि जम्मू और कश्मीर सामान्य स्थिति में लौट आए।

दूसरी ओर फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का विरोध किया और तर्क दिया कि यह जम्मू-कश्मीर के लोगों की भलाई के लिए नहीं था और याचिकाओं को रद्द किया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं में से एक के लिए वरिष्ठ वकील वी गिरी ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 ने जम्मू और कश्मीर के लिए एक क्षेत्र बनाया जो आठ घंटे पहले देश के बाकी हिस्सों के लिए संविधान की सामान्य संघीय विशेषताओं के साथ ‘समान’ नहीं था। जबकि कश्मीर इतिहास में कुछ कठिन समय से गुज़रा है। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के साथ ऐसा लगता है जैसे कश्मीर को अपने आपसे निर्वासित कर दिया गया है।
याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने तर्क दिया कि संचार ब्लैकआउट जैसी हालिया घटनाओं ने कश्मीरियों को उनके घरों तक सीमित कर दिया है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर राज्य और भारत के बीच एक महत्वपूर्ण ‘पुल’ के रूप में काम किया, इसे हटाना उस संबंध को तोड़ने के समान होगा।